भारतीय राजव्यवस्था
भूल जाने का अधिकार
- 18 Dec 2021
- 7 min read
प्रिलिम्स के लिये:मौलिक अधिकार, निजता का अधिकार, पुट्टस्वामी मामला, बी. एन. श्रीकृष्ण समिति, डेटा संरक्षण विधेयक। मेन्स के लिये:भूल जाने के अधिकार से संबंधित मुद्दे और गोपनीयता की रक्षा हेतु उठाए गए सरकारी कदम। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय को सूचित किया कि भूल जाने के अधिकार की अंतर्राष्ट्रीय कानूनी अवधारणा भारत में विकसित हो रही है और यह निजता के अधिकार के अंतर्गत आता है।
- सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के अनुसार, निजता के अधिकार में भूलने का अधिकार (RTBF) और अकेले रहने का अधिकार भी शामिल है।
प्रमुख बिंदु
- निजता का अधिकार: पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ मामले, 2017 में निजता के अधिकार को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मौलिक अधिकार घोषित किया गया था।
- निजता का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है।
- भूल जाने का अधिकार: एक बार जब व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है, तो इंटरनेट, खोज, डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को हटाने का अधिकार है।
- गूगल स्पेन मामले में यूरोपीय संघ के न्यायालय (CJEU) द्वारा वर्ष 2014 में दिये गए फैसले के बाद RTBF को महत्त्व मिला।
- भारतीय संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ, 2017 में कहा कि RTBF निजता के व्यापक अधिकार का एक हिस्सा था।
- RTBF अनुच्छेद 21 के तहत निजता के अधिकार से और आंशिक रूप से अनुच्छेद 21 के तहत गरिमा के अधिकार से निकलता है।
- अकेले रहने का अधिकार: इसका मतलब यह नहीं है कि कोई समाज से अलग हो रहा है। यह एक अपेक्षा है कि समाज व्यक्ति द्वारा किये गए विकल्पों में तब तक हस्तक्षेप नहीं करेगा जब तक कि वे दूसरों को नुकसान नहीं पहुँचाते।
- RTBF से जुड़े मुद्दे:
- गोपनीयता बनाम सूचना: किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।
- उदाहरण के लिये एक व्यक्ति अपने आपराधिक रिकॉर्ड के बारे में जानकारी को गूगल से डी-लिंक करना चाहता है और लोगों के लिये कुछ पत्रकारिता रिपोर्टों तक पहुँचना मुश्किल बना सकता है।
- यह अनुच्छेद 21 में वर्णित व्यक्ति के एकांतवास के अधिकार की अनुच्छेद 19 में वर्णित मीडिया द्वारा रिपोर्ट करने के अधिकारों से विरोधाभास की स्थिति को दर्शाता है।
- निजी व्यक्तियों के खिलाफ प्रवर्तनीयता: RTBF का दावा आम तौर पर एक निजी पार्टी (एक मीडिया या समाचार वेबसाइट) के खिलाफ किया जाएगा।
- इससे यह प्रश्न उठता है कि क्या निजी व्यक्ति के खिलाफ मौलिक अधिकारों को लागू किया जा सकता है, जो सामान्यत: राज्य राज्य के विरुद्ध लागू करने योग्य/प्रवर्तनीय है।
- केवल अनुच्छेद 15(2), अनुच्छेद 17 और अनुच्छेद 23 एक निजी पार्टी के एक निजी अधिनियम के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है जिसे संविधान के उल्लंघन के आधार पर चुनौती दी जाती है।
- अस्पष्ट निर्णय: हाल के वर्षों में, RTBF को संहिताबद्ध करने के लिये डेटा संरक्षण कानून के बिना, विभिन्न उच्च न्यायालयों द्वारा अधिकार के कुछ असंगत और अस्पष्ट निर्णय लिये गये हैं।
- भारत में न्यायालयों ने बार-बार RTBF के आवेदन को स्वीकार या अस्वीकार कर दिया गया है, जबकि इससे जुड़े व्यापक संवैधानिक प्रश्नों को पूरी तरह से अनदेखा किया गया।
- गोपनीयता बनाम सूचना: किसी दी गई स्थिति में RTBF का अस्तित्व अन्य परस्पर विरोधी अधिकारों जैसे कि स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार या अन्य प्रकाशन अधिकारों के साथ संतुलन पर निर्भर करता है।
गोपनीयता की रक्षा हेतु सरकार द्वारा किये गये प्रयास
- व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक 2019:
- यह व्यक्तिगत डेटा से संबद्ध व्यक्तियों की गोपनीयता को सुरक्षा प्रदान करने एवं उक्त उद्देश्यों और किसी व्यक्ति के व्यक्तिगत डेटा से संबंधित मामलों के लिये भारतीय डेटा संरक्षण प्राधिकरण की स्थापना का प्रावधान करता है।
- इसे बी. एन. श्रीकृष्ण समिति (2018) की सिफारिशों पर तैयार किया गया।
- सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000:
- यह कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने के प्रावधान हैं।
आगे की राह
- संसद और सर्वोच्च न्यायालय को RTBF का विस्तृत विश्लेषण करना चाहिये और निजता एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के परस्पर विरोधी अधिकारों के बीच संतुलन स्थापित करने के लिये एक तंत्र विकसित करना चाहिये।
- इस डिजिटल युग में, डेटा एक मूल्यवान संसाधन है जिसे अनियंत्रित नहीं छोड़ा जाना चाहिये अत: इस संदर्भ में, भारत द्वारा एक मजबूत डेटा संरक्षण व्यवस्था को अपनाने का समय आ गया है।
- इस प्रकार, सरकार को व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 के अधिनियमन में तीव्रता लेन की आवश्यकता है।