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भारतीय राजव्यवस्था

राइट टू बी फॉरगॉटन

  • 26 Jul 2021
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 21, सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन

मेन्स के लिये:

राइट टू बी फॉरगॉटन से संबद्ध विभिन्न पहलू

चर्चा में क्यों?

हाल ही में एक रियलिटी शो के प्रतियोगी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है जिसमें उसके "राइट टू बी फॉरगॉटन (RTBF)" का हवाला देते हुए अपने वीडियो, फोटो और लेख आदि को इंटरनेट से हटाने की मांग की गई है।

प्रमुख बिंदु

परिचय: 

  •  राइट टू बी फॉरगॉटन (RTBF): यह इंटरनेट, सर्च , डेटाबेस, वेबसाइटों या किसी अन्य सार्वजनिक प्लेटफॉर्म से सार्वजनिक रूप से उपलब्ध व्यक्तिगत जानकारी को उस स्थिति में हटाने का अधिकार है जब यह व्यक्तिगत जानकारी आवश्यक या प्रासंगिक नहीं रह जाती है।
  • उत्पत्ति: गूगल स्पेन मामले में यूरोपीय संघ के न्यायालय ("CJEU") के वर्ष 2014 के निर्णय के बाद RTBF प्रचलन में आया।
    • RTBF को सामान्य डेटा संरक्षण विनियमन (General Data Protection Regulation- GDPR) के तहत यूरोपीय संघ में एक वैधानिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।
    • यूनाइटेड किंगडम और यूरोप में कई न्यायालयों द्वारा इसे बरकरार रखा गया है।
  • भारत में स्थिति: भारत में ऐसा कोई कानून नहीं है जो विशेष रूप से भूल जाने के अधिकार का प्रावधान करता हो। हालाँकि निजी डेटा संरक्षण विधेयक (Personal Data Protection Bill) 2019 इस अधिकार को मान्यता देता है।
    • सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (Information Technology Act), 2000 कंप्यूटर सिस्टम से डेटा के संबंध में कुछ उल्लंघनों के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है।
      • इसमें कंप्यूटर, कंप्यूटर सिस्टम और उसमें संग्रहीत डेटा के अनधिकृत उपयोग को रोकने के प्रावधान हैं।

व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक और RTBF:

  • दिसंबर, 2019 में व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक लोकसभा में पेश किया गया था। इसका उद्देश्य व्यक्तियों के व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा के लिये प्रावधान करना है।
  • "डेटा प्रिंसिपल के अधिकार" शीर्षक वाले इस मसौदा विधेयक के अध्याय V के खंड 20 में ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ का उल्लेख है।
    • इसमें कहा गया है कि "डेटा प्रिंसिपल (जिस व्यक्ति से डेटा संबंधित है) को ‘डेटा फिड्यूशरी’ द्वारा अपने व्यक्तिगत डेटा के निरंतर प्रकटीकरण को प्रतिबंधित करने या रोकने का अधिकार होगा।"
    • इसलिये मोटे तौर पर ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ के तहत उपयोगकर्त्ता डेटा न्यासियों द्वारा रखी गई अपनी व्यक्तिगत जानकारी के प्रकटीकरण को डी-लिंक कर सकते हैं, सीमित कर सकते हैं, हटा सकते हैं या सही कर सकते हैं।
      • डेटा फिड्यूशरी का अर्थ है कोई भी व्यक्ति, जिसमें राज्य, कंपनी, कोई कानूनी संस्था या कोई भी व्यक्ति शामिल है, जो अकेले या दूसरों के साथ मिलकर व्यक्तिगत डेटा प्रसंस्करण के उद्देश्य और साधनों को निर्धारित करता है।
    • डेटा सुरक्षा प्राधिकरण (DPA): यद्यपि व्यक्तिगत डेटा और जानकारी की संवेदनशीलता को संबंधित व्यक्ति द्वारा स्वतंत्र रूप से निर्धारित नहीं किया जा सकता है, लेकिन डेटा सुरक्षा प्राधिकरण (DPA) द्वारा इसकी निगरानी की जाएगी।
      • इसका मतलब यह है कि ड्राफ्ट बिल कुछ प्रावधान करता है जिसके तहत एक डेटा प्रिंसिपल अपने डेटा को हटाने की मांग कर सकता है, उसके अधिकार DPA के लिये काम करने वाले एडज़ुडिकेटिंग ऑफिसर द्वारा प्राधिकरण के अधीन हैं।
      • डेटा प्रिंसिपल के अनुरोध का आकलन करते समय इस अधिकारी को व्यक्तिगत डेटा की संवेदनशीलता, प्रकटीकरण के पैमाने, प्रतिबंधित होने की मांग की डिग्री, सार्वजनिक जीवन में डेटा प्रिंसिपल की भूमिका और कुछ अन्य के बीच प्रकटीकरण की प्रकृति की जाँच करने की आवश्यकता होगी।

निजता का अधिकार और ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’:

  • ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ किसी व्यक्ति के निजता के अधिकार के दायरे में आता है, जिसे प्रायः व्यक्तिगत डेटा संरक्षण विधेयक, 2019 द्वारा विनियमित किया जाता है।
  • वर्ष 2017 में सर्वोच्च न्यायालय ने ऐतिहासिक पुट्टस्वामी मामले में अपने निर्माण में ‘निजता के अधिकार’ को मौलिक अधिकार घोषित किया था।
    • न्यायलय ने अपने निर्माण में स्पष्ट किया था कि ‘निजता का अधिकार अनुच्छेद-21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक हिस्से के रूप में और संविधान के भाग-III द्वारा गारंटीकृत स्वतंत्रता के एक हिस्से के रूप में संरक्षित है।’

चुनौतियाँ

  • सार्वजनिक रिकॉर्ड के साथ टकराव: ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ अथवा भूल जाने का अधिकार सार्वजनिक रिकॉर्ड से जुड़े मामलों के विरुद्ध हो सकता है।
    • उदाहरण के लिये न्यायालयों के निर्णयों को हमेशा सार्वजनिक रिकॉर्ड के रूप में माना जाता है और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा-74 के अनुसार इन्हें सार्वजनिक दस्तावेज़ की परिभाषा के अंतर्गत शामिल किया जाता है। 
    • आधिकारिक सार्वजनिक रिकॉर्ड, विशेष रूप से न्यायिक रिकॉर्ड को ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ के दायरे में शामिल नहीं किया जा सकता है क्योंकि यह दीर्घकाल में न्यायिक प्रणाली में आम जनता के विश्वास को कमज़ोर करेगा।
  • व्यक्ति बनाम समाज: ‘राइट टू बी फॉरगॉटन’ व्यक्तियों की निजता के अधिकार और समाज के सूचना के अधिकार तथा प्रेस की स्वतंत्रता के बीच दुविधा पैदा करता है।

आगे की राह

  • गोपनीयता के अधिकार और व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा (अनुच्छेद-21) तथा इंटरनेट उपयोगकर्त्ताओं की सूचना की स्वतंत्रता (अनुच्छेद-19) के बीच संतुलन स्थापित किया जाना आवश्यक है।
  • डेटा संरक्षण कानून के माध्यम से इन मुद्दों को संबोधित किया जाना आवश्यक है और दो मौलिक अधिकारों के बीच संघर्ष को कम किया जाना चाहिये जो भारतीय संविधान के स्वर्ण त्रिमूर्ति (अनुच्छेद-14,19 और 21) का महत्त्वपूर्ण हिस्सा हैं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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