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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

इन्टरनेट तक पहुँच बनाने के अधिकार में कटौती नहीं की जा सकती

  • 14 Apr 2017
  • 7 min read

संदर्भ

गौरतलब है कि हाल ही में एक महत्त्वपूर्ण निर्णय में सर्वोच्च न्यायलय द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि नागरिकों को सूचना, बुद्धिमता और ज्ञान प्राप्त करने के लिये इन्टरनेट तक पहुँच बनाने का अधिकार प्राप्त है| साथ ही इनके इस अधिकार में तब तक कोई कटौती नहीं की जा सकती है जब तक कि यह कानूनी सीमा का अतिक्रमण नहीं करता है|

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • इन्टरनेट को एक आभासी दुनिया और एक ऐसा विश्व बताते हुए जो कि अदृश्य है, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार में सूचना का अधिकार, जानने का अधिकार और विशाल कनेक्टिविटी के संरक्षण को महसूस करने का अधिकार भी शामिल होता है, जिन्हें इन्टरनेट क्षणभर में उपलब्ध करा सकता है|
  • न्यायालय ने यह भी स्पष्ट किया कि जन्म-पूर्व लिंग निर्धारण के विषय में ऑनलाइन उपलब्ध सभी सामग्री में सामान्य प्रतिबंध लगाना, एक वास्तविक जानकार के जानने के मूल अधिकार में कटौती करना होगा|

धारा 22 

  • गौरतलब है कि न्यायधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन न्यायाधीशों की एक खंडपीठ ने कहा कि इस प्रतिबंध को केवल तभी चुनौती दी जा सकती है जब ऑनलाइन उपलब्ध सामग्री से 1994 के गर्भधारण पूर्व और जन्म-पूर्व नैदानिक तकनीक अधिनियम (लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध) की धारा 22 (जन्म-पूर्व लिंग के निर्धारण से संबंधित विज्ञापनों पर प्रतिबंध) (Section 22 (prohibition of advertisement relating to pre-natal determination of sex) under the Pre-conception and Pre-natal Diagnostic Techniques (Prohibition of Sex Selection) (PCPNDT) Act of 1994) का उल्लंघन होता हो|
  • यदि कोई भारत में चिकित्सकीय पर्यटन का विकास करने का विचार रखता है तो उसे यह भी विचार करना होगा कि कोई भी सामग्री इस अधिनियम की धारा 22 के अंतर्गत निर्धारित नियमों का उल्लंघन ना करती हो|
  • सॉलिसिटर जनरल (Solicitor-General) रंजीत कुमार द्वारा केंद्र का प्रतिनिधित्व करते हुए कहा गया कि धारा 22 के तहत लगाया गया प्रतिबंध केवल जन्म-पूर्व लिंग निर्धारण अथवा जानकारी देने के लिये छपाए गए सशुल्क विज्ञापनों पर ही लागू किया गया है, अन्यत्र नहीं|

सर्वोच्च न्यायालय को आश्वासन

  • गौरतलब है कि तीन सर्च इंजनों माइक्रोसॉफ्ट, गूगल इंडिया और याहू इंडिया ने सर्वोच्च न्यायालय को यह आश्वासन दिया है कि वे पीएनपीसीडीटी अधिनियम (PNPCDT Act) का उल्लंघन करने वाले विज्ञापन प्रकाशित नहीं करेंगे और न ही उन्हें प्रायोजित करेंगे|
  • इन तीनों सर्च इंजनों के अनुसार, उन्होंने अवैध सामग्री को खोजने तथा उसे हटाने के लिये पहले से ही विशेषज्ञों को नियुक्त कर दिया है|
  • इसके अतिरिक्त राज्य स्तरों पर भी धारा 22 के उल्लंघन से संबंधित आक्रामक सामग्री को हटाने के लिये नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की जा चुकी है|
  • यदि किसी मामले में नोडल अधिकारियों को अवैध ऑनलाइन सामग्री का पता चलता है तो वे सर्च इंजन के विशेषज्ञों से बातचीत करेंगे तथा ये विशेषज्ञ ऐसी सूचनाओं को प्राप्त होने के 36 घंटों के अंदर हटा देंगे|
  • इसके बाद ये विशेषज्ञ नोडल अधिकारियों को इन सूचनाओं के संबंध में की कई कार्यवाही से संबंधित एक रिपोर्ट भी सौंपेंगे|

पीसीपीएनडीटी अधिनियम,1994

  • गर्भधारण पूर्व और जन्म-पूर्व नैदानिक तकनीक अधिनियम,1994 (Pre-Conception and Pre-Natal Diagnostic Techniques Act – PCPNDT) भारतीय संसद का एक अधिनियम है, जिसे महिला भ्रूण हत्या को रोकने तथा भारत के घटते लिंगानुपात को सुधारने के लिये लागू किया गया था|
  • यह अधिनियम जन्म-पूर्व लिंग निर्धारण पर प्रतिबंध लगाता है|
  • इस अधिनियम को लागू करने का मुख्य उद्देश्य गर्भधारण के पश्चात् लिंग निर्धारण तकनीकों के उपयोग को प्रतिबंधित करना और लिंग निर्धारण के पश्चात् गर्भपात के लिये जन्म-पूर्व नैदानिक तकनीक के दुरूपयोग पर रोक लगाना है|
  • इस अधिनियम के अंतर्गत आने वाले अपराधिक कृत्यों में गैर-मान्यता प्राप्त इकाइयों में जन्म-पूर्व नैदानिक तकनीक का संचालन करना अथवा उसमें सहायता करना, पुरुष और महिला का लिंग निर्धारण करना, इस अधिनियम में वर्णित उद्देश्यों के अतिरिक्त किसी अन्य उद्देश्य के लिये पीएनडी परीक्षण करना, किसी भी अल्ट्रा साउंड मशीन अथवा भ्रूण का लिंग निर्धारण करने में सक्षम किसी उपकरण को बेचना, उनका वितरण करना, उन्हें उपलब्ध कराना एवं किराये पर देना शामिल है|
  • इस अधिनियम में सभी नैदानिक प्रयोगशालाओं, सभी आनुवंशिक परामर्श केन्द्रों, आनुवंशिक प्रयोगशालाओं, आनुवंशिक क्लीनिकों और अल्ट्रासाउंड क्लीनिकों के अनिवार्य पंजीकरण का भी प्रावधान है|
  • प्रौद्योगिकी के नियमन में सुधार करने हेतु जन्म पूर्व लिंग निर्धारण (विनियमन और दुरूपयोग की रोकथाम) अधिनियम,1994 का वर्ष 2003 में संशोधन कर इसका नाम गर्भधारण पूर्व और जन्म-पूर्व नैदानिक तकनीक (लिंग चयन की रोकथाम) अधिनियम कर दिया गया|
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