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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

संसाधन और सुरक्षा

  • 07 Feb 2020
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

संसाधनों का वितरण

मेन्स के लिये:

ऊर्जा सुरक्षा संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

कनाडा स्थित यूएन यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट फॉर वॉटर, एनवायरनमेंट एंड हेल्थ (UNU-INWEH) के एक नए अध्ययन के अनुसार, नगर निगम के अपशिष्ट जल से मूल्यवान ऊर्जा, कृषि पोषक तत्त्वों और जल को पुनर्प्राप्त किया जा सकता है।

मुख्य बिंदु:

  • यह अध्ययन जल, पोषक तत्त्वों और ऊर्जा के स्रोत के रूप में अपशिष्ट जल की संभावनाओं में महत्त्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।
  • यह अध्ययन चक्रीय अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे बढ़ने पर बल देता है।

चक्रीय अर्थव्यवस्था:

  • इसमें एक ऐसी वैकल्पिक व्यवस्था की अवधारणा पर काम किया जाता है जो टिकाऊ (Sustainable) हो और उसमें नवीन संसाधनों का इस्तेमाल न्यूनतम हो।
  • इसमें एक बार इस्तेमाल करो और फेंको (Use Once & Throw) मॉडल की जीवनशैली में बदलाव की बात की जाती है। यह रैखिक अर्थव्यवस्था के विपरीत है।
  • यह एक पुनर्सर्जक व्यवस्था है जिसमें निविष्ट संसाधन, बर्बादी, उत्सर्जन, ऊर्जा लीकेज आदि को विभिन्न उपाय अपनाकर न्यूनतम कर दिया जाता है।
  • संसाधनों की कमी और अभाव जैसी परिस्थितियों में संसाधनों का न्यायोचित उपयोग केवल संसाधन सक्षमता या दक्षता से संभव है।
  • चक्रीय अर्थव्यवस्था में गौण संसाधन अर्थात् अनुपयोगी सामग्री का इस्तेमाल वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है।
  • संसाधन सक्षमता और चक्रीय अर्थव्यवस्था न केवल भौतिक जीवन चक्र में, बल्कि खपत के बाद के चरण में भी सतत् विकास के प्रमुख तत्त्व हैं।

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अध्ययन में अनुमानित आंकड़े:

  • दुनिया भर में हर साल लगभग 380 बिलियन क्यूबिक मीटर (m³ = 1000 लीटर) अपशिष्ट जल का उत्पादन किया जाता है
  • अपशिष्ट जल में निहित ऊर्जा: यह 158 मिलियन घरों को बिजली प्रदान कर सकती है यह संयुक्त राज्य अमेरिका और मैक्सिको के सभी घरों की संख्या के बराबर है।
  • प्रमुख पोषक तत्त्व: अपशिष्ट जल में 16.6 मिलियन मीट्रिक टन नाइट्रोजन, 3 मिलियन मीट्रिक टन फॉस्फोरस और 6.3 मिलियन मीट्रिक टन पोटेशियम मौजूद है, यह मात्रा NPK की वैश्विक कृषि मांग के 13.4% भाग की पूर्ति कर सकती है।
  • मीथेन की प्राप्ति: 380 बिलियन वर्ग मीटर अपशिष्ट जल से प्राप्त ऊर्जा का मूल्य 53.2 बिलियन वर्ग मीटर मीथेन के मूल्य से अधिक होने का अनुमान है। यह 158 मिलियन घरों तक या 474 मिलियन से 632 मिलियन लोगों को बिजली प्रदान करने के लिये पर्याप्त है।
  • पुन: प्रयोज्य जल: अपशिष्ट जल से पुनर्प्राप्त पानी की मात्रा 31 मिलियन हेक्टेयर तक बढ़ सकती है, यह यूरोपीय संघ में लगभग 20% खेतों के बराबर है।

अन्य निष्कर्ष:

  • एशिया सबसे बड़ा अपशिष्ट उत्पादक है जो विश्व का लगभग 42% शहरी अपशिष्ट जल का उत्पादन करता है और 2030 तक इसके बढ़कर 44% तक होने का अनुमान है। अपशिष्ट जल में मौजूद पोषक तत्त्व लगभग $ 13.6 बिलियन का राजस्व उत्पन्न कर सकते हैं।

अपशिष्ट से ऊर्जा प्रोज़ेक्ट:

बढ़ते औद्योगिकीकरण, शहरीकरण और जीवन के पैटर्न में परिवर्तन ने आर्थिक विकास के साथ-साथ नवीन पर्यावरणीय समस्याओं को जन्म दिया है। ऐसे में प्रौद्योगिकी विकास ने विकेंद्रिकरण ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा के उत्पादन करने में मदद की है, साथ में कचरे के सुरक्षित निपटान में भी प्रमुख भूमिका निभाई है।

अध्ययन का महत्व:

  • SDG 6 जो स्वच्छ जल और स्वच्छता का लक्ष्य रखता है, की प्रति संभव हो सकेगी।
  • इस डेटा का उपयोग जल संसाधन प्रबंधन, प्रदूषण नियंत्रण उपाय, पोषक तत्त्व प्रबंधन ऊर्जा उत्पादन प्रणाली आदि क्षेत्रों में राष्ट्रीय कार्ययोजना विकसित करने में किया जा सकता है।
  • राष्ट्रों की प्रगति के लिये विनियामक की वित्तीय वातावरण में हरित-अर्थव्यवस्था में निवेश करने की आवश्यकता है जहाँ नगरपालिका-अपशिष्ट जल निजी क्षेत्र की लागत वसूली में पर्याप्त योगदान देकर इसे व्यावसायिक रूप प्रदान कर सकता है।
  • छोटे और मध्यम आकार के शहर जहाँ आसपास के उपनगरों में कृषि की जाती है, वहाँ यह बहुत कारगर हो सकती है।
  • ‘अपशिष्ट से ऊर्जा’ की प्राप्ति में यह भारतीय ऊर्जा प्रणालियों के अनुकूल है।
  • साथ ही भारतीय राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (INDCs) लक्ष्यों के अनुकूल है।

स्रोत: द हिंदू

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