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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रेपो रेट में कटौती: महत्त्व व प्रभाव

  • 03 Aug 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ?
विदित हो कि आरबीआई ने करीब 10 माह के बाद रेपो रेट में चौथाई फीसद की कटौती की घोषणा की है। दरअसल, औद्योगिक उत्पादन की खस्ताहाल स्थिति के मद्देनज़र उद्योग जगत व विशेषज्ञों ने नीतिगत ब्याज दर में आधा फीसद कमी की उम्मीद लगाई थी। आरबीआई का कहना है कि महँगाई दर अभी काबू में है, लेकिन अगले डेढ़ से दो वर्षों में यह बढ़ सकती है। हालाँकि, अगली तिमाही में रेपो रेट में फिर से कटौती की जा सकती है।

प्रमुख बिंदु

  • मौद्रिक नीति की समीक्षा के लिये गठित छह-सदस्यीय समिति (एमपीसी) की सिफारिश पर आरबीआई गवर्नर उर्जित पटेल ने रेपो रेट में 0.25 फीसद की कमी करते हुए छह फीसद करने की घोषणा की।
  • विदित हो कि वर्ष 2010 के बाद यानी करीब सात साल में यह सबसे कम रेपो रेट दर है। इतना ही नहीं, भारत पहला ऐसा एशियाई देश है, जहाँ इस साल ब्याज दर में कटौती का एलान किया गया है।
  • इस कटौती के साथ ही साथ रिवर्स रेपो रेट दर घटकर 5.75 फीसद पर आ गई है। रिज़र्व बैंक दूसरे वाणिज्यिक बैंकों एवं वित्तीय संस्थानों को अल्पकाल के लिये जिस दर से पैसा उधार देता है, उसे रेपो रेट कहते हैं, जबकि रिवर्स रेपो रेट वह दर है, जिस पर दूसरे बैंक अल्पकाल के लिये रिज़र्व बैंक को पैसा उधार देते हैं।

क्यों बरतनी चाहिये थी सावधानी ?

  • हाल ही जीएसटी लागू होने के बाद सेवा क्षेत्र के लिये 18 प्रतिशत का स्लैब तय किया गया है, जो कि पहले 15 प्रतिशत था।
  • 7वें वेतन आयोग के भत्ते लागू हो जाने के बाद उपभोक्ता की क्रय शक्ति में वृद्धि देखने को मिलेगी।
  • विदित हो कि मुद्रास्फीति की दर में जो यह गिरावट देखने को मिल रही है, वह खाद्य वस्तुओं के मूल्यों में कमी के कारण है और इस बात कि कोई गारंटी नहीं है कि मूल्यों में यह गिरावट बनी ही रहेगी। 

रेपो रेट और मुद्रास्फीति में संबंध

  • जैसा कि हम जानते हैं कि बैंकों को अपने काम-काज़ के लिये अक्सर बड़ी रकम की ज़रूरत होती है।
  • बैंक इसके लिये आरबीआई से अल्पकाल के लिये कर्ज़ मांगते हैं और इस कर्ज़ पर रिज़र्व बैंक को उन्हें जिस दर से ब्याज देना पड़ता है, उसे ही रेपो रेट कहते हैं।
  • रेपो रेट कम होने से बैंकों के लिये रिज़र्व बैंक से कर्ज़ लेना सस्ता हो जाता है और तभी बैंक ब्याज दरों में भी कटौती करते हैं, ताकि ज़्यादा से ज़्यादा रकम कर्ज़ के तौर पर दी जा सके।
  • मुद्रास्फीति बढ़ने का एक मतलब यह भी है कि वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि के कारण, बढ़ी हुई क्रय शक्ति के बावजूद लोग पहले की तुलना में वर्तमान में कम वस्तुओं एवं सेवाओं का उपभोग कर पा रहें हैं।
  • ऐसी स्थिति में आरबीआई का कार्य यह है कि वह बढ़ती हुई मुद्रास्फीति पर नियंत्रण रखने के लिये बाज़ार से पैसे को अपनी तरफ खींच ले।
  • अतः आरबीआई रेपो रेट में बढ़ोतरी कर देता है, ताकि बैंकों के लिये कर्ज़ लेना महँगा हो जाए और वे अपनी बैंक दरों को बढ़ा दें, जिससे कि लोग कर्ज़ न ले सकें।
  • पिछले कुछ समय से मुद्रास्फीति में लगातार गिरावट देखी जा रही है, ऐसे में आरबीआई से यह आपेक्षित था कि वह रेपो रेट में कटौती करे।

क्या होगा प्रभाव ?

  • आरबीआई के इस निर्णय का प्रभाव यह होगा कि अब बैंकों के पास आसान शर्तों पर कर्ज़ देने के लिये अधिक पैसा होगा। गौरतलब है कि कर्ज़ दरें सस्ती होने से अर्थव्यवस्था कुछ इस तरह से लाभान्वित होती है:

→ मकान, कार या अन्य उपभोक्ता वस्तुओं के लिये कम ब्याज दर पर कर्ज़ उपलब्ध होता है।
→ जब ब्याज की दर कम होती है तो लोग खरीदारी के लिये उत्साहित होते हैं।
→ जब लोग खरीदारी के लिये उत्साहित होते हैं तो बाज़ार में मांग बढ़ती है।
→ जब बाज़ार में माँग बढ़ती है तो अधिक उत्पादन की स्थितियाँ बनती हैं।
→ जब अधिक उत्पादन की परिस्थितियाँ बनती हैं, तब निवेशक नए निवेश के लिये प्रेरित होते हैं।
→ जब निवेश बढ़ता है तो आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होती हैं।
→जब आर्थिक गतिविधियाँ तेज़ होती हैं तो रोज़गार के अवसर भी बढ़ते हैं।

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