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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पवन ऊर्जा पर पुनर्विचार

  • 10 May 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?
पश्चिमी घाटों की अनावृत चोटियाँ एक प्राचीन पारिस्थितिकी तंत्र हैं जो असंख्य जीवों की प्रजातियों से परिपूर्ण होने के साथ-साथ पवन और पवनचक्कियों की अपार संभावनाओं से भरे हुए हैं किन्तु हाल के वैश्विक शोध से इस तथ्य के प्रमाण मिले हैं कि इससे पारिस्थितिकी तंत्र पर अप्रत्यक्ष प्रभाव धीरे-धीरे प्रकट हो रहे हैं| वैश्विक वैज्ञानिक अनुसंधान ने वन्यजीवन पर पवनचक्कियों के प्रभाव को उजागर किया है।

पवन ऊर्जा की संभावनाएं 

  • चूंकि भारत 175 गीगा वाट के महत्वाकांक्षी नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्य को हासिल करने का प्रयास कर रहा है, इसलिये पवनचक्कियां कम से कम 65 वर्ग किमी वन क्षेत्रों में लाई जा रही हैं, जिसमें 30 या उससे अधिक वर्ग किमी के लिये अनुमोदन लंबित हैं।
  • भारत का संभावित पवन ऊर्जा परिक्षेत्र पश्चिमी घाट (केरल से गुजरात तक) और पूर्वी घाट के एक बड़े हिस्से में है।

पर्यावरणीय प्रभाव 

  • पर्यावरणीय प्रभाव अक्सर चिंता का विषय रहा है| अक्सर स्थानीयकृत विरोध या नागरिक कार्रवाई याचिकाएं दाखिल होती रही हैं| 
  • इन्हें स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र में अपूरणीय परिवर्तनों को रोकने के लिये नीति में स्पष्ट किया जाना चाहिये।
  • पोलैंड में, पोलैंड के पवनचक्की क्षेत्रों में कृंतकों(rodent) के बीच उच्च तनाव का स्तर देखा गया है, जबकि पुर्तगाल में, भेड़िया प्रजनन स्थलों के नजदीक पवनचक्की होने के कारण कम प्रजनन दर की स्थिति उत्पन्न हो गई है।
  • टेक्सास में, विंडफार्म के भीतर तटीय तालाबों में लाल बालों वाले बत्तखों की संख्या में 77% की कमी आई है।

भारतीय पारिस्थितिक तंत्र पर प्रभाव 

  • भारत में स्थिति इससे अलग नहीं है। वन के प्रत्येक वर्ग किलोमीटर में जैव विविधता के बदतर स्थिति पर विचार किया जा सकता है।
  • उदाहरण के लिये, राजस्थान में ट्रांसमिशन लाइनों और कताई ब्लेड ने गंभीर रूप से लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड की मृत्यु दर में वृद्धि की है।
  • आंध्र प्रदेश के पवन खेतों के अध्ययन में प्रत्यक्ष टक्कर की घटनाएँ देखने को मिली है।
  • कर्नाटक में, जहां 6,000 एकड़ वन भूमि को पवनचक्कियों के लिये बदल दिया गया है, जिससे इस बात के सबूत मिले हैं कि इससे न केवल पक्षी, बल्कि उभयचर और स्तनधारी भी प्रभावित हो सकते हैं।

वैज्ञानिक अध्ययन 

  • इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बेंगलुरू के मारिया ठाकर और उनकी टीम पवनचक्की के चारों ओर फैन-थ्रोटेड लिजार्ड(fan-throated lizard) का अध्ययन कर रही है।
  • उन्होंने इस अध्ययन के दौरान पाया है कि पक्षियों के अलावा, छोटे कृन्तक और स्तनधारी लगातार घनघनाते टर्बाइनों के कारण भी इन पैबंदों(patches) से बचते हैं।
  • इस परभक्षी रहित सूक्ष्म पर्यावरण में, लिजार्ड की आबादी में वृद्धि हुई है, जिससे प्रतिस्पर्धा में वृद्धि और उपभोग्य संसाधनों में कमी आई है। पारिस्थितिकी तंत्र का संपूर्ण स्वरूप ही बदल गया है।
  • खाद्य श्रृंखला परस्पर जुड़ी हुई है, और नित नई परियोजनाओं के अनुपालन से प्रभावित हो रही है| 

निष्कर्ष 
स्पष्ट रूप से इस विषय पर गंभीरता से विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है ताकि सतत विकास की रह में बाधा बनती इन समस्याओं का समाधान किया जा सके|

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