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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एनबीएफसी के लिये आउटसोर्सिंग से संबंधित नए निर्देश

  • 11 Nov 2017
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक ने एनबीएफसी (Non-banking financial companies) द्वारा आउटसोर्सिंग के ज़रिये प्रदान की जाने वाली वित्तीय सेवाओं में जोखिमों के प्रबंधन और नियमावली के संबंध में नए निर्देश जारी किये हैं और अगले दो महीनों में इन नियमों का पालन सुनिश्चित किया जाना तय किया गया है।

क्या हैं नए निर्देश?

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (एनबीएफसी) अपने ग्राहकों के लिये केवाईसी (अपने ग्राहक को जानो) मानदंड तय करना, ऋण की मंज़ूरी देना, निवेश पोर्टफोलियो का प्रबंधन करना और ‘इंटरनल ऑडिट’ (internal audit) जैसे ‘कोर प्रबंधन’ कार्यों को आउटसोर्स नहीं कर सकती हैं।
  • एनबीएफसी को एक शिकायत निवारण व्यवस्था (grievance redressal machinery) के गठन के लिये कहा गया है।
  • साथ ही यह भी स्पष्ट होना चाहिये कि एनबीएफसी की शिकायत निवारण मशीनरी आउटसोर्स एजेंसी द्वारा प्रदान की गई सेवाओं से संबंधित मामले भी निपटाएगी।
  • वित्तीय सेवा प्रदाताओं की संदिग्ध गतिविधियों पर नज़र रखने और वित्तीय लेन-देन की रिपोर्ट बनाने के दायित्व का पालन एनबीएफसी को ही करना होगा।

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (एनबीएफसी) क्या हैं?

  • गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस संस्था को कहते हैं जो कंपनी अधिनियम 1956 के अंतर्गत पंजीकृत है और जिसका मुख्य काम उधार देना तथा विभिन्न प्रकार के शेयरों, प्रतिभूतियों, बीमा कारोबार तथा चिटफंड से संबंधित कार्यों में निवेश करना है।
  • गैर बैंकिंग वित्‍त कंपनियाँ भारतीय वित्तीय प्रणाली में महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं। यह संस्‍थाओं का विजातीय समूह है (वाणिज्यिक सहकारी बैंकों को छोड़कर) जो विभिन्‍न तरीकों से वित्तीय मध्‍यस्‍थता का कार्य करता है जैसे:

♦  जमा स्‍वीकार करना।
♦  ऋण और अग्रिम देना।
♦  प्रत्‍यक्ष अथवा अप्रत्‍यक्ष रूप में निधियाँ जुटाना।
♦  अंतिम व्‍यय कर्त्ता को उधार देना।
♦  थोक और खुदरा व्‍यापारियों तथा लघु उद्योगों को अग्रिम ऋण देना।

 ‘प्रणालीगत रूप से महत्त्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ’?

  • जिन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की परिसंपत्तियों का आकार पिछले लेखापरीक्षा के अनुसार 100 करोड़ रुपए या उससे अधिक हो उन्हें प्रणालीगत रुप से महत्त्वपूर्ण गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ माना जाता है।
  • इस प्रकार से वर्गीकरण किये जाने का तर्क यह है कि इन गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों की गतिविधियों का हमारे देश की वित्तीय-स्थिरता पर अत्यधिक प्रभाव देखने को मिलेगा।
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