लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पोक्सो अधिनियम के संबंध में उम्र का सवाल

  • 28 Jul 2017
  • 6 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यौन अपराधों से संबंधित बाल संरक्षण अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) के प्रावधानों को मानसिक रूप से मंद वैसे वयस्कों पर जिनकी मानसिक आयु एक बच्चे के समान है, लागू करने से इंकार कर दिया है |

महत्त्वपूर्ण बिंदु

  • संभवतः ऐसा करने का एक कारण यह भी है कि पोक्सो के अंतर्गत ‘बच्चा’ शब्द की सटीक व्याख्या के रूप में यह स्पष्ट किया गया है कि यह शब्द 18 वर्ष से कम आयु के लोगों को प्रदर्शित करता है तथा इसके अंतर्गत उन वयस्कों को भी शामिल किया जाएगा जिनकी मानसिक आयु 18 वर्ष से कम है| 
  • मानसिक रूप से वयस्क परंतु जैविक रूप से 18 वर्ष से कम आयु वाले लोगों को इसके अंतर्गत स्थान नहीं दिया गया है|
  • इस अधिनियम के अंतर्गत इस बात पर विशेष ध्यान दिया गया है कि अपर्याप्त बौद्धिक क्षमता वाले वयस्क और बच्चे के साथ यौन अपराध के मामले में किस प्रकार का व्यवहार किया जाए क्योंकि दोनों ही में परिस्थितियों को समझने अथवा उनका विरोध करने की क्षमता नहीं होती है| 
  • इसमें कोई संदेह नहीं है कि पोक्सो के ढाँचे के अंतर्गत जैविक और मानसिक आयु दोनों के विषय में अधिक से अधिक स्पष्टीकरण एवं प्रावधानों को लागू करने संबंधी कोई भी विस्तृत परिभाषा अधिनियम से संबद्ध संवेदनशील लोगों के वर्ग को लाभ अवश्य पहुँचाएगी|
  • संभवतः यही कारण है कि न्यायालय ने इस संबंध में किसी भी न्यायिक हस्तक्षेप से निपटने के लिये चुनौतीपूर्ण मार्ग को चुना है| या यूँ कहे की  न्यायालय इस प्रश्न का उत्तर खोजने का भी प्रयास किया जा रहा है कि क्या जैविक एवं मानसिक उम्र संबंधी इस विवादास्पद धारणा का विस्तार करना पोक्सो के अधिकार क्षेत्र में है अथवा नहीं|

पोक्सो क्या है?

  • पोक्सो, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण करने संबंधी अधिनियम (Protection of Children from Sexual Offences Act – POCSO) का संक्षिप्त नाम है| 
  • संभवतः मानसिक आयु के आधार पर इस अधिनियम का वयस्क पीड़ितों तक विस्तार करने के लिये उनकी मानसिक क्षमता के निर्धारण की आवश्यकता होगी| 
  • इसके लिये सांविधिक प्रावधानों और नियमों की भी आवश्यकता होगी| जिन्हें विधायिका अकेले ही लागू करने में सक्षम है|

न्यायालय का मत

  • न्यायालय के मतानुसार, किसी की मानसिक क्षमता के आधार पर किसी वयस्क के साथ बच्चे के समान व्यवहार करना, मौज़ूदा कानून (यौन अपराधों से बाल संरक्षण) में प्रतिरोध उत्पन्न कर सकता है|
  • न्यायालय द्वारा यह भी स्पष्ट किया गया कि किसी व्यक्ति की मानसिक क्षमता के विभिन्न स्तर हो सकते हैं और इनमें से जो व्यक्ति हल्के, मध्यम या मंदता की सीमा रेखा पर हैं वैसे लोगों को सामान्य सामाजिक परिस्थितियों में जीने  योग्य माना जाता है|

मुद्दा क्या था?

  • न्यायालय के समक्ष मानसिक पक्षाघात वाली बलात्कार की शिकार एक 38 वर्षीय महिला का मामला था| पीड़िता की माँ के द्वारा उक्त मामले को पोक्सो के अंतर्गत एक विशेष न्यायालय को स्थानांतरित करने की अपील की गई थी| उसके अनुसार, उसकी बेटी की मानसिक उम्र मात्र छह वर्ष की है| अत: इस मामले की सुनवाई पोक्सो के अंतर्गत की जानी चाहिये| 
  • इस संबंध में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा यह निर्णय दिया गया कि न्यायाधीशों को ऐसे मामलों में सबूतों के आधार पर निर्णय करते समय पीड़ितों की मंदता और उनके समझने के स्तर को भी ध्यान में रखना चाहिये| 
  • न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह निराशाजनक होगा यदि पीड़ित के प्रभावी तौर पर सम्पर्क न कर सकने अथवा उसके शब्दों को समझने में न्यायालय की असमर्थता के कारण ऐसे किसी मामले का समय पर उचित समाधान नहीं किया जा रहा है|
  • ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि विधायिका पीड़ित की मानसिक क्षमता का निर्धारण करने के लिये क़ानूनी प्रावधानों की शुरुआत पर विचार करें ताकि अपर्याप्त मानसिक विकास वाले पीड़ितों द्वारा प्रस्तुत पक्षों का उपयोग यौन अपराधियों के ख़िलाफ़ प्रभावी तौर पर कार्यवाही करने के रूप में किया जा सकें|
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2