लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

प्रारंभिक परीक्षा

प्रीलिम्स फैक्ट्स : 6 जून, 2018

  • 06 Jun 2018
  • 14 min read

आरबीआई के डिप्टी गवर्नर : महेश कुमार जैन

आईडीबीआई बैंक के पूर्व प्रबंध निदेशक महेश कुमार जैन को भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) का डिप्टी गवर्नर नियुक्त किया गया है। श्री जैन को एस.एस. मुंद्रा के सेवानिवृत्त हो जाने के बाद नियुक्त किया गया है। उनका कार्यकाल तीन वर्ष का होगा।

  • वित्तीय क्षेत्र नियामक नियुक्ति समिति द्वारा यह नियुक्ति की गई है। इस समिति में आरबीआई के गवर्नर, वित्तीय सेवाओं के सचिव के अलावा अन्य स्वतंत्र सदस्य शामिल होते हैं।

महेश कुमार जैन

  • इससे पहले वे इंडियन बैंक के प्रबंध निदेशक के तौर भी काम कर चुके हैं।
  • इसके अलावा वे बैंकिंग क्षेत्र की कई समितियों जैसे कि बसंत सेठ समिति, का भी हिस्सा रहे हैं। इस समिति को सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की ऑडिट प्रणाली की आंतरिक एवं समवर्ती समीक्षा तथा संशोधन करने हेतु गठित किया गया था।

डिप्टी गवर्नर

  • आरबीआई अधिनियम के अनुसार, केंद्रीय बैंक में चार डिप्टी गवर्नर होने चाहिये। इनमें से दो डिप्टी गवर्नर, एक वाणिज्यिक बैंकर तथा एक अर्थशास्त्री होना चाहिये। 
  • आरबीआई के डिप्टी गवर्नर को सवा दो लाख रुपए का तय मासिक वेतन और अन्य भत्ते दिये जाते हैं।

वित्तीय साक्षरता सप्ताह

भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 4 जून से 8 जून, 2018 तक ‘वित्तीय साक्षरता सप्ताह’ का आयोजन किया जा रहा है। 'वित्तीय साक्षरता सप्ताह’ की थीम- ‘ग्राहकों का संरक्षण’ (Customer Protection) है। 

  • वित्तीय साक्षरता सप्ताह आयोजित करने का उद्देश्य लोगों को डिजीटल बैंकिंग के साथ-साथ सुरक्षित बैंकिंग प्रणाली के बारे में जागरूक करना है।
  • ग्राहकों को बैंकिंग संबंधी जोखिमों से सचेत करने तथा अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) द्वारा 2016 से ‘वित्तीय साक्षरता सप्ताह’ का आयोजन किया जा रहा है।

मुख्य बिंदु

  • इस कार्यक्रम के दौरान बड़े पैमाने पर अभियान चलाकर ग्राहकों को चार विषयों के बारे में जानकारी दी जा रही है। इनमें फर्जी निवेश योजनाओं के झाँसे में न आने, बैंकिंग संबंधी शिकायत के लिये 'बैंकिंग लोकपाल' व्यवस्था का प्रयोग, सुरक्षित डिजिटल लेन-देन के संबंध में आवश्यक जानकारी प्रदान करने तथा अनधिकृत इलेक्ट्रॉनिक बैंकिंग लेन-देन में ग्राहक व बैंकों की देयता के बारे में जानकारी प्रदान की जा रही है।
  • वित्तीय रूप से पिछड़े एवं वंचित क्षेत्रों में सभी बैंकिंग शाखाओं में कार्यशालाओं, शिविरों, प्रश्नोत्तरी तथा सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है।
  • आरबीआई द्वारा प्रदत्त जानकारी के अनुसार, एटीएम से असफल लेन-देन, ग्राहक की जानकारी के बिना बैंक खाते में शुल्क लगाने आदि के संबंध में कोई भी ग्राहक अपनी नज़दीकी शाखा में शिकायत कर सकता है। यदि ग्राहक की शिकायत के संदर्भ में एक महीने के अंदर समाधान नहीं होता है तो वह बैंकिंग लोकपाल के समक्ष इसकी शिकायत कर सकता है।

वित्तीय साक्षरता

  • वित्तीय साक्षरता का अर्थ है वित्त को समझने की क्षमता। 
  • ‘वित्तीय शिक्षा’ का अर्थ होता है, ‘धन’ के बारे में सही जानकारी प्राप्त करना, जिससे हम अपने ‘धन’ का सही प्रबंधन करते हुए, अपने वित्तीय भविष्य को सुरक्षित एवं बेहतर बना सकेंl

बैंकिंग लोकपाल योजना, 2006

इस योजना को 1 जनवरी, 2006 में शुरू किया गया था। बैंकिंग लोकपाल योजना 2006 बैंकों द्वारा दी जा रही कतिपय सेवाओं से संबंधित बैंक ग्राहकों की शिकायतों के समाधान पर कार्रवाई करती है। बैंकिंग लोकपाल योजना पहली बार वर्ष 1995 में लागू की गई थी। वर्ष 2002 में इसे संशोधित किया गया। 

बैंकिंग लोकपाल

  • यह भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नियुक्त वह व्‍यक्ति होता है जो बैंकिंग सेवाओं में कतिपय कमियों के संबंध में ग्राहकों की शिकायतों का समाधान करता है। इस योजना के अंतर्गत सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय बैंक और अनुसूचित प्राथमिक सहकारी बैंक शामिल हैं।
  • यह एक अर्द्ध न्‍यायिक प्राधिकारी होता है। विचार-विमर्श के माध्‍यम से शिकायतों के समाधान को सुविधाजनक बनाने के लिये इसे दोनों पक्षों - बैंक और ग्राहक को बुलाने का अधिकार है। इनके कार्यालय अधिकांशत राज्‍यों की राजधानियों में स्थित होते हैं।
  • बैंकिंग लोकपाल भारत में अपना खाता रखने वाले अनिवासी भारतीयों से विदेश से उनके विप्रेषित जमाराशियों और बैंक संबंधी अन्‍य मामलों के संबंध में प्राप्‍त शिकायतों पर विचार कर सकता है।
  • बैंकिंग लोकपाल ग्राहकों की शिकायतों का समाधान करने के लिये कोई शुल्‍क वसूल नहीं करता है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा बैंकिंग लोकपाल योजना का गठन बैंकों के ग्राहकों को एक शीघ्र शिकायत निवारण व्‍यवस्‍था उपलब्‍ध कराने के लिये किया गया है। यह बैंकिंग सेवाओं से संबंधित शिकायतों तथा इस योजना में यथा निर्दिष्‍ट अन्‍य मामलों के समाधान हेतु एक सांस्थिक (Statistical) और विधिक ढाँचा उपलब्‍ध कराता है।
  • रिज़र्व बैंक अपने सेवारत वरिष्‍ठ अधिकारियों की भी बैंकिंग लोकपाल के रुप में नियुक्ति करेगा और बेहतर प्रभाव के लिये इसे पूर्णरुप से निधि भी प्रदान करेगा।

बैंकिंग लोकपाल किस प्रकार के मामलों पर विचार कर सकता है?

  • किसी भी प्रयोजन हेतु अदायगी के लिये प्रद्त कम मूल्‍य वर्ग के नोटों का बिना पर्याप्‍त कारण के स्‍वीकार नहीं किया जाना तथा इस संबंध में किसी भी तरह का कमीशन वसूल करना।
  • बैंक द्वारा अनु‍रक्षित बचत, चालू या अन्‍य खाते में जमाराशियों पर लागू ब्‍याज दर के संबंध में रिज़र्व बैंक के निर्देश (यदि कोई हों) का पालन न करना, जमाराशियों का भुगतान न करना, पार्टियों के खातों में आय जमा न करना या विलंब करना।
  • निर्यातकों के लिये निर्यात प्राप्तियॉं मिलने, निर्यात बिलों पर कार्रवाई, बिलों की वसूली आदि में विलंब, बशर्ते कि ऐसी शिकायतें बैंक के भारत में परिचालन से संबंधित हों।
  • एटीएम/डेबिट कार्ड परिचालन या क्रेडिट कार्ड परिचालन पर रिज़र्व बैंक के अनुदेशों का बैंक अथवा उनके अनुषंगियों द्वारा अनुपालन न किया जाना।
  • पेंशन संवितरण में विलंब अथवा संवितरण न करना (कुछ हद तक इस शिकायत हेतु संबंधित बैंक द्वारा की गई कार्रवाई के लिये बैंक को उत्तरदायी ठहरा सकते हैं लेकिन उनके कर्मचारियों के मामले में नहीं)।
  • सरकारी प्रतिभूतियाँ जारी करने से इनकार अथवा विलंब करना, या सेवा प्रदान करने में असमर्थता अथवा सेवा प्रदान करने या शोधन में विलंब करना।
  • बिना पर्याप्‍त सूचना अथवा पर्याप्‍त कारण के जमा लेखों को जबरन बंद करना, लेखे बंद करने से इनकार या बंद करने में विलंब करना।

बैंकिंग लोकपाल योजना, 2006, पुरानी बैंकिंग लोकपाल योजना 2002 से किस प्रकार भिन्‍न है?

  • नई योजना का विस्‍तार क्षेत्र 2002 की पूर्व योजना से व्‍यापक है।
  • नई योजना में शिकायतों का ऑनलाइन प्रस्‍तुतीकरण की सुविधा भी उपलब्‍ध है।
  • नई योजना लोकपाल द्वारा पारित अधिनिर्णय के विरुद्ध अपील हेतु बैंक तथा शिकायकर्त्ता दोनों के लिये अतिरिक्त रुप से ‘अपीलीय प्राधिकार’ नामक एक संस्‍था भी उपलब्‍ध कराती है।

भारतीय रिज़र्व बैंक

भारतीय रिज़र्व बैंक की स्थापना भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के प्रावधानों के अनुसार 1 अप्रैल, 1935 को हुई। रिज़र्व बैंक का केंद्रीय कार्यालय प्रारंभ में कोलकाता में स्थपित किया गया था जिसे 1937 में स्थायी रूप से मुंबई में स्थानांतरित किया गया। प्रारंभ में यह निजी स्वामित्व वाला बैंक था, 1949 में राष्ट्रीयकरण के बाद से इस पर भारत सरकार का पूर्ण स्वामित्व है।

उद्देश्य
भारत में मौद्रिक स्थिरता प्राप्त करने की दृष्टि से बैंक नोटों के निर्गम को विनियमित करना तथा प्रारक्षित निधि को बनाएं रखना और सामान्य रूप से देश के हित में मुद्रा व ऋण प्रणाली संचालित करना, अत्यधिक जटिल अर्थव्यवस्था की चुनौती से निपटने के लिये आधुनिक मौद्रिक नीति फ्रेमवर्क रखना, वृद्धि के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना।

केंद्रीय निदेशक बोर्ड
रिज़र्व बैंक का कामकाज केंद्रीय निदेशक बोर्ड द्वारा शासित होता है। भारत सरकार भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम के अनुसार इस बोर्ड को नियुक्‍त करती है।

  • नियुक्ति/नामन चार वर्ष के लिये होता है।
  • गठन : एक सरकारी निदेशक (पूर्णकालिक : गवर्नर और अधिकतम चार उप गवर्नर)।
  • गैर- सरकारी निदेशक (सरकार द्वारा नामित : विभिन्न क्षेत्रों से दस निदेशक और दो सरकारी अधिकारी तथा अन्य : चार निदेशक - चार स्थानीय बोर्डों में से प्रत्येक से एक)।

प्रमुख कार्य
मौद्रिक प्राधिकारी

  • मौद्रिक नीति तैयार करता है, उसका कार्यान्वयन करता है और उसकी निगरानी करता है।
  • उद्देश्य: विकास के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता बनाए रखना।

वित्तीय प्रणाली का विनियामक और पर्यवेक्षक

  • बैंकिंग परिचालन के लिये विस्तृत मानदंड निर्धारित करता है जिसके अंतर्गत देश की बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली काम करती है।
  • उद्देश्यः प्रणाली में लोगों का विश्वास बनाए रखना, जमाकर्त्ताओं के हितों की रक्षा करना और आम जनता को किफायती बैंकिंग सेवाएँ उपलब्ध कराना।

विदेशी मुद्रा प्रबंधक

  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम, 1999 का प्रबंध करता है।
  • उद्देश्यः विदेश व्यापार और भुगतान को सुविधाजनक बनाना तथा भारत में विदेशी मुद्रा बाजार का क्रमिक विकास करना एवं उसे बनाए रखना।

मुद्रा जारीकर्त्ता

  • करेंसी जारी करता है और उसका विनिमय करता है अथवा परिचालन के योग्य नहीं रहने पर करेंसी और सिक्कों को नष्ट करता है।
  • उद्देश्य : आम जनता को अच्छी गुणवत्ता वाले करेंसी नोटों और सिक्कों की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध कराना।

विकासात्मक भूमिका

  • राष्ट्रीय उद्देश्यों की सहायता के लिये व्यापक स्तर पर प्रोत्साहनात्मक कार्य करना।

संबंधित कार्य

  • सरकार का बैंकर : केंद्र और राज्य सरकारों के लिये व्यापारी बैंक की भूमिका अदा करता है; उनके बैंकर का कार्य भी करता है।
  • बैंकों के लिये बैंकर : सभी अनुसूचित बैंकों के बैंक खाते रखता है।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2