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गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम: आवश्यकता और आलोचना

  • 22 Oct 2020
  • 10 min read

प्रिलिम्स के लिये

गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967, भीमा कोरेगाँव युद्ध 

मेन्स के लिये

UAPA की आवश्यकता, इसकी प्रासंगिकता और आलोचना

चर्चा में क्यों?

देश भर के प्रमुख विपक्षी दलों ने संवैधानिक मूल्यों की रक्षा करने के लिये गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) को निरस्त करने का आह्वान किया है।

प्रमुख बिंदु

  • आदिवासी लोगों के अधिकारों के लिये कार्य करने वाले 83 वर्षीय सामाजिक कार्यकर्त्ता स्टेन स्वामी की गिरफ्तारी का विरोध करते हुए विपक्षी दलों के नेताओं ने गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 (UAPA) जैसे कठोर कानून के व्यापक दुरुपयोग के खिलाफ एक मज़बूत आंदोलन करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
  • ध्यातव्य है कि सामाजिक कार्यकर्त्ता स्टेन स्वामी को भीमा कोरेगाँव मामले में गिरफ्तार किया गया है और उन पर भीमा कोरेगाँव की हिंसा में शामिल होने का आरोप लगाया गया है। स्टेन स्वामी के अलावा इस मामले में 15 अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ताओं को भी गिरफ्तार किया गया है।

क्या है गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम?

  • गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम को किसी भी प्रकार की गैर-कानूनी गतिविधि को रोकने और आतंकवाद से निपटने के लिये वर्ष 1967 में शुरू किया गया था।
    • गैर-कानूनी गतिविधियों से तात्पर्य उन कार्यवाहियों से है जो किसी व्यक्ति/संगठन द्वारा देश की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता को भंग करने वाली गतिविधियों को बढ़ावा देती हैं।
  • संसद द्वारा अधिरोपित यह अधिनियम संविधान के अनुच्छेद-19 द्वारा प्रदत्त वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, हथियारों के बिना एकत्र होने और संघ बनाने के अधिकार पर युक्तियुक्त प्रतिबंध लगाता है।
    • इन प्रतिबंधों का उद्देश्य भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करना है।
  • बीते कुछ वर्षों में इस अधिनियम में कई बार संशोधन किये गए हैं तथा इसे और अधिक कठोर बनाया गया है, इसलिये वर्तमान में यह भारत में एक प्रमुख आतंकवाद-रोधी अधिनियम के तौर पर कार्य कर रहा है।

अधिनियम की आवश्यकता

  • वर्ष 1947 में भारत के आज़ाद होने के बाद से ही देश में ऐसे कई संगठन, धार्मिक समूह और आतंकवादी समूह रहे हैं जो भारत की एकता एवं अखंडता को प्रभावित करने के साथ-साथ भारत में गैर-कानूनी गतिविधियों के माध्यम से अशांति फैलाने का प्रयास कर रहे हैं।
  • भारत की आज़ादी के साथ ही भारत के नागरिकों को भारतीय संविधान के तहत व्यापक अधिकार प्रदान किये गए, किंतु जल्द ही सरकार को महसूस होने लगा कि इन अधिकारों पर प्रतिबंध लगाना अति आवश्यक है।
    • उदाहरण के लिये जब वर्ष 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ तो कुछ भारतीय राजनीतिक दल ऐसे भी थे जो चीन का समर्थन कर रहे थे।
  • ऐसे में इन आतंकवादी समूहों और संगठनों को भारत की एकता एवं अखंडता को प्रभावित करने से रोकने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर कुछ हद तक प्रतिबंध अधिरोपित करने के लिये एक मज़बूत कानून बनाना काफी महत्त्वपूर्ण हो गया था।

कठोरतम कानूनों में से एक: UAPA

  • यह अधिनियम सरकार को किसी भी 'गैर-कानूनी संगठन' को 'आतंकवादी संगठन' के रूप में घोषित करने और उसे प्रतिबंधित करने का अधिकार देता है, लेकिन इसी अधिनियम की धारा-36 के तहत यह प्रतिबंध न्यायिक समीक्षा के अधीन है।
  • अधिनियम की धारा-43A और धारा-43B के तहत पुलिस को बिना वारंट के गैर-कानूनी गतिविधियों में शामिल किसी भी व्यक्ति की खोज करने और उसे गिरफ्तार करने का अधिकार है। साथ ही अधिनियम की धारा-43D के तहत पुलिस के पास आरोपियों को बिना चार्जशीट दाखिल किये 30 दिनों के लिये पुलिस हिरासत में रखने का अधिकार है। 
  • UAPA के तहत अभियुक्त के पास अग्रिम जमानत का विकल्प भी नहीं होता है। यही कारण है कि UAPA को भारत के सबसे कठोरतम कानूनों में से एक माना जाता है। 

अधिनियम की आलोचना

  • सर्वप्रथम तो यह कि गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम (UAPA) में आतंकवाद की परिभाषा काफी अनिश्चित और व्यापक है, क्योंकि इसमें लगभग हर तरह के हिंसक कृत्य को शामिल किया गया है, चाहे वह राजनीतिक हो अथवा या गैर राजनीतिक।
    • अधिनियम में शामिल परिभाषा के अस्पष्ट, अनिश्चित और व्यापक होने के कारण इस अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना काफी बढ़ जाती है।
    • उदाहरण के लिये UAPA की धारा 2(o) के तहत भारत की क्षेत्रीय अखंडता पर प्रश्न उठाना एक गैर-कानूनी गतिविधि है। मगर यहाँ यह स्पष्ट नहीं किया गया है कि प्रश्न पूछना किस प्रकार गैर-कानूनी गतिविधि हो सकती है और किस प्रकार के प्रश्न को गैर-कानूनी गतिविधि में शामिल किया जाएगा।
    • इसी प्रकार अधिनियम में भारत के विरुद्ध असंतोष की स्थिति पैदा करना भी एक गैर-कानूनी गतिविधि मानी गई है, किंतु अधिनियम में कहीं भी ‘असंतोष’ को परिभाषित नहीं किया गया है, जिसके कारण इस अधिनियम के दुरुपयोग की संभावना काफी अधिक है।
  • ऐसा माना जाता है कि प्रायः इस अधिनियम का उपयोग राजनीतिक दलों द्वारा असंतोष को लेकर उठाई जाने वाली आवाज़ को दबाने के लिये जान-बूझकर किया जाता है।
  • बीते माह राज्यसभा में प्रस्तुत किये गए आँकड़ों से पता चला कि वर्ष 2017, 2018 और 2019 में UAPA के तहत कुल 3,005 मामले पंजीकृत किये गए थे, जिसके तहत कुल 3,974 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। हालाँकि इन मामलों में से केवल 821 यानी केवल 27 प्रतिशत मामलों में ही चार्जशिट दाखिल की गई थी।

भीमा कोरेगाँव विवाद

  • महाराष्ट्र के पुणे में स्थित भीमा कोरेगाँव एक छोटा सा गाँव है, जिसका महाराष्ट्र और मराठा इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। दरअसल तकरीबन 200 वर्ष पूर्व 1 जनवरी, 1818 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया के 500 सैनिकों की एक छोटी कंपनी, जिसमें ज़्यादातर सैनिक महार समुदाय से थे, ने पेशवा शासक बाजीराव द्वितीय की 28,000 सैनिकों वाली सेना को तकरीबन 12 घंटे तक चले युद्ध में पराजित किया था।
  • इस युद्ध में जिन महार सैनिकों ने लड़ते हुए वीरगति प्राप्त की, उनके सम्मान में वर्ष 1822 में भीमा नदी के किनारे काले पत्थरों से एक विजय स्तंभ का निर्माण किया गया। 
  • भीमा कोरेगाँव युद्ध का भारत के दलित इतिहास में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसीलिये भीमा कोरेगाँव के युद्ध को राष्ट्रवाद बनाम साम्राज्यवाद के संकीर्ण दृष्टिकोण से न देखते हुए प्रत्येक वर्ष तमाम अंबेडकरवादी 1 जनवरी को महार सैनिकों के प्रति सम्मान प्रकट करने के लिये विजय स्तंभ पर एकत्रित होते हैं।
  • वर्ष 2018 को भीमा कोरेगाँव युद्ध की 200वीं वर्षगाँठ पर जब कई बुद्धिजीवी और अंबेडकरवादी एकत्रित हुए तो वहाँ दो पक्षों के बीच हिंसक झड़प हुई, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई। मामले की जाँच करते हुए कई लोगों को इस हिंसा की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।

आगे की राह

  • आतंकवाद और गैर-कानूनी गतिविधियाँ निसंदेश भारत की एकता और अखंडता के लिये गंभीर खतरा हैं और किसी भी कीमत पर इनसे निपटने के आवश्यकता है। हालाँकि गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम की अस्पष्टता और व्यापकता के कारण इसके दुरुपयोग की संभावना काफी बढ़ जाती है।
  • अधिनियम के दुरुपयोग को रोकने और ऐसे मामलों की जाँच करने में न्यायपालिका की काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। कानून के तहत पुलिस और प्रशासन को प्रदान की गई शक्तियों की न्यायिक समीक्षा के माध्यम से जाँच की जा सकती है, जिससे अधिनियम के दुरुपयोग को रोका जा सकेगा।

स्रोत: द हिंदू

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