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जैव विविधता और पर्यावरण

ओलिव रिडले कछुआ

  • 25 Mar 2019
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?


दुनिया के सबसे छोटे समुद्री कछुए ओलिव रिडले (Olive Ridleys) हर साल ओडिशा के समुद्री तट पर अंडे देने आते हैं, किंतु निर्धारित समयावधि के गुज़रने के एक महीने बाद भी रुशिकुल्या और देवी नदी के मुहाने पर उनका आगमन नहीं हुआ है।


मुख्य बिंदु

  • ओलिव रिडले (Olive Ridleys) कछुओं के आगमन में देरी की वज़ह अब तक स्पष्ट नहीं हो पाई है।
  • ध्यातव्य है कि ओडिशा के गहिरमाथा तट पर पहले ही बड़े पैमाने पर ओलिव रिडले (Olive Ridleys) कछुओं के प्रजनन की शुरुआत हो चुकी है।
  • करीब चार किलोमीटर में फैले इस समुद्री तट पर प्रत्येक वर्ष लाखों की संख्या में ओलिव रिडले कछुए प्रजनन के लिये अपना बसेरा बनाते हैं। किंतु इस वर्ष यह संख्या हज़ार से भी कम है।
  • गौरतलब है कि इस मौसम में ओलिव रिडले कछुए अपने मूल निवास-स्थान से हज़ारों किलोमीटर का सफर तय करने के बाद ओडिशा के तट पर पहुँचते हैं।

ओलिव रिडले

  • ओलिव रिडले समुद्री कछुओं (Lepidochelys Olivacea) को ‘प्रशांत ओलिव रिडले समुद्री कछुओं’ के नाम से भी जाना जाता है।
  • यह मुख्य रूप से प्रशांत, हिन्द और अटलांटिक महासागरों के गर्म जल में पाए जाने वाले समुद्री कछुओं की एक मध्यम आकार की प्रजाति है। ये माँसाहारी होते हैं।
  • पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने वाला विश्व का सबसे पुराना और सबसे बड़ा संगठन आईयूसीएन (International Union for Conservation of Nature- IUCN) द्वारा जारी रेड लिस्ट में इसे अतिसंवेदनशील (Vulnerable) प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है।
  • ओलिव रिडले कछुए हज़ारों किलोमीटर की यात्रा कर ओडिशा के गंजम तट पर अंडे देने आते हैं और फिर इन अंडों से निकले बच्चे समुद्री मार्ग से वापस हज़ारों किलोमीटर दूर अपने निवास-स्थान पर चले जाते हैं।
  • उल्लेखनीय है कि लगभग 30 साल बाद यही कछुए जब प्रजनन के योग्य होते हैं, तो ठीक उसी जगह पर अंडे देने आते हैं, जहाँ उनका जन्म हुआ था।
  • दरअसल अपनी यात्रा के दौरान भारत में गोवा, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश के समुद्री तटों से गुज़रते हैं, लेकिन प्रजनन करने और घर बनाने के लिये ओडिशा के समुद्री तटों की रेत को ही चुनते हैं।

ओलिव रिडले के अस्तित्व पर संकट

  • विदित हो कि इन कछुओं को सबसे बड़ा नुकसान मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों से होता है।
  • वैसे तो ये कछुए समुद्र की गहराई में तैरते हैं लेकिन चालीस मिनट के बाद इन्हें साँस लेने के लिये समुद्र की सतह पर आना पड़ता है और इस दौरान ये मछली पकड़ने वाले ट्रॉलरों की चपेट में आ जाते हैं।
  • हालाँकि, इस संबंध में ओडिशा हाईकोर्ट ने आदेश दे रखा है कि कछुए के आगमन के रास्ते में संचालित होने वाले ट्रॉलरों में ‘टेड’ यानी टर्टल एक्सक्लूजन डिवाइस (एक ऐसा यंत्र जिससे कछुए मछुआरों के जाल में नहीं फँसते) लगाया जाए।
  • यह चिंतनीय है कि इस आदेश का सख्ती से पालन नहीं होता है। सरकार का आदेश है कि समुद्र तट के 15 किलोमीटर इलाके में कोई ट्रॉलर मछली नहीं पकड़ सकता लेकिन इस कानून का क्रियान्वयन सुनिश्चित नहीं किया जा सका है।
  • कछुए जल-पारिस्थितिकी के संतुलन में अहम भूमिका निभाते हैं और इनका सरंक्षण सुनिश्चित किया जाना चाहिये।


स्रोत- द हिंदू

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