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सामाजिक न्याय

उत्तर भारत में लड़के की चाह के जुनून में कोई बदलाव नहीं

  • 11 Jul 2018
  • 3 min read

संदर्भ

नए सरकारी आँकड़ों के मुताबिक, केंद्र सरकार के महत्त्वाकांक्षी ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ कार्यक्रम के बावजूद  भारतीयों में लड़कों के चाह की प्रवल इच्छा देखी गई है| इस मामले में हरियाणा की स्थिति सबसे बदतर है जो मादा भ्रूण हत्या के लिये कुख्यात है| इसके बाद राजस्थान और पंजाब का स्थान है जो गैर-कानूनी रूप से बच्चे के लिंग की जाँच कराने वाले राज्यों की सूची में शीर्ष पर बने हुए हैं।

महत्त्वपूर्ण बिंदु 

  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए नवीनतम आँकड़ों के मुताबिक, 2017-18 में लिंग की अवैध रूप से जाँच कराने के मामले हरियाणा में 158, राजस्थान में 112 और पंजाब में 44 शिकायतें मिली थीं।
  • ये राज्य प्री-कॉन्सेप्शन एंड प्री-नेटल डायग्नोस्टिक टेक्निक्स (PC एंड PNDT) (प्रोहिबिशन ऑफ सेक्स सिलेक्शन) एक्ट, 1994 के तहत पंजीकृत हैं। इस कानून का उल्लंघन इन राज्यों में तेज़ी से बढ़ रहा है।
  • केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय अब अखिल भारतीय स्तर पर बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ कार्यक्रम पर ध्यान दे रहा है। पीसी-पीएनडीटी अधिनियम का कार्यान्वयन इस कार्यक्रम का एक हिस्सा है।
  • सरकार की कड़ी कार्रवाई और इस मुद्दे के प्रति शून्य सहनशीलता के कारण ऐसे मामलों की प्राथमिकी में तेज़ी आई है और दोषियों को सज़ा भी दी जा रही है| 
  • मार्च 2017 तक केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों द्वारा दी गई त्रैमासिक प्रगति रिपोर्ट (QPR) के अनुसार, अधिकारियों ने आपराधिक न्यायालयों के समक्ष इस अधिनियम से संबंधित विभिन्न उल्लंघनों के लिये 2,371 शिकायतें दर्ज कीं, जबकि 2017-18 में शिकायतों की संख्या 2,735 थी।
  • निश्चित रूप से हाल के वर्षों में महाराष्ट्र में पीसी-पीएनडीटी अधिनियम का उल्लंघन करने वाले लिंग निर्धारण (Sex Determination) के मामलों में उछाल आया है। अधिनियम के कार्यान्वयन में लापरवाही बरतने पर  सरकार ने राजस्थान में 149, महाराष्ट्र में 96 और हरियाणा में 78 लोगों को दोषी करार दिया है।
  • स्वास्थ्य मंत्रालय के अधिकारियों ने बताया कि इस प्रकार की गतिविधियों से बाल लिंग अनुपात में कमी साफ दिखाई देती है।
  • वर्तमान में  भारत में बाल लिंग अनुपात (0-6 वर्ष) प्रति 1000 बालकों पर 919 बालिकाएँ हैं।
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