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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बहुत जल्द नीलाम्बुर सागौन को भौगोलिक संकेतक की सूची में शामिल किया जाएगा

  • 10 Feb 2017
  • 5 min read

पृष्ठभूमि

जैसा कि हम जानते हैं कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर नीलाम्बुर सागौन (Nilambur teak) को इसकी बेहतर गुणवत्ता और सुरुचिपूर्ण दिखावट के लिये जाना जाता है| हाल ही में नीलाम्बुर सागौन को बहुत जल्द भौगोलिक संकेतक (Geographical Indication-GI) युक्त केरल के उत्पादों की सूची में शामिल करने का निर्णय लिया गया है|

प्रमुख बिंदु

  • अपनी अनूठी किस्म के कारण प्रसिद्ध नीलाम्बुर सागौन को भौगोलिक संकेतक की सूची में शामिल करने के लिये केरल कृषि विश्वविद्यालय (Kerala Agricultural University- KAU) के बौद्धिक संपदा अधिकार (Intellectual Property Rights) विभाग द्वारा नीलाम्बुर सागौन हेरिटेज सोसायटी (Nilambur Teak Heritage Society) के साथ-साथ केरल वन अनुसन्धान संस्थान (Kerala Forest Research Institute-KFRI) तथा वन विभाग (Department of Forests) के सहयोग से एक मुहिम आरंभ की गई है|
  • सर्वप्रथम, अंग्रेज़ों ने नीलाम्बुर के बागानों तथा जंगलों से सागौन की सबसे बेहतर गुणवत्ता की पहचान की थी| इसके पश्चात् यह क्षेत्र विश्व में बेहतर गुणवत्तायुक्त सागौन का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया|

वैश्विक अपील

  • जैसे-जैसे सागौन की प्रसिद्धि बढ़ती गई नीलाम्बुर को सागौन की एक प्रमुख किस्म माना जाने लगा|
  • ध्यातव्य है कि नीलाम्बुर सागौन को जंगलों से लाने तथा बंदरगाह तक ले जाने के लिये नीलाम्बुर-शोरानपुर रेल मार्ग (Nilambur-Shoranur Railway) का सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है|
  • हालाँकि पिछले कुछ समय से नीलाम्बुर सागौन के नाम से कुछ जाली उत्पाद  (फर्नीचर/लकड़ी का सामान) भी बाज़ार में आ गए हैं, जिनके कारण इसकी छवि प्रभावित हो रही है|
  • जाली उत्पादों की इस समस्या को समझते हुए केरल कृषि विश्वविद्यालय के वन एवं आईपीआर विभाग द्वारा नीलाम्बुर के स्थानीय निवासियों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के साथ-साथ इसे भौगोलिक संकेतक के रूप में सूचीबद्ध करने का भी प्रयास किया जा रहा है|
  • ध्यातव्य है कि नीलाम्बुर सागौन हेरिटेज सोसाइटी (Nilambur Teak Heritage Society) ने भी नीलाम्बुर सागौन को भारत के भौगोलिक संकेतक उत्पाद का दर्ज़ा प्रदान करने के लिये केरल कृषि विश्वविद्यालय का समर्थन किया है|
  • उल्लेखनीय है कि जहाँ एक ओर केरल कृषि विश्वविद्यालय के बौद्धिक सम्पदा अधिकार प्रभाग द्वारा कानूनी प्रक्रिया को समन्वित करने संबंधी कार्य किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर केरल कृषि विश्वविद्यालय के वन महाविद्यालय में नीलाम्बुर सागौन की अद्वितीय विशेषताओं को वैधता प्रदान करने के लिये वैज्ञानिक अध्ययन किये गए हैं|
  • गौरतलब है कि पीची (Peechi) और नीलाम्बुर (Nilambur) में स्थित केएफआरआई केन्द्रों और केरल के वन विभाग ने भी इस कार्य को अपना समर्थन प्रदान किया है|
  • सागौन की इस अनूठी किस्म की लकड़ी को भौगोलिक संकेतक के रूप में पंजीकृत कराने के लिये वर्ष 2015 के दिसम्बर माह में चेन्नई स्थित भौगोलिक संकेतक रजिस्ट्री कार्यालय में नामांकन कराया गया था|
  • उल्लेखनीय है कि सर्वप्रथम केरल के पोक्कली धान (Pokkali rice) को भौगोलिक संकेतक के रूप में पहचान मिली थी|
  • वर्तमान में केरल के भौगोलिक संकेतक युक्त उत्पादों में शामिल होने वाले अन्य उत्पाद क्रमशः वज़ाकुलम का अनानास (Vazhakulam Pineapple), वायनादन की धान की किस्में- जीराकसाला और गंधकसाला (Wayanadan rice varieties Jeerakasala and Gandhakasala), तिरुर की सुपारी वाली वाइन (Tirur Betel vine), केन्द्रीय त्रावणकोर की जग्गेरी तथा चेंगालिकोदन नेंद्रण (Central Travancore Jaggery and Chengalikodan Nendran) केला प्रजाति हैं|
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