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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पेड न्यूज़ को चुनावी अपराध बनाये जाने की आवश्यकता।

  • 30 Jun 2017
  • 5 min read

संदर्भ 

  • पेड न्यूज़ को नियंत्रित करने के लिये निर्वाचन आयोग द्वारा मध्य प्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा को तीन वर्ष के लिये अयोग्य घोषित करना चुनावी रणभूमि के लिये एक महत्त्वपूर्ण कदम है। पेड न्यूज़ को चुनावी अपराध बनाने का समय आ गया है। 

 पेड न्यूज़ किसे कहते हैं ?

  • निर्वाचन आयोग के अनुसार पेड न्यूज़ से तात्पर्य चुनावों के दौरान किसी उम्मीदवार के पक्ष में इस प्रकार चुनाव प्रचार करने से है, जिससे कि वह प्रचार भी समाचार अथवा आलेख जैसा प्रतीत हो। 
  • गौरतलब है कि उम्मीदवारों को अपने-अपने चुनावी व्यय का ब्यौरा निर्वाचन आयोग के समक्ष रखना पड़ता है। व्यय की भी एक सीमा निश्चित की गई है।  
  • उम्मीदवारों के द्वारा व्यय सीमाओं को दरकिनार करने के लिये निर्वाचन आयोग ने पेड न्यूज़ को एक गंभीर चुनावी कदाचार माना है । 
  • हालाँकि ऐसी खबरों को प्रकाशित करने वाले अख़बार या प्रकाशन इस आरोप को स्वीकार नहीं करते हैं कि उन्हें किसी खबर विशेष को प्रकाशित करने के लिये उसकी कीमत दी गई है, बल्कि वे कहते हैं कि यह उनके नियमित चुनावी कवरेज़ का हिस्सा है। दूसरी तरफ उम्मीदवारों का भी कहना होता है कि उनकी ओर से किसी खबर को प्रकाशित  करवाने के लिये कोई भुगतान नही किया गया।

प्रमुख घटनाक्रम 

  • किसी मंत्री को अयोग्य घोषित करने की यह पहली घटना नहीं है। इसके पहले भी वर्ष 2011 में उत्तर प्रदेश के विधायक उमलेश यादव को पेड न्यूज़ के प्रकाशन के लिये व्यय की गई धनराशि की जानकारी छिपाने के आधार पर अयोग्य ठहराया गया था।
  • मध्य प्रदेश के मंत्री नरोत्तम मिश्रा का तर्क था कि पेड न्यूज़ पर निर्वाचन आयोग की राष्ट्रीय स्तरीय समिति ने जाँच में जिन 42 खबरों को पाया था, उन्हें उनके प्रतिद्वंदियों ने प्रकाशित करवाया होगा। हालाँकि निर्वाचन आयोग श्री मिश्रा के तर्कों से सहमत नहीं था। यह घटना वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव की है।   

पेड न्यूज़ चुनावी अपराध नहीं

  • पेड न्यूज़ अभी भी कोई चुनावी अपराध नहीं है, परन्तु इसे ऐसा न बनाने की कोई वज़ह नहीं है। निर्वाचन आयोग ने सरकार से सिफारिश की है कि 1951 के जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन कर, किसी उम्मीदवार के पक्ष में या किसी के विरुद्ध पेड न्यूज़ के प्रकाशन को अपराध घोषित किया जाए। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, तब तक पेड न्यूज़ को चुनाव प्रचार व्यय में न दर्शाने के लिये उम्मीदवार की केवल खिंचाई ही की जाएगी। अत: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये ऐसा करना आवश्यक है। 

प्राधिकार निहित

  • श्री मिश्रा के मामले में निर्वाचन आयोग का विचार है कि यदि यह सत्य भी है कि उन्होंने पेड न्यूज़ के लिये कोई भुगतान नहीं किया था, तथापि उन्हें अपने व्यय खाते में एक काल्पनिक रकम दर्शानी  चाहिए थी।
  • उम्मीदवार केवल यह कह कर बच नही कह सकते कि अमुख खबर को प्रकाशित करने का प्राधिकार उनकी तरफ से नहीं दिया गया था। यदि यह स्पष्ट होता हो कि ऐसे किसी कार्य से किसी उम्मीदवार के जीतने की संभावना बन सकती है और उम्मीदवार की ओर से कोई आपति नहीं है, तो भी निर्वाचन आयोग यह कह सकता है कि उसमें उस उम्मीदवार का ‘प्राधिकार निहित’ (implied authorisation) था।
  • श्री मिश्रा का मामला 2008 के चुनाव का था और जब तक निर्वाचन आयोग ने अपना निर्णय दिया, तब तक वे  2013 का चुनाव जीत चुके थे। इस तरह के मामलों में विलम्ब की वज़ह, उम्मीदवारों द्वारा अपने विरुद्ध जाँच को रोकने के लिये अदालतों की शरण में जाना है। 

निष्कर्ष 
यदि निर्वाचन विधि को साफ-सुथरा बनाए रखना है, तो एक ऐसी कानूनी रूपरेखा जिसमें चुनावी मामलों पर शीघ्रता से निर्णय लिया जा सके, अवश्य लागु किया जाना चाहिए।

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