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शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग

  • 20 Jan 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

एनसीएसके, मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013

मेन्स के लिये:

हाथ से मैला उठाने वालों के जीवन के उत्थान में NCSK का महत्त्व।

चर्चा में क्यों? 

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग (एनसीएसके) के कार्यकाल को 31 मार्च, 2022 के बाद अगले तीन वर्ष  के लिये बढ़ाने को मंजूरी दे दी है।

  •  देश में सफाई कर्मचारी और पहचाने गए हाथ से मैला ढोने वाले प्रमुख लाभार्थी होंगे।
  • मैनुअल स्कैवेंजिंग (Manual Scavenging) को "सार्वजनिक सड़कों और सूखे शौचालयों से मानव मल को हटाने, सेप्टिक टैंक, नालियों और सीवर की सफाई" के रूप में परिभाषित किया गया है। 

प्रमुख बिंदु

  • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग के बारे में:
    • NCSK की स्थापना वर्ष 1993 में NCSK अधिनियम, 1993 के प्रावधानों के अनुसार सरकार को सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिये विशिष्ट कार्यक्रमों के संबंध में यह अपनी सिफारिशें देने के लिये की गई थी।
      • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी आयोग अधिनियम 29 फरवरी, 2004 से प्रभावी नहीं रहा। उसके बाद एनसीएसके के कार्यकाल को समय-समय पर प्रस्तावों के माध्यम से एक गैर-सांविधिक संस्था के रूप में बढ़ाया गया है। 
      • सफाई कर्मचारियों के कल्याण के लिये विशिष्ट कार्यक्रमों के संबंध में यह सरकार को अपनी सिफारिशें देता है, सफाई कर्मचारियों के लिए मौजूदा कल्याण कार्यक्रमों का अध्ययन और मूल्यांकन करता है। 
    • मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में रोज़गार के निषेध और उनके पुनर्वास अधिनियम, 2013 के प्रावधानों के अनुसार, NCSK को अधिनियम के कार्यान्वयन की निगरानी करने, केंद्र एवं राज्य सरकारों को इसके प्रभावी कार्यान्वयन के लिये निविदा सलाह देने, अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन/कार्यान्वयन के संबंध में शिकायतों की जाँच करने का काम सौंपा गया है। 
    • आयोग के अध्यक्ष और सदस्य सफाई कर्मचारियों व उनके आश्रितों की सामाजिक-आर्थिक और रहने की स्थिति का अध्ययन करने के लिये देश का व्यापक दौरा करते हैं।
    • आयोग इन शिकायतों/याचिकाओं के संबंध में संबंधित अधिकारियों से तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगता है और प्रभावित सफाई कर्मचारियों की शिकायतों का निवारण करने के लिये उन पर दबाव डालता है।
  • स्थिति:
    • NCSK (2020 डेटा) के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में देश में सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान कुल 631 लोगों की मौत हुई है।
      • पिछले पाँच वर्षों में मैला ढोने से होने वाली मौतों की सबसे अधिक संख्या वर्ष 2019 में देखी गई। सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 110 मजदूरों की मौत हो गई।
      • यह वर्ष 2018 की तुलना में 61% की वृद्धि है, जिसमें इस तरह की मौतों के 68 मामले देखे गए।
    • वर्ष 2018 में एकत्र किये गए आँकड़ों के अनुसार, उत्तर प्रदेश में 29,923 लोग हाथ से मैला ढोने के कार्य में लगे थे, जो भारत के किसी भी राज्य में सबसे अधिक है।
  • संबंधित योजनाएँ:
    • अत्याचार निवारण अधिनियम
      • वर्ष 1989 में अत्याचार निवारण अधिनियम, स्वच्छता कार्यकर्त्ताओं के लिये एक एकीकृत उपाय बन गया, क्योंकि मैला ढोने वालों में से 90% से अधिक लोग अनुसूचित जाति के थे। वर्तमान में यह मैला ढोने वालों को निर्दिष्ट पारंपरिक व्यवसायों से मुक्त करने के लिये एक महत्त्वपूर्ण मील का पत्थर बन गया है।
    • सफाई मित्र सुरक्षा चुनौती:
      • इसे आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय द्वारा वर्ष 2020 में विश्व शौचालय दिवस (19 नवंबर) पर लॉन्च किया गया था।
      • सरकार ने सभी राज्यों से अप्रैल 2021 तक सीवर-सफाई को मशीनीकृत करने हेतु इस ‘चुनौती’ का शुभारंभ किया है, इसके तहत यदि किसी व्यक्ति को अपरिहार्य आपात स्थिति में सीवर लाइन में प्रवेश करने की आवश्यकता होती है, तो उसे उचित गियर और ऑक्सीजन टैंक आदि प्रदान किये जाते हैं।
    • 'स्वच्छता अभियान एप':
      • इसे अस्वच्छ शौचालयों और हाथ से मैला ढोने वालों के डेटा की पहचान और जियोटैग करने के लिये विकसित किया गया है, ताकि अस्वच्छ शौचालयों को सेनेटरी शौचालयों से प्रतिस्थापित किया जा सके तथा हाथ से मैला ढोने वालों को गरिमापूर्ण जीवन प्रदान करने के लिये उनका पुनर्वास किया जा सके।
    • राष्ट्रीय सफाई कर्मचारी वित्त और विकास निगम:
      • यह सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के तहत एक गैर-लाभकारी कंपनी है।
      • इसका प्राथमिक उद्देश्य सफाई कर्मचारियों और उनके आश्रितों का सामाजिक एवं आर्थिक रूप से उत्थान करना है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय:
      • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश ने सरकार के लिये उन सभी लोगों की पहचान करना अनिवार्य कर दिया, जो वर्ष 1993 से सीवेज के कार्य में मारे गए तथा उनके परिवारों को मुआवज़े के रूप में प्रत्येक को 10 लाख रुपए प्रदान किये गए।
      • वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक आदेश के माध्यम से सरकार को यह निर्देश दिया था कि वह वर्ष 1993 के बाद से मैनुअल स्कैवेंजिंग कार्य करने के दौरान मरने वाले सभी लोगों की पहचान करे और उनके परिवार को 10 लाख रुपए का मुआवज़ा प्रदान करे।

हाथ से मैला उठाने वालों के नियोजन का निषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013:

  • यह अधिनियम हाथ से मैला ढोने वालों के नियोजन, बिना सुरक्षा उपकरणों के सीवर व सेप्टिक टैंकों की हाथ से सफाई और अस्वच्छ शौचालयों के निर्माण पर रोक लगाता है।
  • किसी भी व्यक्ति, स्थानीय प्राधिकरण या एजेंसी (जैसे नगर निगम) को सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के लिये लोगों को नियुक्त या नियोजित नहीं करना चाहिये। सेप्टिक टैंकों की यंत्रीकृत सफाई एक निर्धारित मानदंड है।
  • यह मैनुअल मैला ढोने वालों का पुनर्वास करने और उनके वैकल्पिक रोज़गार प्रदान करने का प्रयास करता है। प्रत्येक स्थानीय प्राधिकरण, छावनी बोर्ड और रेलवे प्राधिकरण अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर अस्वच्छ शौचालयों के सर्वेक्षण के लिये ज़िम्मेदार हैं तथा वे कई स्वच्छता सामुदायिक शौचालयों का भी निर्माण करेंगे।
  • अस्वच्छ शौचालयों का प्रत्येक अधिभोगी अपने स्वयं के खर्च पर शौचालय को परिवर्तित या ध्वस्त करने के लिये ज़िम्मेदार होगा। यदि वह ऐसा करने में विफल रहता है तो स्थानीय प्राधिकारी शौचालय को परिवर्तित करेगा और उससे लागत वसूल करेगा।
  • हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के रोज़गार का निषेध और उनका पुनर्वास (संशोधन) विधेयक, 2020 पेश किया गया है।

स्रोत: पी.आई.बी.

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