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मनरेगा में मज़दूरियों के विलंब भुगतान की समस्या

  • 12 Apr 2018
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

ग्रामीण रोज़गार गारंटी कानून के कार्यान्वयन को ट्रैक करने वाले नरेगा संघर्ष मोर्चा के अनुसार, अप्रैल 2018 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी अधिनियम अर्थात् मनरेगा (MGNREGA) के तहत मिलने वाली मज़दूरियों के 99% भाग का अभी तक भुगतान नही किया गया है।

  • नरेगा संघर्ष मोर्चा ने हाल ही में सरकार से वित्त वर्ष 2018-19 के लिये मनरेगा के तहत मज़दूरी की दरों में संशोधन करने की भी मांग की है।
  • मोर्चा ने मज़दूरी को 600 रुपए निर्धारित करने की मांग की है क्योंकि सातवें वेतन आयोग ने न्यूनतम मासिक वेतन 18,000 रुपए देने की सिफारिश की थी।

प्रमुख बिंदु

  • मनरेगा के अंतर्गत मज़दूरी की स्थिर दरों के अलावा इन अपर्याप्त मजदूरियों का समय पर भुगतान नहीं होना (Unpaid Wages) भी मज़दूरों के लिये चिंता का विषय है। पिछले कुछ महीनों में किये गए अधिकांश कार्यों का अभी तक भुगतान नहीं हो पाया है।
  • अप्रैल 2018 में सार्वजनिक वित्त प्रबंधन को मनरेगा वेतन भुगतान के लिये भेजे गए 99% फंड ट्रांसफर ऑर्डर्स (Fund Transfer Orders-FTOs) अभी तक लंबित हैं। रिपोर्ट के अनुसार, मार्च माह के 86% और और फरवरी माह के 64% FTO अभी तक लंबित हैं। 
  • केंद्र सरकार ने जनवरी 2016 में मनरेगा के तहत मज़दूरी भुगतान को सुनियोजित करने के उद्देश्य से नेशनल इलेक्ट्रॉनिक फंड मैनेजमेंट सिस्टम (National Electronic Fund Management System- NEFMS) लागू किया था लेकिन इसके जरिये केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने भुगतान की प्रक्रिया पर सिर्फ अपना नियंत्रण बढ़ाया है।
  • NEFMS को लागू करने से राज्य सरकारें मंत्रालय द्वारा निधि जारी करने में देरी होने की स्थिति में अब मज़दूरों को अपनी तरफ से भुगतान करने में सक्षम नहीं रह गई हैं।
  • स्वराज अभियान नामक संगठन द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर करने पर न्यायालय ने सरकार को कार्य करने के 15 दिनों के भीतर मज़दूरों को भुगतान सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था। इसके बावज़ूद इसमें विलंब और अप्रत्याशित देरी की स्थिति बनी हुई है।
  • यह ध्यातव्य है कि अगस्त 2017 में ग्रामीण विकास मंत्रालय ने मनरेगा के लिये 17,000 करोड़ रुपए के पूरक बजट की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय ने जनवरी 2018 में केवल 7,000 करोड़ रुपए की ही मंज़ूरी दी थी। यह स्पष्ट है कि एक वित्तीय वर्ष की शुरुआत में अपर्याप्त धन की समस्या नहीं हो सकती लेकिन मौजूदा FTOs के लंबित रहने के कारण स्पष्ट नहीं हैं।

मनरेगा के तहत भुगतान कैसे किया जाता है?

  • 2012 तक मज़दूरों की उपस्थिति का ब्योरा रखने के लिये मस्टर रोल्स नामक कागज़ी दस्तावेज़ का इस्तेमाल किया जाता था। किसी विशेष हफ्ते में दी गई योजना पर काम कर रहे सभी मज़दूरों के नाम इन मस्टर रोल्स पर हाथ से लिखे जाते थे।
  • इन मस्टर रोल्स में फर्ज़ी नामों के शामिल होने की शिकायत के बाद ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसकी रोकथाम हेतु इलेक्ट्रॉनिक मस्टर रोल (e-MRs) को लागू किया।
  • ये e-MRs इलेक्ट्रॉनिक रूप से MIS (Management Information System) से किसी योजना से संबंधित मजदूरों के नामों के साथ मुद्रित होते हैं।
  • उपस्थिति विवरण e-MR की मुद्रित प्रतिलिपि (Printed Copy) पर चिह्नित कर इनकी MIS में एंट्री कर ली जाती है।
  • तब MIS ‘मज़दूरी-सूची’ और ‘फंड ट्रांसफर ऑर्डर’ (FTO) उत्पन्न करता है जिन पर दो सक्षम पदाधिकारियों के डिजिटल हस्ताक्षर किये जाते हैं।
  • यदि मज़दूर का किसी बैंक में खाता है तो FTO पहले सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन प्रणाली (PFMS) के पास भेजा जाता है। 
  • PFMS एक वेब आधारित ऑनलाइन सॉफ्टवेयर एप्लीकेशन है, जिसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र (NIC) के तकनीकी सहयोग से महालेखा नियंत्रक के कार्यालय द्वारा विकसित एवं क्रियान्वित किया गया है। इसके माध्यम से कई सामाजिक सुरक्षा संबंधी भुगतान किये जाते हैं।
  • PFMS से, FTO को मनरेगा के लिये राज्य के नोडल बैंक में स्थानांतरित कर दिया जाता है और मज़दूर के बैंक खाते में मज़दूरी का भुगतान कर दिया जाता है।

निष्कर्ष

  • मनरेगा के कार्यान्वयन में प्रौद्योगिकी पर निर्भरता तेज़ी से बढ़ रही है। नकद भुगतान से बैंक (या पोस्ट ऑफिस) खातों में अंतरण, फिर इलेक्ट्रॉनिक भुगतान और अब आधार-आधारित भुगतान प्रणाली से पारदर्शिता के बढ़ने और रिसावों के कम होने की आशा है।
  • हालाँकि इन उद्देश्यों को काफी हद तक साकार किया जा चुका है। लेकिन एक प्रभावी शिकायत निवारण प्रणाली की अनुपस्थिति के साथ इन जटिल प्रौद्योगिकियों की आवश्यकताओं से निपटने के लिये स्थानीय कार्यकर्त्ताओं और बुनियादी ढाँचे की अक्षमता के कारण हर वर्ष लाखों मज़दूरों को भुगतान नहीं हो पाता है।
  • रोज़गार की आवश्यकता के बावजूद भुगतान गारंटी की अनुपस्थिति ग्रामीणों के बीच MGNREGA के प्रति रुचि घटने का प्रमुख कारण है।
  • इसलिये मनरेगा योजना के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिये मज़दूरों को समय पर भुगतान की सुचारु व्यवस्था स्थापित करना अनिवार्य है। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि किन्हीं भी परिस्थितियों में मज़दूर अपनी मज़दूरी से वंचित न रहने पाएँ।
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