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राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद

  • 06 Aug 2019
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सौहार्दपूर्ण समाधान और मध्यस्थता के प्रयास विफल हो गए हैं। 6 अगस्त, 2019 से सर्वोच्च न्यायालय ने 30 सितंबर, 2010 को दिये गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ की गई अपील पर सुनवाई शुरू की है।

क्या था इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला?

  • 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस सुधीर अग्रवाल, एस. यू. खान और डी. वी. शर्मा की बेंच ने मंदिर मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन को तीन बराबर हिस्सों में बाँटने का आदेश दिया था।
  • बेंच ने तय किया था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला न्यास को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

कौन हैं 3 पक्ष?

  • निर्मोही अखाड़ा: विवादित ज़मीन का एक-तिहाई हिस्सा यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह।
  • रामलला न्यास: एक-तिहाई हिस्सा यानी रामलला की मूर्ति वाली जगह।
  • सुन्नी वक्फ बोर्ड: विवादित ज़मीन का बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा।

क्या है विवाद?

  • राम मंदिर मुद्दा वर्ष 1989 के बाद अपने उफान पर था। इस मुद्दे की वज़ह से तब देश में सांप्रदायिक तनाव फैला था। देश की राजनीति इस मुद्दे से प्रभावित होती रही है।
  • हिंदू संगठनों का दावा है कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर विवादित बाबरी ढाँचा बना था।
  • राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी ढाँचा गिरा दिया गया था। मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में है।

बातचीत का कानूनी आधार

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बातचीत का सुझाव अपने आप में नया नहीं था।
  • विवादों को सुलझाने के लिये बातचीत (Negotiation) या मध्यस्थता (Mediation) न्यायालय की प्रक्रिया का एक स्वीकृत हिस्सा है।
  • नागरिक प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) की धारा 89 न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने के लिये कहती है कि न्यायालय के बाहर विवाद को हल करने के सभी रास्ते समाप्त हो गए हैं।
  • जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि किसी समझौते के ऐसे तत्त्व विद्यमान है, जो पक्षकारों को स्वीकार्य हो सकते है वहाँ न्यायालय समझौते के निबंधन बनाएगा और उन्हें पक्षकारों को उनकी टीका-टिप्पणी के लिये देगा और पक्षकारों की टीका-टिप्पणी प्राप्त करने के पश्चात् न्यायालय संभव समझौते के निबंधन पुनः बना सकेगा और उन्हें:

(क) मध्यस्थता (Arbitration);

(ख) सुलह (Conciliation);

(ग) न्यायिक समझौते जिसके अंतर्गत लोक अदालत के माध्यम से समझौता भी है; या

(घ) बीच-बचाव (Mediation) के लिये, निर्दिष्ट करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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