भारतीय राजव्यवस्था
वैवाहिक बलात्कार
- 12 May 2022
- 12 min read
प्रिलिम्स के लिये:IPC की धारा 375, IPC की धारा 498A, जस्टिस जेएस वर्मा समिति। मेन्स के लिये:वैवाहिक बलात्कार का अपराधीकरण, आईपीसी की धारा 375, न्यायमूर्ति जे एस वर्मा समिति, घरेलू हिंसा के विरुद्ध महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005, भारतीय समाज की मुख्य विशेषताएँ |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (IPC) में वैवाहिक बलात्कार को प्रदान किये गए अपवाद को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक विभाजित निर्णय दिया।
- विभाजित निर्णय के मामले में सुनवाई एक बड़ी पीठ द्वारा की जाती है।
- जिस बड़ी पीठ द्वारा विभाजित निर्णय दिया जाता है, उसके संबंध में सुनवाई उच्च न्यायालय के तीन-न्यायाधीशों की पीठ द्वारा की जा सकती है या सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष अपील की जा सकती है।
संबंधित वाद:
- अदालत धारा 375 के अपवाद की संवैधानिकता को चुनौती देने वाली चार याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
- याचिकाकर्त्ता चाहते हैं कि अपवाद को पूरी तरह से इस आधार पर समाप्त कर दिया जाए कि यह अपवाद विवाहित महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- फैसला सुनाते समय न्यायाधीशों में से एक ने भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद 2 को खारिज़ कर दिया, लेकिन दूसरे न्यायाधीश ने इसकी वैधता को बरकरार रखा।
भारतीय दंड संहिता की धारा 375:
- आईपीसी की धारा 375 उन कृत्यों को परिभाषित करती है जो एक पुरुष द्वारा बलात्कार को परिभाषित करते हैं।
- हालाँकि यह प्रावधान दो अपवादों को भी निर्धारित करता है।
- वैवाहिक बलात्कार को अपराधमुक्त करने के अलावा यह उल्लेख करता है कि चिकित्सा प्रक्रियाओं या हस्तक्षेप को बलात्कार नहीं माना जाएगा।
- धारा 375 के अपवाद 2 में कहा गया है कि "किसी पुरुष द्वारा अपनी पत्नी के साथ संभोग या यौन कृत्य, यदि पत्नी की उम्र पंद्रह वर्ष से कम नहीं है, बलात्कार नहीं है"।
भारत में वैवाहिक बलात्कार कानून का इतिहास:
- घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005:
- यह ‘लिव-इन’ या विवाह संबंध में किसी भी प्रकार के यौन शोषण द्वारा वैवाहिक बलात्कार का संकेत देता है।
- हालाँकि यह केवल नागरिक उपचार प्रदान करता है। भारत में वैवाहिक बलात्कार पीड़ितों के लिये अपराधी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू करने का कोई तरीका नहीं है।
- यह ‘लिव-इन’ या विवाह संबंध में किसी भी प्रकार के यौन शोषण द्वारा वैवाहिक बलात्कार का संकेत देता है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय:
- दिल्ली उच्च न्यायालय वर्ष 2017 से इस मामले में दलीलें सुन रहा है।
- हालाँकि यह पहली बार नहीं है जब देश में वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा उठाया गया है।
- दिल्ली उच्च न्यायालय वर्ष 2017 से इस मामले में दलीलें सुन रहा है।
- भारतीय विधि आयोग:
- इस वैवाहिक बलात्कार अपवाद को हटाने की आवश्यकता को भारत के विधि आयोग ने वर्ष 2000 में खारिज कर दिया था, जबकि यौन हिंसा को लेकर भारत के कानूनों में सुधार के कई प्रस्तावों पर विचार किया गया था।
- न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति:
- वर्ष 2012 में न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति को भारत के बलात्कार कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव देने का काम सौंपा गया था।
- इसकी कुछ सिफारिशों ने वर्ष 2013 में पारित आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम को आकार देने में मदद की, जबकि वैवाहिक बलात्कार सहित कुछ सुझावों पर कार्रवाई नहीं की गई।
- वर्ष 2012 में न्यायमूर्ति जे.एस. वर्मा समिति को भारत के बलात्कार कानूनों में संशोधन का प्रस्ताव देने का काम सौंपा गया था।
- संसद:
- संसद में भी यह मुद्दा उठाया जा चुका है।
- वर्ष 2015 में संसद के एक सत्र के दौरान सवाल पूछे जाने पर वैवाहिक बलात्कार को आपराध घोषित करने के विचार को इस आधार पर खारिज कर दिया गया था कि "वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित नहीं किया जा सकता है क्योंकि शादी भारतीय समाज का एक संस्कार या अति पवित्र परंपरा है"।
- संसद में भी यह मुद्दा उठाया जा चुका है।
वैवाहिक बलात्कार अपवाद और भारतीय दंड संहिता (IPC):
- ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन:
- 1860 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में IPC को लागू किया गया था।
- नियमों के पहले संस्करण के तहत वैवाहिक बलात्कार अपवाद 10 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं पर लागू था, जिसे 1940 में बढ़ाकर 15 वर्ष कर दिया गया था।
- 1860 में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के दौरान भारत में IPC को लागू किया गया था।
- 1847 का लॉर्ड मैकाले का मसौदा:
- जनवरी 2022 में न्याय मित्र (Amicus Curiae) द्वारा यह तर्क दिया गया कि IPC औपनिवेशिक युग के भारत में स्थापित प्रथम विधि आयोग के अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले के 1847 के मसौदे पर आधारित है।
- मसौदे ने बिना किसी आयु सीमा के वैवाहिक बलात्कार को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया।
- जनवरी 2022 में न्याय मित्र (Amicus Curiae) द्वारा यह तर्क दिया गया कि IPC औपनिवेशिक युग के भारत में स्थापित प्रथम विधि आयोग के अध्यक्ष लॉर्ड मैकाले के 1847 के मसौदे पर आधारित है।
- यह प्रावधान एक सदी पुराना विचार है जिसका तात्पर्य विवाहित महिलाओं की सहमति से है और जो पति के वैवाहिक अधिकारों की रक्षा करता है।
- सहमति का विचार 1736 में तत्कालीन ब्रिटिश मुख्य न्यायाधीश मैथ्यू हेल द्वारा दिये गए ‘हेल सिद्धांत’ से प्रेरित है।
- इसमें कहा गया है कि पति बलात्कार का दोषी नहीं हो सकता है, क्योंकि "आपसी वैवाहिक सहमति और अनुबंध द्वारा पत्नी ने पति के समक्ष अपने-आप को समर्पित कर दिया है"।
- पति-आश्रय का सिंद्धांत:
- पति-आश्रय के सिंद्धांत के अनुसार, शादी के बाद एक महिला की कोई व्यक्तिगत कानूनी पहचान नहीं होती है।
- विशेष रूप से पति-आश्रय के सिंद्धांत के विषय पर सुनवाई के दौरान भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2018 में व्यभिचार को अपराध घोषित कर दिया था।
- यह माना गया कि धारा 497, जो कि व्यभिचार को अपराध के रूप में वर्गीकृत करती है, पति-आश्रय के सिंद्धांत पर आधारित है।
- यह सिद्धांत, संविधान द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है जो यह मानता है कि एक महिला शादी के साथ ही अपनी पहचान और कानूनी अधिकार खो देती है, परंतु यह उसके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।
सरकार का पक्ष:
- केंद्र ने शुरू में बलात्कार के अपवाद का बचाव किया लेकिन बाद में अपना रुख बदल लिया और न्यायालय से कहा कि वह कानून की समीक्षा कर रहा है, "इस मुद्दे पर व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है"।
- दिल्ली सरकार ने वैवाहिक बलात्कार के अपवाद को बरकरार रखने के पक्ष में तर्क दिया।
- सरकार का तर्क पत्नियों द्वारा पुरुषों को कानून के संभावित दुरुपयोग से बचाने, विवाह संस्था की रक्षा करने तक विस्तारित है।
वैश्विक स्तर पर वैवाहिक बलात्कार की स्थिति:
- वैश्विक स्थिति:
- एमनेस्टी इंटरनेशनल के आंँकड़ों के अनुसार, 185 में से 77 (42%) देश कानून के माध्यम से वैवाहिक बलात्कार को अपराध मानते हैं।
- अन्य देशों में इसका या तो उल्लेख नहीं किया गया है या स्पष्ट रूप से बलात्कार को कानूनों के दायरे से बाहर रखा गया है, दोनों ही यौन हिंसा का कारण बन सकते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र ने देशों से कानूनों में व्याप्त खामियों को दूर करके वैवाहिक बलात्कार को समाप्त करने का आग्रह करते हुए कहा है कि "घर महिलाओं के लिये सबसे खतरनाक जगहों में से एक है"।
- वैवाहिक बलात्कार की अनुमति देने वाले देश:
- घाना, भारत, इंडोनेशिया, जॉर्डन, लेसोथो, नाइजीरिया, ओमान, सिंगापुर, श्रीलंका और तंजानिया स्पष्ट रूप से किसी महिला के पति को वैवाहिक बलात्कार की अनुमति देते हैं।
- वैवाहिक बलात्कार की शिकायत दर्ज करने की अनुमति देने वाले देश:
- जहांँ 74 देश महिलाओं को अपने पति के खिलाफ शिकायत दर्ज कराने की अनुमति देते हैं, वहीं 185 में से 34 देशों में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। लगभग एक दर्जन देश बलात्कारियों द्वारा पीड़ितों से शादी करके अभियोजन से बचने की अनुमति देते हैं।
वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानने से संबंधित मुद्दे:
- महिलाओं के मूल अधिकारों के खिलाफ:
- वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों में निहित व्यक्तिगत स्वायत्तता, गरिमा व लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों का तिरस्कार है।
- यह महिलाओं को अपने शरीर से संबंधित निर्णय लेने से दूर करता है और उन्हें एक साधन के रूप में प्रस्तुत करता है।
- वैवाहिक बलात्कार को अपवाद मानना अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का अधिकार) तथा अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) जैसे मौलिक अधिकारों में निहित व्यक्तिगत स्वायत्तता, गरिमा व लैंगिक समानता के संवैधानिक लक्ष्यों का तिरस्कार है।
- न्यायिक प्रणाली की निराशाजनक स्थिति:
- भारत में वैवाहिक बलात्कार के मामलों में अभियोजन की कम दर के कुछ कारणों में शामिल हैं:
- सोशल कंडीशनिंग और कानूनी जागरूकता के अभाव के कारण अपराधों की कम रिपोर्टिंग।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के आंँकड़ों के संग्रह का गलत तरीका।
- न्याय की लंबी प्रक्रिया/स्वीकार्य प्रमाण की कमी के कारण न्यायालयके बाहर समझौता।
- भारत में वैवाहिक बलात्कार के मामलों में अभियोजन की कम दर के कुछ कारणों में शामिल हैं:
आगे की राह
- भारतीय कानून अब पतियों और पत्नियों को अलग एवं स्वतंत्र कानूनी पहचान प्रदान करता है तथा आधुनिक युग में न्यायशास्त्र स्पष्ट रूप से महिलाओं की सुरक्षा से संबंधित है।
- अत:, यह उचित समय है कि विधायिका को इस कानूनी दुर्बलता का संज्ञान लेना चाहिये और आईपीसी की धारा 375 (अपवाद 2) को समाप्त करके वैवाहिक बलात्कार को बलात्कार कानूनों के दायरे में लाना चाहिये।