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बाबरी विध्वंस मामले में संयुक्त ट्रायल

  • 07 Apr 2017
  • 5 min read

समाचारों में क्यों?

  • गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद विध्वंस मामले में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ साजिश के आरोपों पर दोबारा सुनवाई की मांग करने वाली याचिका पर फैसला सुरक्षित रख लिया है।
  • भाजपा के इन वरिष्ठ सदस्यों में लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और उमा भारती जैसे नाम शामिल हैं। इसी याचिका पर सुप्रीम कोर्ट को यह भी फैसला करना था कि इन नेताओं के खिलाफ रायबरेली में चल रहे मामले को लखनऊ भेजा जाए या नहीं?
  • जस्टिस पीसी घोष और जस्टिस आरएफ नारीमन की खंडपीठ ने संकेत दिया है कि शीर्ष अदालत रायबरेली में चल रहे मामले को लखनऊ भेजकर दोनों की संयुक्त सुनवाई का आदेश दे सकती है और ऐसा वह न्यायपालिका की विधायी शक्तियों के तहत करेगी।
  • शीर्ष न्यायालय ने यह भी कहा है कि इस घटना को 25 साल बीत चुके हैं, इसलिये त्वरित न्याय सुनिश्चित करने हेतु इस मामले की रोज़ाना सुनवाई के साथ मामले को दो साल में निपटाने का आदेश दिया जा सकता है।
  • विदित हो कि सीबीआई ने याचिका दाखिल कर इन नेताओं सहित 11 लोगों को आरोपमुक्त करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के 20 मई 2010 के आदेश को चुनौती दी है। सीबीआई ने सभी आरोपी नेताओं (जिनके खिलाफ रायबरेली की अदालत में मुकदमा चल रहा है) पर लखनऊ की विशेष अदालत में संयुक्त ट्रायल चलाने की मांग की है।

क्या हैं न्यायपालिका की विधायी शक्तियाँ?

  • न्यापालिका की विधायी शक्तियों का ज़िक्र संविधान के अनुच्छेद 142 में किया गया है। न्यायपालिका की विधायी शक्तियों से तात्पर्य यह है कि ऐसे क्षेत्र हैं, जहाँ कोई ठोस क़ानून नहीं है, न्यायालय अपने निर्देशों के ज़रिये इन क्षेत्रों में क़ानूनी प्रावधानों की कमी को पूरी कर सकती है।
  •  ज़ाहिर है जब विधायिका के कार्यकलापों में कुछ ख़ामियाँ नज़र आएँ तो न्यायिक हस्तक्षेप के ज़रिये न्याय के उद्देश्य को पूरा करना ज़रूरी हो जाता है। गौरतलब है कि अनुच्छेद 142 में ज़िक्र किया गया है कि-

1. उच्चतम न्यायालय अपने अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल लंबित पड़े मामले में त्वरित न्याय के लिये निर्णय देने में कर सकता है। उसके द्वारा कोई भी पारित निर्णय या दिया गया आदेश पूरे भारतीय क्षेत्र में लागू किया जा      सकेगा। न्यायपालिका द्वारा लिये गए निर्णय इस आधार पर लागू होंगे कि वे संसद द्वारा लिये गए अथवा निर्धारित हैं।
2. साथ ही इस संदर्भ में जब तक कोई कानूनी प्रावधान नहीं किया जाता तब तक न्यायपालिका के आदेश से निकला कानून भारत के सभी क्षेत्रों में लागू होगा और उच्चतम न्यायालय के पास वे सारे अधिकार होंगे, जिनके      आधार पर वह किसी व्यक्ति, किसी दस्तावेज़, जाँच या कोर्ट की अवमानना के मामले में फैसला देगा।

निष्कर्ष

  • उल्लेखनीय है कि उनुच्छेद 142, हमेशा से क़ानूनविदों का ध्यान आकर्षित करता रहा है जिसके प्रावधान का उपयोग उच्चतम न्यायालय द्वारा किया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने कई मामलों में यह पाया कि संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत उसे व्यापक और पूर्ण अधिकार दिये गए हैं और इन सांविधिक  प्रावधानों को सीमित करने की ज़रूरत नहीं है। ज्ञात हो कि अनुच्छेद 142 के परिपेक्ष्य में ही सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय राजमार्गों के किनारे शराब बेचने को प्रतिबंधित करने का आदेश दिया है।
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