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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

इंडियन डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम

  • 08 Jan 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

इंडियन डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम

मेन्स के लिये:

इसरो/अंतरिक्ष कार्यक्रमों का महत्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (Indian Space Research Organisation-ISRO) ने भविष्य के अंतरिक्ष कार्यक्रमों में अंतरिक्ष और ISRO के बीच संपर्क को बेहतर बनाने के लिये इसी वर्ष अंतरिक्ष में एक नई उपग्रह प्रणाली भेजने की योजना देश के साथ साझा की है।

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मुख्य बिंदु:

  • इंडियन डेटा रिले सिस्टम (Indian Data Relay Satellite System-IDRSS) नामक दो उपग्रहों वाली इस प्रणाली का उद्देश्य इसरो को अंतरिक्ष में उपग्रहों से संपर्क स्थापित करने में सहायता प्रदान करना है।
  • इसरो महानिदेशक के अनुसार, 2000 किग्रा. भारवर्ग की इस प्रणाली को GSLV प्रक्षेपक द्वारा पृथ्वी की भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit-GEO) में लगभग 36000 किमी. दूर स्थापित किया जाएगा।
  • IDRSS प्रणाली के अंतर्गत दो उपग्रहों को भू-स्थिर कक्षा में स्थापित किया जाएगा, जिसमें से पहले उपग्रह को वर्ष 2020 के अंत तक तथा दूसरे को वर्ष 2021 में अंतरिक्ष में भेजने की योजना है, इसरो के वैज्ञानिकों ने इस योजना पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया है।
  • भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit-GEO) में स्थित एक उपग्रह धरती के एक-तिहाई (1/3) क्षेत्र पर निगरानी करने में सक्षम होता है तथा इस कक्षा में तीन उपग्रह धरती के 100% क्षेत्र पर निगरानी की क्षमता प्रदान करते है।

इंडियन डेटा रिले सैटेलाइट सिस्टम की ज़रूरत क्यों?

  • वर्तमान में भू-स्थिर कक्षा में स्थित उपग्रहों से संपर्क व इन उपग्रहों की निगरानी में विभिन्न देशों में स्थित नियंत्रण केंद्रों की सहायता ली जाती है। इस प्रणाली के तहत 24 घंटों में किसी भी उपग्रह से अनेक प्रयासों के बाद कई टुकड़ों (discontinuous fragments) में औसतन 10-15 मिनट ही संपर्क हो पाता है। जबकि IDRSS द्वारा इन उपग्रहों से 24 घंटे लगातार संपर्क स्थापित किया जा सकेगा। 
  • यह प्रणाली इसरो को अंतरिक्ष प्रक्षेपणों की निगरानी करने में मदद के साथ इसरो की भविष्य की योजनाओं को नई शक्ति प्रदान करेगी।
  • इस प्रणाली द्वारा पृथ्वी की निकटतम कक्षा (Lower Earth Orbit-LEO) के कार्यक्रमों जैसे-स्पेस डाॅकिंग (Space Docking), स्पेस स्टेशन तथा अन्य बड़े अभियानों जैसे- चंद्रयान, मंगल मिशन आदि में सहायता प्राप्त होगी।
  • इसरो महानिदेशक के अनुसार, मानव मिशन के दौरान जब अंतरिक्षयान पृथ्वी की कक्षा में 400 किमी. की दूरी पर चक्कर लगाता है तो इस दौरान अंतरिक्षयान के लिये हर समय पृथ्वी पर किसी नियंत्रण केंद्र के संपर्क में रहना अनिवार्य होता है। ऐसे में IDRSS के अभाव में हमें कई अंतरिक्ष केंद्र बनाने पड़ेंगे या महत्त्वपूर्ण सूचनाओं के लिये अन्य देशों पर निर्भर रहना पड़ेगा।
  • इस प्रणाली का पहला लाभ वर्ष 2022 के गगनयान अभियान के दौरान मिलेगा, परंतु इसरो के अनुसार, इस प्रणाली को गगनयान अभियान से पहले प्रयोग हेतु कार्यक्रमों में पूर्णरूप से सक्रिय करने की योजना है।

अन्य देशों के कार्यक्रम:

  • अन्य बड़ी अंतरिक्ष शक्तियाँ जैसे अमेरिका (USA) और रूस ने इस श्रेणी की प्रसारण उपग्रह प्रणाली के कार्यक्रमों की शुरुआत 1970-80 के दशक से ही कर दी थी और वर्तमान में कुछ देशों के पास आज इस प्रणाली के अंतर्गत लगभग 10 उपग्रह हैं।
  • रूस ने इस तकनीकी का इस्तेमाल अपने अंतरिक्ष स्टेशन मीर (MIR) की निगरानी और संपर्क बनाये रखने तथा अन्य अंतरिक्ष कार्यक्रमों के लिये किया।

मीर (MIR): यह वर्ष 1986 में सोवियत संघ द्वारा पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजा गया एक स्पेस स्टेशन था। वर्ष 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद वर्ष 2001 में इस कार्यक्रम के बंद होने तक इसका संचालन रूस द्वारा किया गया।

  • अमेरिका ने इस तकनीकी की सहायता से ही अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station) व हब्बल स्पेस टेलीस्कोप (Hubble Space Telescope) जैसे अभियानों में सफलता पाई।
  • वर्तमान में अमेरिका तीसरी पीढ़ी की ट्रैकिंग एंड डेटा रिले सैटेलाइट (Tracking & Data Relay Satellites-TDRS) तैयार कर रहा है, जबकि रूस के पास सैटेलाइट डेटा रिले नेटवर्क (Satellite Data Relay Network) नामक प्रणाली है।
  • यूरोप भी इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के लिये यूरोपियन डेटा रिले सिस्टम (European Data Relay System) बना रहा है तथा वर्तमान में चीन अपनी दूसरी पीढ़ी की टिआनलिआन-II सिरीज़ (Tianlian II series) पर काम कर रहा है।

निष्कर्ष: इसरो ने निम्न-भू कक्षा (Low-Earth Orbit) में बड़ी संख्या में उपग्रह स्थापित किये हैं तथा भविष्य में भी इस क्षेत्र में कई नए कार्यक्रमों की योजना है, ऐसे में इस क्षेत्र में IDRSS इसरो की आत्मनिर्भरता को बढ़ाएगा। इसके साथ ही अंतरिक्ष में बढ़ती प्रतिस्पर्द्धा और मानव मिशन जैसे कार्यक्रमों में इसरो को यह तकनीकी बढ़त प्रदान करने में सहायक होगी।

स्रोत: द हिंदू

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