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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत और मालदीव

  • 22 Feb 2020
  • 9 min read

प्रीलिम्स के लिये:

SAARC, BIMSTEC

मेन्स के लिये:

भारत-मालदीव द्विपक्षीय संबंध

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री और मालदीव के उनके समकक्ष के बीच मुलाकात में सुरक्षा, पुलिसिंग एवं कानून प्रवर्तन, आतंकवाद-रोधी अभियान, कट्टरता-रोधी सहयोग, संगठित अपराध, मादक पदार्थों की तस्करी और क्षमता निर्माण जैसे द्विपक्षीय मुद्दों के सहयोग पर चर्चा की गई।

संबंधों की पृष्ठभूमि:

  • ऐतिहासिक दृष्टि से भारत-मालदीव के संबंध सौहार्दपूर्ण रहे हैं, जहाँ प्राचीन काल से ही दोनों देशों के बीच भाषायी, सांस्कृतिक, धार्मिक और वाणिज्यिक जैसे साझा संबंध रहे हैं। वर्ष 1965 में मालदीव की स्वतंत्रता के बाद स्वतंत्र मालदीव को मान्यता देने तथा उसके साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाले प्रारंभिक देशों में भारत शामिल था।

मालदीव गणराज्य:

  • मालदीव का क्षेत्रफल 298 वर्ग किमी. है, जो हिंद महासागर में श्रीलंका के 600 किमी. दक्षिण पश्चिम में 1,200 प्रवाल द्वीपों में विस्तृत है, जिनमें से केवल 202 द्वीपों पर ही निवास है।
  • इन द्वीपों की औसत ऊँचाई लगभग एक मीटर है।
  • यहाँ का सबसे बड़ा धार्मिक संप्रदाय मुस्लिम धर्म है जो की कुल जनसंख्या का लगभग 99.04% है।

राजनीतिक संबंध:

  • राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद भारत के लगभग सभी प्रधानमंत्रियों ने मालदीव का दौरा किया, मालदीव की ओर से भी पूर्व राष्ट्रपति मौमून अब्दुल गयूम और पूर्व राष्ट्रपति मोहम्मद नशीद ने अपने कार्यकाल के दौरान भारत के कई दौरे किये। इसके अलावा उच्च स्तरीय मंत्रिस्तरीय यात्राओं का भी नियमित आदान-प्रदान होता रहा है।
  • भारत और मालदीव ने संयुक्त राष्ट्र, राष्ट्रमंडल, गुटनिरपेक्ष आंदोलन तथा दक्षेस जैसे बहुपक्षीय मंचों में लगातार एक-दूसरे का समर्थन किया है।

द्विपक्षीय सहायता:

  • मालदीव के विकास में भारत एक प्रमुख भागीदार रहा है और उसने मालदीव के कई प्रमुख संस्थानों की स्थापना करने में मदद की है।
  • भारत ने मालदीव को उसकी आवश्यकता के समय हमेशा सहायता की पेशकश की है, 26 दिसंबर 2004 को मालदीव में आई सुनामी के बाद मालदीव को राहत और सहायता पहुँचाने वाला भारत पहला देश था।
  • जुलाई 2007 में भी ज्वारीय घटनाओं में वृद्धि के बाद भारत ने 10 करोड़ रुपए प्रदान किये।
  • वर्तमान में भारत ने मालदीव को 100 मिलियन डाॅलर की स्टैंड-बाय क्रेडिट सुविधा (SCF) प्रदान की है।

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क्षमता निर्माण और प्रशिक्षण:

  • भारत अनेक योजनाओं के तहत मालदीव के छात्रों को छात्रवृत्ति प्रदान करता है और उसने मालदीव के शिक्षा क्षेत्र में ‘तकनीक अनुकूलन कार्यक्रम’ के तहत 5.30 मिलियन डाॅलर का वित्तपोषण किया।
  • इनके अलावा मालदीव के कई राजनयिकों ने भारत में प्रशिक्षण प्राप्त किया है।

आर्थिक और वाणिज्यिक संबंध:

  • भारत और मालदीव ने वर्ष 1981 में एक व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर किये थे जो आवश्यक वस्तुओं के निर्यात का प्रावधान करता है। इस मामूली शुरुआत से आगे बढ़कर द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में 700 करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।

मालदीव में भारतीय व्यापार:

  • भारतीय स्टेट बैंक फरवरी 1974 से मालदीव के आर्थिक विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
  • साथ ही ताज ग्रुप ऑफ इंडिया, रेजीडेंसी समूह, टाटा हाउसिंग डेवलपमेंट कंपनी लिमिटेड जैसी अनेक कम्पनियाँ वर्तमान में मालदीव में कार्य कर रही हैं।

पीपल-टू-पीपल संपर्क:

  • दोनों देशों की निकटता और हवाई संपर्क में सुधार के कारण पर्यटन तथा व्यापार के लिये मालदीव जाने वाले भारतीयों की संख्या में वृद्धि हुई है, वहीं भारत भी शिक्षा, चिकित्सा उपचार, मनोरंजन एवं व्यवसाय के लिये मालदीव का पसंदीदा स्थान है।

सांस्कृतिक संबंध:

  • दोनों देशों का लंबा सांस्कृतिक इतिहास रहा है और इन संबंधों को और मज़बूत करने के लिये निरंतर प्रयास जारी है।
  • जुलाई 2011 में माले में स्थापित भारतीय सांस्कृतिक केंद्र योग, शास्त्रीय संगीत और नृत्य के नियमित पाठ्यक्रम संचालित करता है।

भारतीय समुदाय:

  • मालदीव में लगभग 26,000 भारतीय रह रहे हैं, यह दूसरा सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय है।

वर्तमान परिदृश्य एवं संबंधित समस्याएँ:

  • भारत द्वारा हाल ही के वर्षों में ‘दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संघ’ (SAARC) के स्थान पर ‘बहु-क्षेत्रीय तकनीकी और आर्थिक सहयोग के लिये बंगाल की खाड़ी की पहल’ (BIMSTEC) को अधिक महत्त्व दिया जा रहा है जिसके परिणामस्वरूप भारत का मालदीव के प्रति बदलता दृष्टिकोण दिखाई दे रहा है।
  • मालदीव रणनीतिक रूप से भारत के नज़दीक और हिंद महासागर में महत्त्वपूर्ण समुद्री मार्ग पर स्थित है। मालदीव में चीन जैसी किसी प्रतिस्पर्द्धी शक्ति की मौजूदगी भारत के सुरक्षा हितों के संदर्भ में उचित नहीं है।
  • चीन वैश्विक व्यापार और इंफ्रास्ट्रक्चर प्लान के माध्यम से मालदीव जैसे देशों में तेज़ी से अपना वर्चस्व बढ़ा रहा है। मालदीव के पूर्व राष्ट्रपति यामीन भी ‘इंडिया फर्स्ट’ की नीति अपनाने का ज़ोर-शोर से दावा करते थे लेकिन जब भारत ने उनके निरंकुश शासन का समर्थन नहीं किया तो उन्होंने चीन और पाकिस्तान का रुख कर लिया। इस संदर्भ में तीन वजहों से भारत की चिंताएँ उभरकर सामने आई थीं।
    • पहली, मालदीव में चीन की आर्थिक और रणनीतिक उपस्थिति में वृद्धि।
    • दूसरी, भारतीय परियोजनाओं और विकास गतिविधियों में व्यवधान, जिसकी वजह से भारत के तकनीकी कर्मचारियों को मालदीव द्वारा वीज़ा देने से इनकार किया जाना।
    • तीसरी, इस्लामी कट्टरपंथियों का बढ़ता डर।

समस्या से निपटने के प्रयास:

  • भारत ने विश्वास बहाली उपायों को अपनाने को लगातार महत्त्व दिया है।
  • प्रत्यक्ष सहायता के स्थान पर विकास कार्यो में सहयोग करने की दिशा में किये जाने वाले प्रयासों में वृद्धि हुई है।

आगे की राह:

  • मालदीव का भारत के लिये बहुत अधिक रणनीतिक महत्त्व है, अत: भारत के लिये मालदीव के साथ मधुर संबंध बनाए रखना समय और परिस्थिति दोनों दृष्टिकोणों से आवश्यक है। हाल ही में मालदीव में सत्ता परिवर्तन भारत के लिये सकारात्मक प्रतीत होता है, किंतु मालदीव में चीन के बढ़ते वर्चस्व पर लगाम लगाने हेतु भारत को यह अवसर भुनाना होगा। अपनी चिंताओं को ध्यान में रखते हुए भारत को नई सत्ता के साथ समझदारी से काम लेते हुए मालदीव का साथ देना होगा।

स्रोत: द हिंदू

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