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जैव विविधता और पर्यावरण

COVID-19 के लिये इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन का विकास

  • 18 Apr 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये

इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन, COVID-19 

मेन्स के लिये

COVID-19 से निपटने में तकनीकी का प्रयोग, जैव प्रोद्योगिकी से संबंधित प्रश्न   

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘कोशिकीय व आण्विक जीव विज्ञान केंद्र’ (Centre for Cellular and Molecular Biology- CCMB) के शोधकर्त्ताओं ने जानकारी दी है कि वे कोरोनावायरस से निपटने के लिये निष्क्रिय विषाणु आधारित वैक्सीन या इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन (Inactivated Virus Vaccine) के निर्माण का प्रयास कर रहे हैं।

मुख्य बिंदु:   

  • इनएक्टिवेटेड वैक्सीन अपनी सुरक्षा और निर्माण की आसान प्रक्रिया के लिये जानी जाती है।
  • शोधकर्ताओं के अनुसार, यह वैक्सीन कोरोनावायरस के प्रसार और इसके दुष्प्रभावों को रोकने का सबसे उपयुक्त उपाय है।
  • वर्तमान में विश्व के अनेक संस्थान इस बीमारी से लड़ने के लिए वैक्सीन के विकास में लगे हुये हैं और विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organaisation- WHO) से विश्व भर से ऐसे 42 से अधिक संस्थाओं की सूची तैयार की है, जो इस बीमारी की वैक्सीन पर कम कर रहें हैं।

इनएक्टिवेटेड वैक्सीन:

  • इस प्रक्रिया में पहले बड़ी संख्या में विषाणुओं का संवर्द्धन किया जाता है और फिर उन्हें रासायनिक प्रक्रिया या ऊष्मा (Heat) से मार दिया जाता है।
  • यद्यपि इस रोगजनक या पैथोजेन (Pathogen) को मार दिया जाता है या उसकी प्रजनन क्षमता को नष्ट कर दिया जाता है परंतु इसके बहुत से अंग/हिस्से जुड़े हुए होते हैं। जैसे- स्पाइक प्रोटीन (Spike Protein) जिसकी सहायता से यह कोशिकाओं में प्रवेश करता है।
  • इसके अतिरिक्त प्रतिरक्षा प्रणाली द्वारा पहचाने जाने वाले एंटीजेन (Antigen) को भी सुरक्षित छोड़ दिया जाता है।
  • जब इस मृत जीवाणु को मानव शरीर में प्रवेश कराया जाता है तो शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली इसे जीवित समझ कर कुछ एंटीबॉडीज़ (Antibodies) के उत्सर्जन के माध्यम से प्रतिक्रिया करती है, जो इनएक्टिवेटेड वायरस वैक्सीन (Inactivated Virus Vaccine) के रूप में कार्य करती है।
  • पोलियो और रेबीज़ के लिये इनएक्टिवेटेड वैक्सीन का निर्माण/विकास इसी प्रकार किया गया था।

लाभ:   

  • मृत होने के कारण यह रोगजनक (Pathogen) तो प्रजनन नहीं कर पाता है और यहाँ तक कि  व्यक्ति में किसी हल्की सी भी बीमारी का विकास नहीं कर पाता। अतः यह उन लोगों को भी दी जा सकती है जिनकी रोग -प्रतिरोधक क्षमता मज़बूत नहीं होती जैसे- बुजुर्ग या सह-रुग्णता (Co-Morbidity) से संबंधित रोगों से ग्रसित लोग आदि   
  • CCMB निदेशक के अनुसार, यदि हम बड़ी संख्या में विषाणुओं का संवर्द्धन कर उसे निष्क्रिय करते हैं तो यह इस बीमारी से संक्रमित लोगों के उपचार में प्रयोग किया जा सकेगा।  
  • पोलियो और रेबीज़ की वैक्सीन निर्माण में इस तकनीकी की सफलता के बाद इस क्षेत्र में उपयुक्त विशेषज्ञता उपलब्ध है। 
  • कोशिका संवर्द्धन की सही तकनीकी की पहचान से COVID-19 के उपचार की दावा के निर्माण में भी सहायता मिलेगी।  

चुनौतियाँ:

  • मानव शरीर के बाहर इस विषाणु का विकास करना एक बड़ी तकनीकी चुनौती है।
  • अभी तक कोरोनावायरस का विकास सिर्फ मानव शरीर में पाया गया है, ऐसे में मानव शरीर से बाहर इस विषाणु के विकास/संवर्द्धन के लिये उपयुक्त कोशिकाओं की पहचान कारण एक बड़ी चुनौती होगी।

  • वर्तमान में इस विषाणु के कृत्रिम विकास के लिये CCMB द्वारा ‘अफ्रीकन ग्रीन मंकी’  (African Green Monkey) में पाए जाने वाले उपकला ऊतक परतों (Epithelial Cell Line) का प्रयोग किया जा रहा है।
  • परीक्षणों के दौरान इन उतकों की निगरानी की जाएगी, यदि इनमें कोई परिवर्तन दिखाई देता है, जैसे-कोशिकाओं का निष्क्रिय होना या वायरस का अलग होना तो यह प्रयोग सफल माना जाएगा।  

स्रोत: पीआईबी

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