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डेली न्यूज़

सामाजिक न्याय

साक्षी के रूप में बच्चों की उपस्थिति संबंधी दिशा-निर्देश

  • 17 Feb 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये

CAA, किशोर न्याय अधिनियम, पाॅक्सो एक्ट

मेन्स के लिये

बच्चों के संरक्षण से संबंधित विभिन्न कानूनी प्रावधान

चर्चा में क्यों?

हाल ही में कर्नाटक के बीदर शहर में स्थित एक स्कूल में नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act-CAA) से संबंधित नाटक के मंचन के कारण देशद्रोह के आरोपों की जाँच के संदर्भ में उपस्थित बच्चों से पूछताछ की गई।

प्रमुख बिंदु

  • कर्नाटक बाल अधिकार संरक्षण आयोग (Karnataka State Commission for Protection of Child Rights) ने बच्चों से बार-बार पूछताछ करने तथा उनका मानसिक उत्पीड़न करने के कारण ज़िला पुलिस की आलोचना की है।
  • इसके अतिरिक्त कर्नाटक उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका दायर कर उन पुलिसकर्मियों पर विभागीय कार्रवाई की मांग की गई है जिन्होंने स्कूल के बच्चों से उनके माता-पिता अथवा अभिभावकों की अनुमति लिये बिना साक्षी के रूप में कई बार पूछताछ की।
  • याचिका में यह भी बताया गया कि हथियारों से लैस पुलिसकर्मियों द्वारा बच्चों से की गई पूछताछ भयभीत व भयपूर्ण वातावरण निर्मित करने वाला कार्य था।
  • जनहित याचिका में किशोर न्याय अधिनियम और संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों के अनुसार आपराधिक कार्रवाई में नाबालिगों से पूछताछ करने के लिये पुलिस को दिशा-निर्देश जारी करने की मांग की गई है।

अंतर्राष्ट्रीय कानून 

  • भारत, वर्ष 1992 से बाल अधिकारों पर निर्मित अंतर्राष्ट्रीय अभिसमय का हस्ताक्षरकर्त्ता देश है, जिसे वर्ष 1989 में संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा अपनाया गया था।
  • अभिसमय में कहा गया है कि सार्वजनिक, निजी या सामाजिक कल्याणकारी संस्थानों, विधि न्यायालयों, प्रशासनिक अधिकारियों या विधायी निकायों द्वारा बच्चों के संरक्षण के लिये किये जाने वाले सभी कार्यों में बच्चे के सर्वोत्तम हित को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • वर्ष 2009 में निर्मित ‘बच्चों को साक्षी और बाल पीड़ितों के रूप में न्याय’ उपलब्ध कराने संबंधी संयुक्त राष्ट्र के अभिसमय ने दिशा-निर्देशों के नए मानक प्रदान किये।
  • इसके अनुसार बच्चों से साक्षी के रूप में पूछताछ करने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित एक अन्वेषक को बच्चे के प्रति संवेदनशील दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए साक्षात्कार निर्देशित करने के लिये नियुक्त किया जाए।

भारतीय कानून

  • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा-118 के अंतर्गत साक्षी के रूप में प्रस्तुत होने के लिये कोई न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं है।
  • न्यायालय के पूर्ववर्ती निर्णय में तीन वर्ष के बच्चे को यौन शोषण के मामलों में साक्षी के रूप में विचारण न्यायालय (Trial Court) के समक्ष पेश किया गया था ।
  • सामान्यतः विचारण के दौरान साक्षी के रूप में बच्चे के बयान दर्ज करने से पहले न्यायालय तर्कसंगत जवाब देने की उसकी क्षमता का निर्धारण करती है।
  • एक बच्चे की योग्यता निर्धारित करने के लिये आमतौर पर उसका नाम, स्कूल का नाम और उसके माता-पिता के नाम पर आधारित प्रश्न पूछे जाते हैं।
  • साक्षी के रूप में बच्चों को शामिल करने वाले परीक्षण मुख्य रूप से बाल यौन शोषण के मामलों में हुए हैं। घरेलू हिंसा से संबंधित अन्य अपराधों में भी बच्चों को शामिल किया जा सकता है।

न्यायालयों के निर्णय

  • बच्चों को साक्षी के रूप में प्रस्तुत करते समय दिल्ली उच्च न्यायालय के दिशा-निर्देश आपराधिक न्याय प्रणाली के महत्त्व को रेखांकित करते हैं, जिसमे कहा गया है कि बच्चों के साथ व्यवहार करते समय संवेदनशीलता अतिआवश्यक है।
  • न्यायालय ने बच्चों को सुभेद्य साक्षी (18 वर्ष से कम आयु के बच्चे) माना है, इसलिये इनसे प्रभावी संचार हेतु एक दक्ष अन्वेषक की नियुक्ति को अनिवार्य बताया है।
  • वर्ष 2016 में दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि जब बच्चे सामान्य अवस्था में आ जाएँ तो सावधानीपूर्वक जाँच के बाद उनके बयान पर विचार किया जा सकता है।

बच्चों के संरक्षण संबंधी अधिनियम

  • किशोर न्याय अधिनियम:
    • यह अधिनियम विशेष रूप से बच्चों को साक्षी के रूप में पूछताछ या साक्षात्कार से संबंधित दिशा-निर्देश प्रदान नहीं करता है।
    • हालाँकि अधिनियम की प्रस्तावना के अनुसार बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए मामले के निपटान में ‘बाल-सुलभ दृष्टिकोण’ का पालन किया जाना चाहिये ।
    • इसका मतलब है कि किशोर न्याय प्रणाली से संबंधित सामान्य दिशा-निर्देशों का पालन करना आवश्यक है। उदाहरण के लिये, बच्चों के साथ संवाद करते समय पुलिसकर्मी को पुलिस वेश-भूषा में नहीं होना चाहिये ।
    • साथ में यह भी आवश्यक है कि बच्चों के साथ संवाद पुलिस की विशेष इकाइयों द्वारा किया जाना चाहिये, जो उनके साथ संवेदनशील व्यवहार करने के लिये प्रशिक्षित हैं।
    • अधिनियम में कहा गया है कि राज्य सरकार द्वारा प्रत्येक ज़िले में पुलिस उपाधीक्षक स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में एक विशेष किशोर पुलिस इकाई का गठन किया जाना चाहिये।
    • अधिनियम में प्रत्येक ज़िले में एक बाल कल्याण समिति बनाए जाने का भी प्रावधान है। जिसका कार्य बच्चों के संरक्षण से संबंधित किसी नियम के उल्लंघन का तुरंत संज्ञान लेना है।
  • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण संबंधी अधिनियम
    • यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण संबंधी अधिनियम का संक्षिप्त नाम पाॅक्सो एक्ट (Protection of Children from Sexual Offences Act– POCSO) है।
    • POCSO अधिनियम, 2012 को बच्चों के हितों और सुरक्षा का ध्यान रखते हुए यौन अपराध, यौन उत्‍पीड़न तथा पोर्नोग्राफी से संरक्षण प्रदान करने के लिये लागू किया गया था।
    • अधिनियम में बच्चों से साक्षी के रूप में संवाद करने के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण निर्देश दिये गए हैं।
    • अधिनियम में कहा गया है कि संवाद सुरक्षित, तटस्थ, बच्चों के अनुकूल वातावरण में आयोजित किये जाने चाहिये तथा बच्चों से एक ही प्रश्न को कई बार पूछकर उनका मानसिक शोषण नहीं करना चाहिये।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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