भारतीय राजव्यवस्था
राज्यसभा चुनाव प्रक्रिया
- 23 Jun 2020
- 8 min read
प्रीलिम्स के लियेराज्यसभा चुनाव प्रक्रिया, एकल संक्रमणीय मत प्रणाली, NOTA मेन्स के लियेराज्यसभा की शक्तियाँ एवं कार्य, राज्यसभा से संबंधित विभिन्न मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राज्यसभा के चुनाव संपन्न हुए हैं। ध्यातव्य है कि कुछ समय पूर्व कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के प्रकोप के कारण उत्पन्न स्थिति को देखते हुए कुछ सीटों पर मतदान स्थगित कर दिया गया था।
प्रमुख बिंदु
- जिन 19 सीटों पर मतदान का आयोजन किया गया, उनमें से लगभग सभी में मतदान का परिणाम काफी स्पष्ट रहा, हालाँकि मणिपुर में इस तथ्य को लेकर विवाद हुआ कि किसे चुनाव में मतदान की अनुमति दी जानी चाहिये तथा किसे नहीं।
- इस प्रकार के विवाद मुख्य रूप राज्यसभा चुनावों से संबंधित नियमों की अलग-अलग व्याख्या के कारण उत्पन्न होते हैं।
- ध्यातव्य है कि ऐसी कई विशेषताएँ हैं जो आम चुनावों और राज्यसभा के चुनावों को अलग करती हैं।
राज्यसभा सदस्यों के चयन की प्रक्रिया
- नियमों के अनुसार, केवल राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य ही राज्यसभा चुनाव में मतदान कर सकते हैं। राज्य के विधायक प्रत्येक दो वर्ष में छह वर्ष के कार्यकाल के लिये राज्यसभा हेतु सदस्यों का चयन करते हैं।
- उल्लेखनीय है कि राज्यसभा एक निरंतर चलने वाली संस्था है, यानी यह एक स्थायी संस्था है और इसका विघटन नहीं होता है, किंतु इसके एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दूसरे वर्ष सेवानिवृत्त होते हैं।
- इसके अतिरिक्त इस्तीफे, मृत्यु या अयोग्यता के कारण उत्पन्न होने वाली रिक्तियों को उपचुनावों के माध्यम से भर जाता है, जिसके पश्चात् चुने गए लोग अपने पूर्ववर्तियों के शेष कार्यकाल को पूरा करते हैं।
- नियमों के अनुसार, राज्यसभा चुनाव के लिये नामांकन दाखिल करने हेतु न्यूनतम 10 सदस्यों की सहमति अनिवार्य है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 80(4) के अनुसार, राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन राज्य विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्त्व पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत के आधार पर होता है।
- अन्य शब्दों में कहें तो एक या एक से अधिक दलों से संबंधित सांसदों का एक दल अपनी पसंद के सदस्य का चुनाव कर सकता है, यदि उनके पास अपेक्षित संख्याएँ हों तो।
- एकल संक्रमणीय मत प्रणाली में मतदाता एक ही वोट देता है, किंतु वह कई उम्मीदवारों को अपनी प्राथमिकता के आधार पर वोट देता है। अर्थात् वह बैलेट पेपर पर यह बताता है कि उसकी पहली वरीयता कौन है और दूसरी तथा तीसरी वरीयता कौन है।
- एक उम्मीदवार को जीतने के लिये पहली वरीयता के वोटों की एक निर्दिष्ट संख्या की आवश्यकता होती है।
- यदि पहले दौर की मतगणना में एक से अधिक उम्मीदवार निर्दिष्ट संख्या प्राप्त करने में विफल रहते हैं तो दूसरे दौर की मतगणना की जाती है।
राज्यसभा में नहीं होता गुप्त मतदान
- राज्यसभा चुनावों के लिये खुली मतपत्र प्रणाली (Open Ballot System) होती है, किंतु इसके अंतर्गत खुलापन काफी सीमित रूप में होता है।
- क्रॉस-वोटिंग की जाँच करने के लिये एक ऐसी व्यवस्था अपनाई गई, जिसमें प्रत्येक दल के विधायक को मतपेटिका में अपना मत डालने से पूर्व दल के अधिकृत एजेंट को दिखाना होता है।
- नियमों के अनुसार, यदि एक विधायक द्वारा स्वयं के दल के अधिकृत एजेंट के अतिरिक्त किसी अन्य दल के एजेंट को मतपत्र दिखाया जाता है तो वह मत अमान्य हो जाएगा। वहीं अधिकृत एजेंट को मतपत्र न दिखाना भी मत को अमान्य कर देगा।
राज्यसभा और NOTA
- भारत निर्वाचन आयोग (ECI) द्वारा 24 जनवरी, 2014 और 12 नवंबर, 2015 को दो परिपत्र जारी किये गए थे, जिसमें राज्यसभा चुनावों में नोटा (None of the Above- NOTA) के विकल्प के प्रयोग की बात की थी।
- हालाँकि 21 अगस्त, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में जस्टिस ए.एम. खानविलकर तथा जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड की पीठ ने एक अहम फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्यसभा चुनाव में नोटा का इस्तेमाल नहीं होगा।
- सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि नोटा डीफेक्शन (Defection) को बढ़ावा देगा और इससे भ्रष्टाचार के लिये दरवाज़े खुलेंगे।
- सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, नोटा को सिर्फ प्रत्यक्ष चुनावों में ही लागू किया जाना चाहिये।
राज्यसभा
- राज्यसभा अपने नाम के अनुरूप ही राज्यों का एक सदन होता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के लोगों का प्रतिनिधित्त्व करता है।
- संविधान के अनुच्छेद 80 में राज्य सभा के सदस्यों की अधिकतम संख्या 250 निर्धारित की गई है, जिनमें से 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाते हैं और 238 सदस्य राज्यों के और संघ राज्य क्षेत्रों के प्रतिनिधि होते हैं।
- राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होते हैं, जिन्हें साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा जैसे विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव प्राप्त होता है।
- राज्यसभा के सदस्यों की अर्हता
- व्यक्ति भारत का नागरिक हो।
- 30 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
- किसी लाभ के पद पर न हो।
- विकृत मस्तिष्क का न हो।
- यदि संसद विधि द्वारा कुछ और अर्हताएँ निर्धारित करे तो यह ज़रूरी है कि उम्मीदवार उसे भी धारण करे।
- ध्यातव्य है कि राज्यसभा, लोकसभा के निर्णयों की समीक्षा करने और सत्तापक्ष के निरंकुशतापूर्ण निर्णयों पर अंकुश लगाने में सहायता करता है।