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डेली न्यूज़

जैव विविधता और पर्यावरण

हिमालयन ग्रिफॉन

  • 21 Mar 2022
  • 7 min read

प्रिलिम्स के लिये:

हिमालयन ग्रिफॉन, गिद्धों की प्रजातियाँ

मेन्स के लिये:

गिद्धों के संरक्षण के प्रयास

चर्चा में क्यों:

हाल ही में असम में कुछ हिमालयन ग्रिफॉन की संदिग्ध विषाक्तता के कारण मृत्यु हो गई।

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हिमालयन ग्रिफॉन

  • परिचय:
    • हिमालयन ग्रिफॉन वल्चर (जिप्स हिमालयेंसिस) एसीपीट्रिडी (Accipitridae) परिवार से संबंधित है, जिसमें ईगल, बुलबुल और बाज भी शामिल हैं।
    • यह यूरोपियन ग्रिफॉन वल्चर जी फुलवस (G. Fulvus) से संबंधित है।
    • गिद्ध की यह एक विशिष्ट प्रजाति है, जिसका सिर सफेद, पंख काफी बड़े तथा इसकी पूँछ छोटी होती है।
    • इसकी गर्दन पर सफेद पंख होते हैं तथा चोंच पीले रंग की होती है साथ ही इसके शरीर का रंग सफेद जैसा (न कि पूरी तरह से सफेद) होता है तथा पंख गहरे (लगभग काले) रंग के होते हैं।
  • सुरक्षा की स्थिति:
  • आवास:
    • हिमालयी गिद्ध ज़्यादातर तिब्बती पठार (भारत, नेपाल और भूटान, मध्य चीन और मंगोलिया) पर हिमालय में पाए जाते हैं।
    • यह मध्य एशियाई पहाड़ों (पश्चिम में कज़ाखस्तान और अफगानिस्तान से लेकर पूर्व में पश्चिमी चीन तथा मंगोलिया तक) में भी पाया जाता है।
    • कभी-कभी यह उत्तरी भारत में प्रवास करता है लेकिन इसका प्रवास आमतौर पर केवल ऊँचाई पर होता है।

गिद्धों के लक्षण/विशेषताएँ:

  • गिद्धों के विषय में:
    • यह मरे हुए जानवरों को खाने वाले पक्षियों की 22 प्रजातियों में से एक है और ये मुख्य रूप से उष्ण-कटिबंधीय और उपोष्ण-कटिबंधीय क्षेत्रों में रहते हैं।
    • ये प्रकृति के कचरा संग्रहकर्त्ता (Nature’s Garbage Collectors) के रूप में एक महत्त्वपूर्ण कार्य करते हैं और पर्यावरण से कचरा हटाकर उसे साफ रखने में मदद करते हैं।
      • गिद्ध वन्यजीवों के रोगों पर नियंत्रण रखने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • भारत में पाई जाने वाली प्रजातियाँ:
    • भारत में गिद्धों की 9 प्रजातियाँ यथा- ओरिएंटल व्हाइट बैक्ड (Oriental White Backed), लॉन्ग बिल्ड (Long Billed), स्लेंडर-बिल्ड (Slender Billed), हिमालयन (Himalayan), रेड हेडेड (Red Headed), मिस्र देशीय (Egyptian), बियरडेड (Bearded), सिनेरियस (Cinereous) और यूरेशियन ग्रिफॉन (Eurasian Griffon) पाई जाती हैं।
      • इन 9 प्रजातियों में से अधिकांश के विलुप्त होने का खतरा है।
      • बियरडेड, लॉन्ग बिल्ड और ओरिएंटल व्हाइट बैक्ड वन्यजीव संरक्षण अधिनियम (Wildlife Protection Act), 1972 की अनुसूची-1 में संरक्षित हैं। शेष 'अनुसूची IV' के अंतर्गत संरक्षित हैं।

खतरा :

  • डाइक्लोफेनाक (Diclofenac) जैसे विषाक्त पदार्थ जो पशुओं के लिये दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है।
  • मानवजनित गतिविधियों के कारण प्राकृतिक आवासों का नुकसान।
  • भोजन की कमी और दूषित भोजन।
  • बिजली लाइनों से करंट लगना।

संरक्षण के प्रयास :

  • भारत द्वारा:
    • हाल ही में पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्री ने देश में गिद्धों के संरक्षण के लिये एक 'गिद्ध कार्ययोजना 2020​-25' (Vulture Action Plan 2020-25) शुरू की।
    • भारत में गिद्धों की मौत के कारणों पर अध्ययन करने के लिये वर्ष 2001 में हरियाणा के पिंजौर में एक गिद्ध देखभाल केंद्र (Vulture Care Centre-VCC) स्थापित किया गया।
    • कुछ समय बाद वर्ष 2004 में गिद्ध देखभाल केंद्र को अपग्रेड करते हुए भारत के पहले ‘गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र’ (VCBC) की स्थापना की गई।
      • वर्तमान में भारत में नौ गिद्ध संरक्षण एवं प्रजनन केंद्र हैं, जिनमें से तीन बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (Bombay Natural History Society-BNHS) द्वारा प्रत्यक्ष रूप से प्रशासित किये जा रहे हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय:
    • ‘SAVE’ (एशिया के गिद्धों को विलुप्ति से बचाना):
      • यह दक्षिण एशिया के गिद्धों की दुर्दशा में सुधार के लिये संरक्षण, अभियान और वित्तपोषण संबंधी गतिविधियों की देख-रेख एवं समन्वय हेतु समान विचारधारा वाले क्षेत्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का संघ है।
      • उद्देश्य: एक ही कार्यक्रम के माध्यम से तीन गंभीर रूप से महत्त्वपूर्ण प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाना।

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विगत वर्षों के प्रश्न

गिद्ध जो कुछ साल पहले भारतीय ग्रामीण इलाकों में बहुत आम हुआ करते थे, आजकल कम ही देखे जाते हैं। इसके लिये ज़िम्मेदार है (2012)

(a) नई आक्रामक प्रजातियों द्वारा उनके घोंसले का विनाश
(b) पशु मालिकों द्वारा अपने रोगग्रस्त मवेशियों के इलाज हेतु इस्तेमाल की जाने वाली दवा
(c) उपलब्ध भोजन की कमी
(d) व्यापक और घातक बीमारी।

उत्तर: (b)

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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