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नाबालिगों की संरक्षकता

  • 09 Mar 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

नाबालिगों की संरक्षकता, जनहित याचिका, स्थायी खाता संख्या, केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड, सर्वोच्च न्यायालय, अनुच्छेद 14, हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, मुस्लिम व्यक्तिगत कानून आवेदन अधिनियम, भारत का विधि आयोग।

मेन्स के लिये:

सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप, बच्चों से संबंधित मुद्दे, नाबालिगों की संरक्षकता और संबंधित कानून।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (PIL) द्वारा मांग की गई कि सभी दस्तावेज़ो में पिता के साथ माता के नाम का भी उल्लेख होना चाहिये।

  • हाल के दिनों में पासपोर्ट और स्थायी खाता संख्या (पैन) कार्ड के नियमों में बदलाव किये गए हैं, जो एक आवेदक को अपनी माता का नाम प्रस्तुत करने की अनुमति देता है यदि वह सिंगल पैरेंट (Single Parent) है।
  • लेकिन जब बात स्कूल सर्टिफिकेट और अभिभावक के रूप में पिता के नाम पर ज़ोर देने वाले कई अन्य दस्तावेज़ो की आती है तो यह एक परेशान करने वाला मुद्दा बना रहता है।
  • पैन (PAN) देश में विभिन्न करदाताओं की पहचान करने का एक साधन है।

सिंगल पैरेंट  वाले लोगों को पासपोर्ट और पैन कार्ड जारी करने संबंधी नियम

  • पासपोर्ट: दिसंबर, 2016 में विदेश मंत्रालय ने पासपोर्ट जारी करने के अपने नियमों को उदार बनाने से संबंधित कई कदम उठाए।
    • तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों के बाद कुछ बदलाव किये गए थे, जिसमें विदेश मंत्रालय और महिला एवं बाल विकास मंत्रालय शामिल थे, जिन्होंने तलाक के बाद या गोद लेने के मामले में बच्चों के लिये पासपोर्ट से संबंधित विभिन्न चिंताओं की जाँच की थी।
    • परिवर्तनों के बाद आवेदक पिता और माता दोनों का विवरण प्रदान करने के बजाय माता-पिता में से किसी एक का नाम प्रदान कर सकते हैं।
    • नए पासपोर्ट आवेदन फॉर्म में आवेदक को तलाकशुदा होने पर अपना या अपने पति या पत्नी का नाम प्रदान करने की आवश्यकता नहीं है और न ही तलाक की डिक्री प्रदान करने की आवश्यकता है।
  • PAN (पैन): नवंबर 2018 में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड ने आयकर नियम, 1962 में संशोधन किया, ताकि माता के सिंगल पैरेंट (Single Parent) होने पर पिता का नाम अनिवार्य न हो।
    • नया पैन आवेदन फॉर्म में पिता के साथ माता के नाम की भी ज़रूरत होती है।
    • यह आवेदक की इच्छा पर निर्भर है  कि उसे पैन कार्ड पर अपने पिता और माता में से किसका का नाम चाहिये।

देश में संरक्षकता कानून:

  • हिन्दू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम:
    • भारतीय कानून नाबालिग (18 वर्ष से कम आयु) की संरक्षकता के मामले में पिता को वरीयता  प्रदान करते हैं।
    • हिंदुओं के धार्मिक कानून या हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, (HMGA) 1956 के तहत नाबालिग या संपत्ति के संबंध में एक हिंदू नाबालिग का प्राकृतिक अभिभावक "पिता होता है तथा उसके बाद माता का अधिकार है।
      • बशर्ते कि एक नाबालिग की कस्टडी जिसकी पांँच वर्ष की उम्र पूरी नहीं हुई है, सामान्यत मां के पास होगी। 
  • मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम, 1937:
    • मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम [The Muslim Personal Law (Shariat) Application Act, 1937] के अनुसार, संरक्षकता के मामले में शरीयत या धार्मिक कानून लागू होगा, जिसके अनुसार जब तक बेटा सात साल की उम्र पूरी नहीं कर लेता है और बेटी प्रौढ़  अवस्था को प्राप्त नहीं कर लेती है तब तक पिता प्राकृतिक अभिभावक है, हालांँकि पिता को  सामान्य पर्यवेक्षण और नियंत्रण का अधिकार प्राप्त है।
    • मुस्लिम कानून में अभिरक्षा या 'हिजानत' (Hizanat) की अवधारणा में कहा गया है कि बच्चे का कल्याण सर्वोपरि है।
    • यही कारण है कि मुस्लिम कानून बाल्यावस्था (Tender Years) में बच्चों की कस्टडी के मामले में पिता के स्थान पर माता को वरीयता प्रदान करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय:
    • वर्ष 1999 में गीता हरिहरन बनाम भारतीय रिज़र्व बैंक मामले में सर्वोच्च न्यायालय के ऐतिहासिक फैसले ने आंशिक राहत प्रदान की।
    • इस केस में HMGA को भारत के संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत लैंगिक समानता की गारंटी के उल्लंघन के लिये चुनौती दी गई थी।
      • अनुच्छेद 14 के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को भारत के क्षेत्र में कानून के समक्ष समानता या कानूनों के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
    • न्यायालय ने माना कि "बाद" शब्द का अर्थ "पिता के जीवनकाल के बाद" (After The Lifetime Of The Father ) नहीं होना चाहिये, बल्कि "पिता की अनुपस्थिति में" (Absence Of The Father) होना चाहिये।
    • लेकिन यह निर्णय माता-पिता दोनों को समान अभिभावक के रूप में मान्यता देने में विफल रहा, जिसने पिता की भूमिका के लिये एक माँ की भूमिका को अधीन कर दिया।
    • हालाँकि यह फैसला अदालतों के लिये एक मिसाल कायम करता है, लेकिन इससे HMGA में कोई संशोधन नहीं हुआ है।
  • भारतीय विधि आयोग :
    • भारतीय विधि आयोग ने मई 2015 में "भारत में संरक्षकता और अभिरक्षा कानूनों में सुधार" पर अपनी 257वीं रिपोर्ट में सिफारिश की थी कि:
      • यह एकल माता-पिता के साथ एकल बाल अभिरक्षा के विचार से असहमत था।
      • माता और पिता दोनों को एक साथ एक अवयस्क के प्राकृतिक अभिभावक के रूप में माना जाना चाहिये।
      • इसने संयुक्त अभिरक्षा के लिये HMGA और GWA में संशोधन हेतु तथा इस तरह की संरक्षकता, बाल सहायता और मुलाक़ात व्यवस्था से संबंधित दिशा-निर्देशों की विस्तृत सिफारिशें की।

प्रमुख चिंता:

  • हालाँकि वैवाहिक विवाद में न्यायालय माँ को बच्चे की कस्टडी प्रदान करने का अधिकार दे सकता हैं परंतु कानून में संरक्षकता मुख्य रूप से पिता के पास है और यह विरोधाभास इस बात पर प्रकाश डालता है कि माता को देखभाल करने वाले के रूप में माना जाता है, लेकिन बच्चों के लिये निर्णय लेने वालों के रूप में नहीं।

आगे की राह

  • विभिन्न सरकारी विभागों को यह सुनिश्चित करने के लिये अपने नियमों में सक्रिय रूप से संशोधन करना चाहिये कि वे गीता हरिहरन फैसले के अनुरूप हैं क्योंकि कानूनों में संशोधन एक चुनौतीपूर्ण अभ्यास हो सकता है।
  • जब तक ऐसा नहीं होता, तब तक लोगों को राहत के लिये अदालतों का चक्कर लगाना पड़ता है।

विगत वर्षों के प्रश्न

एक कानून जो कार्यपालिका या प्रशासनिक प्राधिकरण को किसी मामले में अनिर्देशित और अनियंत्रित विवेकाधीन शक्ति प्रदान करता है, निम्नलिखित में से भारत के संविधान के किस अनुच्छेद का उल्लंघन करता है?

(a) अनुच्छेद 14 
(b) अनुच्छेद 28
(c) अनुच्छेद 32 
(d) अनुच्छेद 44

उत्तर: (a)

स्रोत: द हिंदू

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