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नील नदी पर ‘ग्रैंड रेनेसां डैम’ विवाद

  • 26 May 2020
  • 7 min read

प्रीलिम्स के लिये:

ग्रैंड  रेनेसां डैम, नील नदी

मेन्स के लिये:

ग्रैंड  रेनेसां डैम विवाद

चर्चा में क्यों?

इथियोपिया द्वारा नील नदी पर एक ‘मेगा जल विद्युत परियोजना’ का निर्माण किया जा रहा है जिसने नदी के अनुप्रवाह में स्थित देशों यथा- मिस्र तथा इथियोपिया के मध्य ‘जल-युद्ध’ की संभावना को बढ़ा दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • अफ्रीका की सबसे लंबी ‘नील नदी’ के जल बंटवारे को लेकर अफ्रीकी महाद्वीप के कई देशों के मध्य एक दशक से अधिक समय से विवाद चल रहा है।
  • वर्ष 2020 के अंत में इथियोपिया और मिस्र नील नदी पर जलविद्युत परियोजना के भविष्य को लेकर वाशिंगटन डीसी में बातचीत शुरू करने जा रहे हैं।

नील नदी:

  • नील नदी विश्व की सबसे लंबी नदी है। यह भूमध्य रेखा के दक्षिण से निकलकर उत्तर पूर्वी अफ्रीका से होकर भूमध्य सागर में गिरती है। इसकी लंबाई लगभग 4,132 मील (6,650 किलोमीटर) है। नदी के अपवाह बेसिन का क्षेत्रफल लगभग 1,293,000 वर्ग मील (3,349,000 वर्ग किलोमीटर) है। 
  • नील नदी बेसिन तंज़ानिया, बुरुंडी, रवांडा, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, केन्या, युगांडा, दक्षिण सूडान, इथियोपिया, सूडान और मिस्र में विस्तृत है।
  • नील नदी की दो प्रमुख सहायक नदियाँ- व्हाइट नील और ब्लू नील हैं। व्हाइट नील नदी का उद्गम मध्य अफ्रीका के ‘महान अफ्रीकी झील’ (African Great Lakes) क्षेत्र से होता है जबकि ब्लू नील का उद्गम इथियोपिया की 'लेक टाना' से होता है। 

Ethiopia-Nile-dam

नदी विवाद का कारण:

  • व्हाइट नील नदी मुख्यत: युगांडा, दक्षिण सूडान, सूडान और मिस्र से होकर बहती है। जबकि ब्लू नील नदी का अपवाह बेसिन पूर्वी अफ्रीका के देशों यथा- इथियोपिया तथा सूडान  आदि में विस्तृत है। 
  • ब्लू नील नदी जो नील नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है, इथियोपिया से होकर बहती है। इथियोपिया द्वारा वर्ष 2011 में ब्लू नील नदी पर बांध निर्माण का कार्य शुरू किया गया था जिस पर मिस्र द्वारा आपत्ति जताई गई थी ।
  • इथियोपिया द्वारा नील नदी पर बनाया जा रहा 'ग्रैंड रेनेसां डैम' (Grand Rennaissance Dam) अफ्रीका का सबसे बड़ा बांध होगा।
  • सूडान ने भी इस परियोजना पर आपत्ति दर्ज करवाई है।
  • आवश्यक जल स्रोत के रूप में अफ्रीका में नील नदी का बहुत अधिक महत्त्व है, अत: वर्तमान नदी विवाद दोनों राष्ट्रों (इथियोपिया और मिस्र) के बीच पूर्ण संघर्ष में भी बदल सकता है। अत: अमेरिका ने इस नदी विवाद में मध्यस्थता करने के लिये कदम बढ़ाया है।

ग्रैंड रेनेसां डैम (Grand Rennaissance Dam):

  • यह अफ्रीका की सबसे बड़ी बांध परियोजना है जिसका नील नदी पर स्थायी प्रभाव पड़ेगा।
  • बांध का निर्माण इथियोपिया के तराई क्षेत्रों में ब्लू नील नदी पर किया गया है। 

क्यों है संघर्ष की संभावना?

  • नील नदी पर इथियोपिया द्वारा बनाई जा रही मेगा परियोजना के कारण, इथियोपिया नील नदी के जल को नियंत्रित कर सकता है। यह मिस्र के लिये चिंता का विषय है क्योंकि मिस्र नील नदी के अनुप्रवाह में स्थित है।
  • मिस्र ने परियोजना पर आपत्ति जताई है तथा इस परियोजना के लिये एक लंबी समयावधि प्रस्तावित की है ताकि नील नदी के जल स्तर में अचानक तीव्र कमी देखने को न मिले।
  •  पिछले चार वर्षों में मिस्र, इथियोपिया और सूडान के बीच त्रिपक्षीय वार्ता का आयोजन किया जा रहा है परंतु तीनों देश किसी समझौते तक पहुँचने में असमर्थ रहे हैं।

इथियोपिया के लिये बांध का महत्त्व:

  • इथियोपिया का मानना है कि बाँध निर्माण से लगभग 6,000 मेगावाट विद्युत उत्पन्न की जा सकेगी। इथियोपिया की 65% आबादी वर्तमान में विद्युत की कमी का सामना कर रही है। बांध निर्माण से देश के विनिर्माण उद्योग की मदद मिलेगी तथा पड़ोसी देशों को विद्युत की आपूर्ति करने से राजस्व में वृद्धि की संभावना है। 

नदी जल विवाद की वर्तमान स्थिति:

  • हाल ही में मिस्र ने इथियोपिया और सूडान के साथ फिर से वार्ता को आगे बढ़ाने पर सहमति जताई है। मिस्र का मानना है कि वह किसी भी समझौते पर सहमति बनाते समय इथियोपिया और सूडान के हितों को भी ध्यान में रखेगा।
  • इथियोपिया का मानना है कि उसे बांध को जल से भरने के लिये मिस्र की अनुमति की आवश्यकता नहीं है। मिस्र ने 1 मई को ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ को लिखा कि बांध निर्माण से मिस्र के आम नागरिकों की खाद्य एवं  जल सुरक्षा तथा आजीविका प्रभावित होगी। मिस्र ने यह भी कहा कि इस बांध निर्माण के कारण दोनों देशों के बीच सशस्त्र संघर्ष भी हो सकता है।

आगे की राह:

  • अमेरिका के नदी जल विवाद पर मध्यस्था करने पर सहमति जताई है। अत: अफ्रीकी देशों को चाहिये की वे अमेरिका के नेतृत्त्व में या बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के स्वयं सभी हितधारक देशों को एक साथ मिलकर मामले को सुलझाने का प्रयास कर करना चाहिये। इसके लिये ‘नील बेसिन पहल’ जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों का उपयोग किया जा सकता है। 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस

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