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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

प्रफुल्ल समंतारा को गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार

  • 26 Apr 2017
  • 4 min read

समाचारों में क्यों ?

पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले देश के अग्रणी पर्यावरणविद् प्रफुल्ल समंतारा को एशिया क्षेत्र के लिए गोल्डमैन पर्यावरण पुरस्कार दिए जाने की घोषणा की गई। प्रफुल्ल समंतारा को ओडिशा के डोंगरिया कोंध आदिवासियों के कल्याण, उनकी भूमि एवं संस्कृति के संरक्षण के लिये किए गए उत्कृष्ट कार्य के लिये इस पुरस्कार के लिए चुना गया।

महत्त्वपूर्ण बिंदु
प्रफुल्ल समंतारा ‘ग्रीन नोबेल’ के नाम से लोकप्रिय इस पुरस्कार को जीतने वाले भारत के छठे व्यक्ति हैं। प्रफुल्ल ने मूलवासी डोंगरिया कोंध आदिवासियों के भूमि अधिकारों के लिए 12 साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी और उनके पूजनीय स्थल नियामगिरी पर्वत को खनन से बचाया।

प्रफुल्ल की कानूनी लड़ाई का ही नतीजा रहा कि पूरे देश में स्थानीय ग्राम परिषद स्थापित करने का अभूतपूर्व फैसला गया, जो कि अपने क्षेत्रों में खनन गतिविधियों से संबंधित फैसले लेते हैं। इससे आदिवासियों को अपनी भूमि, जीवन और भविष्य के बारे में बेहतर फैसले लेने का नियंत्रण हासिल हुआ।

प्रफुल्ल समंतारा से पहले मेधा पाटकर, एम. सी. मेहता, राशिदा बी और चंपा देवी शुक्ला को संयुक्त रूप से तथा रमेश अग्रवाल इस पुरस्कार से नवाजे जाने वाले भारतीय हैं।

यह पुरस्कार दुनिया के छह मानव सभ्यता वाले इलाकों – अफ्रीका, एशिया, यूरोप, द्वीप एवं द्विपीय देश, उत्तरी अमेरिका और दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका – में जमीनी स्तर पर पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों को दिया जाता है।

इस वर्ष अन्य क्षेत्रों से इस पुरस्कार के विजेताओं में स्लोवेनिया के उरोस मासेर्ल, अमेरिका के मार्क लोपेज, ग्वाटेमाला के रोड्रिगो टॉट, कांगो के रॉड्रिग मुगारुका काटेंबो और आस्ट्रेलिया के वेंडी बोमैन शामिल हैं।

डोंगरिया कोंध आदिवासियों से संबंधित महत्त्वपूर्ण तथ्य
ओडिशा के नियमगिरी की पहाड़ियों में रहने वाले डोंगरिया कोंध आदिवासियों को विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूहों की श्रेणी में रखा गया है।

माना जाता है कि डोंगरिया कोंध आदिवासी समुदाय मूल रूप से ऑस्ट्रेलॉयड नस्लीय समूह से संबंध रखता है। उनकी मूल भाषा कुई है, जो ओडिया स्क्रिप्ट के साथ लिखी जाने वाली द्रविड़ भाषा है।

पहले वे चरागाहों और शिकार के आधार पर जीवन-यापन करते थे, लेकिन अब वे झूम विधि पर आधारित कृषि करने लगे हैं। वे स्वयं को झरनिया अर्थात झरनों के समीप रहने वाला कहते हैं। नियमगिरी की पहाड़ियों से निकलने वाले झरनों के किनारे इनके गाँव बसे हुये हैं।

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