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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

ग्लोबल करप्शन परसेप्शन इंडेक्स- 2017

  • 23 Feb 2018
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?
अंतर्राष्ट्रीय गैर सरकारी संगठन ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल’ द्वारा जारी ग्लोबल करप्शन इंडेक्स-2017 में भारत को 180 देशों की सूची में 81वें स्थान पर रखा गया है, जबकि पिछले साल की रिपोर्ट में भारत को 176 देशों की सूची में 79वें स्थान पर रखा गया था। इस संगठन का मुख्यालय जर्मनी के बर्लिन में है। 

प्रमुख बिंदु 

  • इस रिपोर्ट में भारत को एशिया-पैसिफिक क्षेत्र में सबसे खराब स्थिति वाले देशों की श्रेणी में रखा गया है। 
  • इस सूचकांक को तैयार करने के लिये विभिन्न देशों को अलग-अलग मानकों पर 0 से 100 अंको के बीच अंक दिये जाते हैं। शून्य अंक सबसे अधिक भ्रष्टाचार का संकेतक है तथा 100 अंक भ्रष्टाचार की अनुपस्थिति को दर्शाता है। 
  • इस बार की सूची में भारत को पिछले वर्ष के बराबर ही 40 अंक दिये गए हैं। हालाँकि भारत की स्थिति में 2015 के बाद से सुधार हुआ है जिसमें भारत को 38 अंक दिये गए थे। 
  • इस रिपोर्ट के मुताबिक एशिया-प्रशांत क्षेत्र के कुछ देशों में पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्त्ताओं, विपक्षी नेताओं और यहाँ तक कि कानून प्रवर्तन और नियामकीय एजेंसियों के अधिकारियों को भी धमकियाँ दी जाती हैं और ऐसा भी देखने में आया है कि कई जगह उनकी हत्या भी कर दी जाती है। 
  • इस संदर्भ में भारत की स्थिति मालदीव और फिलीपींस के समान है, जहाँ भ्रष्टाचार के मामले में इन देशों के अंक अधिक हैं, पत्रकारों की हत्या अधिक होती है और प्रेस की स्वतंत्रता भी कम है।
  • इस रिपोर्ट में कमिटी टू प्रोटेक्ट जर्नलिस्ट्स के आँकड़ों को उद्धृत करते हुए कहा गया है कि पिछले 6 वर्षों में इस क्षेत्र में 15 पत्रकारों की हत्या की जा चुकी है।

अन्य देशों की रैंकिंग 

  • इस सूची में न्यूजीलैंड (89 अंक), डेनमार्क (88 अंक) तथा फ़िनलैंड (88 अंक) सबसे कम भ्रष्ट देश हैं जबकि सीरिया, सूडान और सोमालिया क्रमश: 14, 12 और 9 अंक के साथ सर्वाधिक भ्रष्ट देश हैं।
  • वहीं, इस सूची में चीन 77वें, ब्राज़ील 96वें और रूस 135वें स्थान पर है।
  • इस सूची में श्रीलंका को 91वें, पाकिस्तान को 117वें, म्यांमार को 130वें और बांग्लादेश को 143वें स्थान पर रखा गया है।

ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल ने भ्रष्टाचार को रोकने के लिये निम्नलिखित पाँच मुख्य सुझाव दिये हैं- 

  • स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र मीडिया, राजनीतिक असहमतियों तथा एक खुले और सक्रिय नागरिक समाज को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारों और व्यवसायों को और अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है।
  • सरकारों को परंपरागत और नए मीडिया पर विनियमन को अधिक कठोर नहीं करना चाहिये तथा यह सुनिश्चित करना चाहिये कि पत्रकार दमन अथवा हिंसा के भय के बिना काम कर सकें। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय दानदाताओं को विकास सहायता या अंतर्राष्ट्रीय संगठनों तक पहुँच के संदर्भ में प्रेस की स्वतंत्रता की प्रासंगिकता पर भी विचार करना चाहिये।
  • सिविल सोसाइटी और सरकारों को उन कानूनों को बढ़ावा देना चाहिये जो सूचनाओं तक पहुँच पर केंद्रित हैं। यह पहुँच भ्रष्टाचार के अवसरों को कम करते हुए पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाने में सहायता करती है। सरकारों को ऐसे कानूनों के उचित वैधानिक ढाँचे में निवेश के साथ ही इनके कार्यान्वयन के लिये भी प्रतिबद्ध होना चाहिये।
  • राष्ट्रीय और वैश्विक स्तर पर सुधारों की वकालत तथा इन्हें बढ़ावा देने के लिये सरकारों और कार्यकर्त्ताओं को संयुक्त राष्ट्र सतत् विकास लक्ष्यों द्वारा प्रदत्त अवसरों का लाभ उठाना चाहिये। विशेष रूप से, सरकारों को सूचनाओं तक पहुँच और मौलिक स्वतंत्रता की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए इन्हें विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय समझौतों और वैश्विक स्तर की सर्वोत्तम प्रथाओं से पूरित करना चाहिये।
  • सरकारों और व्यवसायों को स्वयं पहल करते हुए सार्वजनिक हित से संबंधित सूचनाओं का ओपन डाटा स्वरूप में खुलासा करना चाहिये। सरकारी बजट, कंपनियों के स्वामित्व, सार्वजनिक खरीद और राजनीतिक दलों के वित्तपोषण सहित प्रासंगिक सूचनाओं का खुलासा, पत्रकारों, नागरिक समाज और प्रभावित समुदायों को भ्रष्ट आचरण के पैटर्न को और अधिक कुशलता से पहचानने में सक्षम बनाता है।
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