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जैव विविधता और पर्यावरण

ग्लासगो ग्लेशियर: अंटार्कटिका

  • 02 Nov 2021
  • 5 min read

प्रिलिम्स के लिये:

ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन, यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज, स्टॉकहोम सम्मेलन, विश्व जलवायु सम्मेलन, रियो शिखर सम्मेलन, ग्रीन क्लाइमेट फंड

मेन्स के लिये:

ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभाव एवं पर्यावरणीय संरक्षण में COP का महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में अंटार्कटिका में 100 किमी. लंबा बर्फ का पिंड जो तेज़ी से पिघल रहा है, को औपचारिक रूप से ग्लासगो जलवायु शिखर सम्मेलन के बाद ग्लासगो ग्लेशियर नाम दिया गया।

  • यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) के COP का 26वाँ सत्र ब्रिटेन के ग्लासगो में आयोजित किया जा रहा है।

Climate-Cities

प्रमुख बिंदु

  • शोध: इंग्लैंड में लीड्स विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिका के गेट्ज़ बेसिन में ग्लेशियरों की एक शृंखला का अध्ययन किया है।
  • जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 1994 और 2018 के बीच पश्चिम अंटार्कटिका के गेट्ज़ बेसिन में 14 ग्लेशियरों की मोटाई औसतन 25% कम हो गई है। पिछले 25 वर्षों में इस क्षेत्र से 315 गीगाटन बर्फ पिघल गई जो वैश्विक समुद्र के स्तर में वृद्धि में योगदान दे रही है।
  • गेट्ज़ बेसिन अंटार्कटिका के सबसे बड़े आइस शेल्फ का हिस्सा है। शेल्फ अधिक परिवर्तनशील समुद्री बल के अधीन होता है, यह एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ अन्य अंटार्कटिक शेल्फ की तुलना में अपेक्षाकृत गर्म गहरे समुद्र का पानी ग्लेशियरों को पिघला देता है।
  • अन्य ग्लेशियरों के नाम: आठ नए नामित ग्लेशियर निम्नलिखित पर आधारित हैं:
    • स्टॉकहोम सम्मेलन (1972): स्टॉकहोम सम्मेलन के प्रमुख परिणामों में से एक संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) का निर्माण था।
    • विश्व जलवायु सम्मेलन, जिनेवा (1979): विश्व जलवायु सम्मेलन, जिसे अब आमतौर पर प्रथम विश्व जलवायु सम्मेलन कहा जाता है, जिनेवा में आयोजित किया गया था।
    • रियो शिखर सम्मेलन (1992): इसने एजेंडा 21 नामक विकास प्रथाओं की एक सूची की सिफारिश की। इसने सतत् विकास की अवधारणा को पारिस्थितिक ज़िम्मेदारी के साथ संयुक्त आर्थिक विकास से जोड़ा।
    • COP-1 (बर्लिन, जर्मनी, 1995): जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (COP-1) के लिये COP-1 का आयोजन वर्ष 1995 में बर्लिन में किया गया।
    • क्योटो प्रोटोकॉल (1997): क्योटो में विकसित देश वर्ष 2008 और 2012 के बीच वर्ष 1990 के स्तर से नीचे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 5.2% की कमी के सामूहिक लक्ष्य पर सहमत हुए।
    • COP-13 (बाली, इंडोनेशिया, 2007): पार्टियों ने बाली रोडमैप और बाली कार्य योजना पर सहमति व्यक्त की, जिसने वर्ष 2012 के बाद के परिणाम की ओर अग्रसर किया।
    • COP-21 (पेरिस, 2015): वैश्विक तापमान को पूर्व-औद्योगिक समय से 2.0C से नीचे रखना और उसे 1.5C तक और भी अधिक सीमित करने का प्रयास करना।
      • इसके लिये विकसित देशों को वर्ष 2020 के बाद भी वार्षिक रूप से 100 बिलियन अमेरिकी डॉलर की फंडिंग संबंधी प्रतिबद्धता बनाए रखने की आवश्यकता है।
    • इंचियोन: ग्रीन क्लाइमेट फंड (GCF) दक्षिण कोरिया के इंचियोन में स्थित है।
  • महत्त्व: पिछले 40 वर्षों में उपग्रहों द्वारा हिमशैल के आकार में वृद्धि होने की घटनाओं, ग्लेशियरों के प्रवाह में परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के विनाशकारी प्रभाव के कारण बर्फ को तेज़ी से पिघलते देखा गया है।
    • प्रमुख जलवायु संधियों, सम्मेलनों और रिपोर्टों के अतिरिक्त ग्लेशियरों का नामकरण पिछले 42 वर्षों में ‘जलवायु परिवर्तन विज्ञान एवं नीति पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग’ का जश्न मनाने का एक शानदार तरीका रहा है।

स्रोत: द हिंदू

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