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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जीनोम अनुक्रमण से शीघ्र ही रोगमुक्त जूट की प्राप्ति

  • 09 May 2017
  • 5 min read

संदर्भ
भारत के कृषि अनुसंधानकर्त्ताओं ने देश में पाई जाने वाली प्रसिद्द फसल जूट के जीनोम का प्रतिचित्रण किया है। इससे बेहतर गुणों वाली जूट की नई किस्मों का उत्पादन किये जाने की संभावना है।

प्रमुख बिंदु

  • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (Indian Council of Agricultural Research –ICAR) के वैज्ञानिकों का कहना है कि जूट के जीनोम अनुक्रमण से उन्हें रोग प्रतिरोध, उपज सुधार और अच्छी गुणवत्ता वाले रेशों के कई हज़ार गुणसूत्रों का पता लगाने में सहायता मिलेगी।
  • प्रतिचित्रण के लिये आईसीएआर के निदेशक नागेन्द्र कुमार सिंह के नेतृत्व में नई दिल्ली स्थित ‘नेशनल रिसर्च सेंटर ऑन प्लांट बायोटेक्नोलॉजी’ के वैज्ञानिकों ने जूट की एक डार्क किस्म(dark jute variety) का प्रयोग किया जिसे ‘नविन’(Navin) कहा जाता है।
  • इसे मुख्यतः भारत और बांग्लादेश के किसानों द्वारा उगाया जाता है। ‘नविन’ सूडान से लाई गई जूट की किस्म और एक स्वदेशी किस्म का संकरण है। इसकी कृषि एक दशक से भी अधिक समय से की जा रही है।
  • जूट की डार्क किस्म को किसानों के मध्य ‘टोस्सा’ (tossa) के नाम से जाना जाता है। यह पूरे देश में उगाई जाने वाली जूट का 90% है। इसका उत्पादन केवल इसलिये ही नहीं किया जाता है कि इससे मुलायम और मज़बूत रेशे बनते हैं बल्कि इसका उत्पादन इसलिये भी किया जाता है क्योंकि किसान इसका उपयोग धान के खेतों में फसल चक्रण के लिये करते हैं।
  • परंपरागत रूप से फसल की एक नई किस्म का उत्पादन करने में 12 से 15 वर्षों का समय लगता है परन्तु आनुवंशिक आँकड़े और डीएनए होने से एक उन्नत क़िस्म का उत्पादन करने में छह से सात वर्षों का समय लगेगा। शोधकर्ताओं के अनुसार, रोग प्रतिरोधकता के लिये 1,700 गुणसूत्रों की पहचान की गई है।
  • भारतीय प्रजनकों ने विगत दिनों समय से पहले आने वाले फूलों की प्रतिरोधकता को स्वदेशी प्रकार में स्थानांतरित करने के लिये अफ़्रीकी जूट का प्रयोग किया था। जो मार्च के दौरान की गई शुरुआती बुवाई में समय से पहले लगने वाले फूलों के प्रति अतिसंवेदनशील थे।
  • संभवतः जलवायु परिवर्तन के कारण टोस्सा जूट में उपस्थित पुष्प प्रतिरोधकता समाप्त हो गई जिसके परिणामस्वरूप किसानों की उपज को अत्यधिक नुकसान हुआ।
  • वर्तमान जीनोम अनुक्रमण से टोस्सा जूट में समय से पूर्व लगने वाले फूलों की प्रक्रिया और इस विशेषता को विकसित करने वाले गुणसूत्रों के बारे में पता लगाया जा सकेगा।
  • इससे टोस्सा जूट की उच्च उत्पादक किस्मों के बारे में यह जानकारी प्राप्त होगी कि ये शुरुआती बुवाई में समय से पूर्व लगने फूलों के प्रति अत्यधिक प्रतिरोधी हैं अथवा नहीं।
  • इसके अतिरिक्त जीनोम अनुक्रमण से रेशे की गुणवत्ता को नियंत्रित करने वाले और अजैविक तनावों(मुख्यतः सूखा और बाढ़) के प्रतिरोधी गुणसूत्रों का पता लगाने में सहायता मिलेगी।
  • भारत में लगभग 8,22,000 हेक्टेयर भूमि पर जूट की फसल उगाई जाती है तथा इसमें तक़रीबन 4 मिलियन छोटे और सीमांत किसान संलग्न रहते हैं।

जीनोम अनुक्रमण क्या है?

  • एक जीनोम में डीएनए न्यूक्लियोटाइड अथवा क्षार के क्रम की पहचान करना ही जीनोम अनुक्रमण है।
  • एडिनिन,सायटोसिन,गुआनिन और थायमिन से मिलकर किसी जीव के डीएनए का निर्माण होता है। मानव का जीनोम इसी प्रकार के 3 बिलियन आनुवंशिक अक्षरों से मिलकर बना है।
  • वर्तमान में डीएनए अनुक्रमण व्यापक स्तर पर हो रहा है। यह आवश्यक प्रोजेक्टों जैसे- सम्पूर्ण जीनोम का अनुक्रमण करने के लिये आवश्यक है। इसे उच्च तकनीक वाली मशीनों के माध्यम से किया जाता है। 
  • इससे वैज्ञानिकों के लिये जीनों की पहचान करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। जीनोम अनुक्रमण से जीनों की स्थिति के विषय में पता चलता है।
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