भारतीय राजव्यवस्था
भारत में संस्थागत प्रसवों को निर्धारित करने वाले कारक
- 27 Dec 2021
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प्रिलिम्स के लिये:जननी सुरक्षा योजना (JSY), प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY), लक्ष्य कार्यक्रम, पोषण अभियान, राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 जैसी संबंधित पहल। मेन्स के लिये:संस्थागत डिलीवरी का निर्धारण करने वाले सामाजिक-आर्थिक कारक, संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पीयर-रिव्यू जर्नल ग्लोबल हेल्थ एक्शन में प्रकाशित आँकड़ों के अध्ययन में उन कारकों का विश्लेषण किया गया है जो संस्थागत प्रसव के कम कवरेज में बाधा के रूप में कार्य करते हैं।
- अध्ययन के अनुसार गरीबी, शिक्षा और सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्त्ता के संपर्क में रहना शादी की उम्र से अधिक महत्त्वपूर्ण यह निर्धारित करने में है कि क्या एक माँ चिकित्सा सुविधा में सुरक्षित जन्म दे पाएगी या नहीं।
- यह शोध ऐसे समय में आया है जब सरकार ने मातृ मृत्यु दर को कम करने के लिये महिलाओं की शादी की उम्र बढ़ाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव रखा है।
संस्थागत प्रसव
- संस्थागत प्रसव का अर्थ है चिकित्सा संस्थान में प्रशिक्षित और सक्षम स्वास्थ्यकर्मियों की देख-रेख में बच्चे को जन्म देना।
- जहाँ किसी भी स्थिति को संभालने तथा माँ एवं बच्चे के जीवन को बचाने के लिये उत्तम सुविधाएँ उपलब्ध हों।
प्रमुख बिंदु:
- परिचय:
- अध्ययन: यह देश में संस्थागत प्रसव के उपयोग पर अपनी तरह का पहला अध्ययन है।
- यह अध्ययन सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारकों के साथ-साथ संस्थागत प्रसव के कम कवरेज की बाधाओं को खोजने में अद्वितीय है और बच्चे के जन्म से संबंधित जटिलताओं के कारण मातृ मृत्यु दर के ज़ोखिम को टालने में एक महत्त्वपूर्ण हस्तक्षेप है।
- डेटा: यह अध्ययन राज्य-स्तरीय मातृ मृत्यु अनुपात (2016 से 2018) के साथ-साथ राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण- (एनएफएचएस) 4 (2015-2016) पर डेटा का विश्लेषण करता है।
- अध्ययन का फोकस: यह कम प्रदर्शन करने वाले नौ राज्यों (LPS) असम, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पर केंद्रित है जहाँ मातृ मृत्यु दर अधिक है।
- ये राज्य देश की आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं और देश में मातृ मृत्यु में 62%, शिशु मृत्यु में 71%, पाँच साल से कम उम्र की मौतों में 72% तथा जन्म में 61% योगदान करते हैं।
- वैश्विक मातृ मृत्यु में इनकी 12% हिस्सेदारी है।
- भारत में मातृ मृत्यु दर 113 प्रति 100,000 है और इन नौ राज्यों में प्रति 100,000 में 161 मौतों की दर "खतरनाक रूप से उच्च" बनी हुई है।
- अध्ययन: यह देश में संस्थागत प्रसव के उपयोग पर अपनी तरह का पहला अध्ययन है।
- अध्ययन के निष्कर्ष (सामाजिक-जनसांख्यिकीय कारक):
- एक महिला संस्थागत प्रसव करेगी या नहीं, यह निर्धारित करने में गरीबी, शादी की उम्र की तुलना में दोगुने से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है।
- असम में सबसे रिचेस्ट वेल्थ इंडेक्स (Richest Wealth Index) की महिलाओं के स्वास्थ्य संस्थान में प्रसव कराने की संभावना सबसे पुअरेस्ट वेल्थ इंडेक्स (Poorest Wealth Index) की महिलाओं की तुलना में लगभग 14 गुना अधिक थी।
- इसी तरह सबसे गरीब महिलाओं की तुलना में झारखंड, मध्य प्रदेश और उत्तराखंड जैसे राज्यों में सबसे अमीर महिलाओं के बीच स्वास्थ्य सुविधा में प्रसव की संभावना लगभग पांँच से छह गुना अधिक थी।
- शादी के समय उम्र की तुलना में शिक्षा 1.5 गुना अधिक महत्त्वपूर्ण है।
- अन्य कारकों के अलावा कार्यकर्त्ताओं और जागरूकता अभियानों का विवाह की उम्र पर ज़्यादा प्रभाव पड़ा।
- शिक्षा प्राप्ति का प्रभाव असम और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक दिखाई दिया, जहांँ उच्च स्तर की शिक्षा वाली महिलाओं के स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रसव कराने की संभावना उन महिलाओं की तुलना में लगभग पांँच गुना अधिक थी, जिनके पास शिक्षा का अभाव था।
- हालांँकि स्वास्थ्य सुविधा तक पहुँच में दूरी और शादी की उम्र का संस्थागत प्रसव पर लगभग समान प्रभाव पड़ा।
- जहांँ तक संस्थागत प्रसव में आने वाली बाधाओं का सवाल है, लगभग 17% महिलाओं ने दूरी या परिवहन की कमी को व्यक्त किया और 16% ने लागत का हवाला दिया।
- अन्य कारणों में सुविधा का बंद (10%) होना, खराब सेवा या विश्वास के मुद्दे (6%) थे।
- एक महिला संस्थागत प्रसव करेगी या नहीं, यह निर्धारित करने में गरीबी, शादी की उम्र की तुलना में दोगुने से अधिक के लिये ज़िम्मेदार है।
- भारत में संस्थागत प्रसव:
- राष्ट्रीय परिदृश्य: पिछले दो दशकों में भारत ने संस्थागत प्रसव की संख्या में प्रगति की है।
- 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में संस्थागत प्रसव में काफी वृद्धि हुई है, जिसमें चार से पांँच महिलाओं ने संस्थानों में प्रसव कराया है (NFHS-5).
- कुल 22 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में से 14 में संस्थागत प्रसव 90% से अधिक है। (NFHS-5)।
- एनएफएचएस-4 के अनुसार, संस्थागत प्रसव वर्ष 2005-06 के 39% से बढ़कर वर्ष 2015-16 में 79% हो गया।
- इसके अलावा इसी अवधि में सार्वजनिक संस्थानों में संस्थागत जन्म 18% से बढ़कर 52% हो गया।
- 19 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में संस्थागत प्रसव में काफी वृद्धि हुई है, जिसमें चार से पांँच महिलाओं ने संस्थानों में प्रसव कराया है (NFHS-5).
- संस्थागत प्रसव बढ़ाने के लिये उठाए गए कदम:
- जननी सुरक्षा योजना: जननी सुरक्षा योजना एक 100% केंद्र प्रायोजित योजना है जिसे गर्भवती महिलाओं के बीच संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देकर मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से लागू किया जा रहा है।
- प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA): एनीमिया के मामलों का पता लगाने और उनका इलाज करने के लिये चिकित्सा अधिकारियों की मदद से हर महीने की 9 तारीख को विशेष प्रसवपूर्व जाँच (एएनसी) पर ध्यान केंद्रित करने हेतु इसे शुरू किया गया है।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (PMMVY): यह एक मातृत्व लाभ कार्यक्रम है जिसे 1 जनवरी, 2017 से देश के सभी ज़िलों में लागू किया जा रहा है।
- लक्ष्य कार्यक्रम: लक्ष्य (लेबर रूम क्वालिटी इम्प्रूवमेंट इनिशिएटिव) का उद्देश्य सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में लेबर रूम और मैटरनिटी ऑपरेशन थिएटर में देखभाल की गुणवत्ता में सुधार करना है।
- पोषण अभियान: पोषण अभियान का लक्ष्य बच्चों (0-6 वर्ष) और गर्भवती महिलाओं तथा स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति में समयबद्ध तरीके से सुधार करना है।
- राष्ट्रीय परिदृश्य: पिछले दो दशकों में भारत ने संस्थागत प्रसव की संख्या में प्रगति की है।
आगे की राह
- राज्य-विशिष्ट हस्तक्षेपों का उद्देश्य न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की संख्या में वृद्धि करना होना चाहिये बल्कि देखभाल की संबंधित गुणवत्ता में सुधार करना भी होना चाहिये।
- अपर्याप्त नैदानिक प्रशिक्षण और अपर्याप्त कुशल मानव संसाधनों ने उपलब्ध मातृत्व सेवाओं की गुणवत्ता को प्रभावित किया है जिसके परिणामस्वरूप संस्थागत प्रसव की कवरेज कम है।
- सरकार को शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में चिकित्सा कर्मचारियों, आपातकालीन चिकित्सा सेवाओं जैसे- एम्बुलेंस, टीकाकरण, मातृत्व देखभाल आदि की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करनी चाहिये।