भारतीय राजव्यवस्था
चुनाव स्थगन से संबंधित निर्वाचन आयोग की शक्तियाँ
- 13 Jul 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लियेनिर्वाचन आयोग, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम मेन्स के लियेभारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका, चुनाव के स्थगन अथवा निलंबन से संबंधित चुनाव आयोग की शक्तियाँ |
चर्चा में क्यों?
देश भर में कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के आँकड़े तेज़ी से बढ़ते जा रहे हैं, ऐसे में लगातार बढ़ती महामारी के बीच बिहार में चुनाव आयोजित करने को लेकर राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ रही है। बिहार में कई राजनीतिक दल COVID-19 महामारी के प्रकोप की समाप्ति तक राज्य चुनाव स्थगित करने की मांग कर रहे हैं।
निर्वाचन आयोग और चुनाव निलंबन
- निवार्चन आयोग (Election Commission-EC) के लिये कानून के तहत यह अनिवार्य है कि वह लोकसभा या विधानसभा के पाँच वर्ष के कार्यकाल के समाप्त होने से पूर्व छह माह के भीतर किसी भी समय चुनाव आयोजित कराए।
- निर्वाचन आयोग के लिये यह आवश्यक है कि चुनावों की तारीख इस तरह निर्धारित की जाए कि जब निवर्तमान सदन विघटन हो तो नई विधानसभा अथवा लोकसभा मौजूद हो।
- इस प्रकार बिहार के मामले में चुनाव आयोग को 29 नवंबर को निवर्तमान सदन की समाप्ति से पूर्व विधानसभा चुनाव कराना चाहिये।
- वहीं यदि विधानसभा अथवा लोकसभा का विघटन अपने निर्धारित समय से पूर्व हो जाता है तो जहाँ तक संभव हो निर्वाचन आयोग यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि विघटन के छह माह के भीतर एक नई लोकसभा अथवा विधानसभा स्थापित हो जाए।
- नियमों के अनुसार, आमतौर पर एक बार चुनावों की घोषणा के बाद वे तय कार्यक्रम के अनुसार ही आयोजित किये जाते हैं।
- हालाँकि अपवाद स्वरूप कुछ मामलों में असाधारण परिस्थितियों के मद्देनज़र इस प्रक्रिया को स्थगित किया जा सकता है अथवा इसे रोका जा सकता है।
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 153 के अनुसार, निवार्चन आयोग आवश्यकता अनुसार निर्धारित तिथि में परिवर्तन करके चुनाव आयोजित कराने की समय सीमा में विस्तार कर सकता है, हालाँकि इस तरह के विस्तार को लोकसभा या विधानसभा के सामान्य विघटन की तारीख से पूर्व होना अनिवार्य है।
- उल्लेखनीय है कि वर्ष 1991 में निर्वाचन आयोग ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 153 के इसी प्रावधान को संविधान के अनुच्छेद 324 के साथ प्रयोग करते हुए तमिलनाडु में चुनाव अभियान के दौरान राजीव गांधी की हत्या के बाद तीन सप्ताह के लिये तत्कालीन संसदीय चुनावों को स्थगित कर दिया था।
- विदित हो कि मार्च 2020 में ही COVID-19 महामारी के कारण निर्वाचन आयोग द्वारा 18 राज्यसभा सीटों के चुनाव स्थगित कर दिये गए थे।
निर्वाचन आयोग
- निर्वाचन आयोग, जिसे चुनाव आयोग के नाम से भी जाना जाता है, एक स्वायत्त संवैधानिक निकाय है जो भारत में संघ और राज्य चुनाव प्रक्रियाओं का संचालन करता है।
- यह निकाय भारत में लोकसभा, राज्यसभा, राज्य विधानसभाओं, देश में राष्ट्रपति एवं उप-राष्ट्रपति के पदों के लिये निर्वाचनों का संचालन करता है।
- संविधान के अनुसार निर्वाचन आयोग की स्थापना 25 जनवरी, 1950 को की गई थी। प्रारम्भ में, आयोग में केवल एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त थे। वर्तमान में इसमें एक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और दो निर्वाचन आयुक्त हैं।
बिहार में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 153 का प्रयोग?
- जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 153 के तहत चुनाव की समय सीमा में विस्तार करने की शक्ति का प्रयोग केवल चुनाव की अधिसूचना जारी करने के बाद ही किया जा सकता है।
- इस प्रकार यदि चुनाव आयोग बिहार विधानसभा चुनाव स्थगित करना चाहता है तो उसे भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के तहत अपनी असाधारण शक्ति का प्रयोग करना होगा।
- निर्वाचन आयोग को चुनाव आयोजित न करा पाने की अपनी असमर्थता के बारे में सरकार को अधिसूचित करना होगा, जिसके पश्चात् भारत सरकार और राष्ट्रपति इस संबंध में आगे की रणनीति निर्धारित करेंगे।
- गौरतलब है कि इस संबंध में मुख्यतः दो निर्णय लिये जा सकते हैं, पहला यह कि राज्य में मौजूदा सदन की समाप्ति पर राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है और दूसरा विकल्प यह है कि राष्ट्रपति राज्य के मौजूदा मुख्यमंत्री को विघटन के बाद भी कुछ समय तक कार्य जारी रखने की अनुमति दे सकते हैं।
चुनाव आयोग पर निर्भर है चुनाव का स्थगन
- भारतीय संविधान अथवा किसी अन्य कानून में ऐसे कोई भी विशिष्ट प्रावधान नहीं है, जो उन परिस्थितियों को निर्दिष्ट करता हो, जिनके तहत चुनाव स्थगित किये जा सकते हैं।
- हालाँकि कानून विशेषज्ञ मानते हैं कि ‘अशांति और अव्यवस्था, भूकंप और बाढ़ जैसे प्राकृतिक आपदाओं अथवा अन्य किसी ऐसे परिस्थिति में, निर्वाचन आयोग चुनाव को स्थगित करने का निर्णय ले सकता है, जो कि आयोग के नियंत्रण में नहीं हैं।
- आमतौर पर निर्वाचन आयोग केंद्र सरकार तथा राज्य सरकारों से सलाह लेने के बाद और तत्कालीन असाधारण परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही चुनाव की समय सीमा में विस्तार संबंधी महत्त्वपूर्ण निर्णय लेता है।