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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

यूरोपीय यूनियन रिकवरी डील

  • 29 Jul 2020
  • 11 min read

प्रीलिम्स के लिये:

यूरोपीय यूनियन के बारे में 

मेन्स के लिये:

यूरोपीय यूनियन रिकवरी डील का यूरोप एवं विश्व के अन्य देशों के आर्थिक हितों पर प्रभाव 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में 27-सदस्यीय यूरोपीय संघ द्वारा एक लंबी परिचर्चा के बाद सदस्य देशों की अर्थव्यवस्था पर COVID-19 के नकारात्मक प्रभावों का सामना करने के लिये एक ऐतिहासिक समझौते पर सहमति व्यक्त की गई है।

प्रमुख बिंदु:

  • यूरोपीय यूनियन के सदस्य देशों में COVID-19 महामारी के कारण लगभग 130,000 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई है तथा महामारी के प्रभाव के कारण यूरोपीय यूनियन की जीडीपी वृद्धि दर वर्ष 2020 में 8 प्रतिशत पर संकुचित हो गई है।
  • महामारी के कारण विशेषकर इटली, स्पेन और पुर्तगाल जैसे कई देश में निवेशकों की वित्तीय स्थिति पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।
  • इस समझौते के तीन  मुख्य प्रावधान हैं-
    • अगले सात वर्षों में यूरोपीय संघ के लिये यूरो 1.1 ट्रिलियन का बजट।
    • COVID-19 से सर्वाधिक प्रभावित देशों के लिये 360 बिलियन यूरो के कम ब्याज वाले ऋण का वितरण।
    • सबसे अधिक प्रभावित अर्थव्यवस्थाओं को 390 बिलियन यूरो ऋण का वितरण। 

रिकवरी फंड की विशेषताएँ:

हॉंलाकि इस राहत पैकेज को लागू करना अभी दूर की बात लग रहा है फिर भी इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

  • इसका आकार जो लगभग 2 ट्रिलियन डॉलर है या 150 लाख करोड़ रुपये है जो भारत की वार्षिक जीडीपी का 75 प्रतिशत है।
  • देशों  से व्यक्तिगत स्तर पर धन जुटाने के बजाय इस समय यूरोपीय संघ अनुदान और ऋण के लिये (कुल 750 बिलियन यूरो) बाज़ारों से पैसा उधार लेगा।
    • यूरोपीय संघ की नई पीढ़ी के लिये इस समझौते को आकार एवं संभावनाएँ देने के कारण कई विश्लेषकों ने इस समझौते की तुलना ‘हैमिल्टन’ से की है। 
    • ‘अलेक्जेंडर हैमिल्टन’अमेरिका के पहले ट्रेज़री सचिव थे तथा जिनका चेहरा 10 डॉलर बिल पर अंकित है। 
    • इन्होनें उन सभी राज्यों से उन ऋणों को पुन प्राप्त/अवशोषित किया जो राज्यों द्वारा क्रांति के दौरान संघीय सरकार से लिये गए थे। 
  • यूरोपीय संघ फंड राशि के भुगतान के लिये इस क्षेत्र में आंशिक रूप से कर लगाने में सक्षम होगा।
    • जिससे अगले सात वर्षों के लिये बजट विवरण के साथ, सदस्य राज्यों के बीच राजकोषीय समन्वय स्थापित किया जा सकेगा।
  • समग्र राहत पैकेज की लगभग एक तिहाई अर्थात 500 बिलियन यूरो राशि को जलवायु परिवर्तन का सामना करने के लिये निर्धारित किया गया है। 
    • इसका उपयोग उत्सर्जन-मुक्त कारों का निर्माण करने तथा ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देने वाली तकनीकी के निर्माण में किया जाना है।  

समझौते का निहितार्थ:

  • यूरोपीय संघ के सकल घरेलू उत्पाद के संदर्भ में, इस समझौते का आकार लगभग 5 प्रतिशत है। 
  • अभी यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था के और अधिक अनुबंधित/संकुचित होने की संभावना बनी हुई है ऐसी स्थिति में यह समझौता कमज़ोर क्षेत्रीय अर्थव्यवस्थाओं को पुनर्जीवित करने के लिये एक बेहतर कदम है।
  • समझौते को अनुसमर्थन मिलने के बाद इसके कार्यान्वयन में भी कठिनाई आ सकती है क्योंकि हंगरी और पोलैंड जैसे देशों द्वारा सस्ते ऋण और अनुदान न प्राप्त होने के कारण इस सुधार एजेंडे का विरोध किया जा सकता हैं।हालाँकि इस सौदे का राजनीतिक महत्व अधिक नहीं दिख रहा है।

क्रियान्वयन में समस्या:

वर्ष 2008-09 के वैश्विक वित्तीय संकट से निपटने के लिये यूरोपीय संघ द्वारा अर्थव्यवस्था की स्थिति को बेहतर करने के प्रयासों के दौरान यूरोपीय संघ की मज़बूत अर्थव्यवस्था (जर्मनी) एवं कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं (ग्रीस) के मध्य मतभेद और अधिक बढ़ गया है ।

  • इस दौरान कमज़ोर अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों को अपने व्यय में कटौती करने तथा समय पर ऋण का भुगतान करने के लिये आवश्यक वस्तुओ पर करों का भार बढ़ाने के लिये कहा गया जिसके परिणाम स्वरूप कई देशों में राजनैतिक अस्थिरता का माहौल उत्पन्न हो गया।
  • वर्ष 2016 में ब्रिटेन का यूरोपीय संघ से अलग होने का निर्णय इसी अस्थिरता का परिणाम है।
  • यह समझौता  काफी हद तक फ्रेंको-जर्मन के बीच सहमति पर भी निर्भर है क्योंकि दोनों देशों के बीच एक दशक से सहयोग का अभाव बना हुआ है।
    • जहाँ फ्रांस द्वारा सभी यूरोपीय संघ के देशों में लोकलुभावनवाद (Populism) को कम करने के लिये वित्त राशि को बढ़ाने पर ज़ोर दिया गया वहीं जर्मन द्वारा उन उपायों का विरोध किया गया जिन्हें ‘हेडआउट्स’ अर्थात शासकीय सूचनाओं के रूप में देखा जा रहा है।
    • जर्मनी के साथ-साथ ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, नीदरलैंड और स्वीडन ने भी एक बड़ी राशि उधार देने का विरोध किया क्योंकि इनका तर्क है कि इसके चलते करदाताओं को एक लंबे समय तक राशि का भुगतान करना होगा।
  • वर्तमान मौजूदा समझौते के तहत वर्ष 2023 तक ऋण दिया जाना है, जिसका वापस भुगतान वर्ष 2058 तक किया जाएगा।
  • दूसरी तरफ इटली और स्पेन जैसी अर्थव्यस्थाएँ हैं जो महामारी के कारण गंभीर रूप से प्रभावित हैं, इनके लिये कम रिकवरी वाले पैकेज के संदर्भ में आग्रह किया जा रहा है।

वर्ष 2008-09 के यूरोपीय संघ के आर्थिक उपायों एवं वर्तमान समझौते में अंतर:

  • वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट के बाद कई यूरोपीय संघ के देशों द्वारा महसूस किया गया कि राष्ट्रीय ऋण के उच्च स्तर एवं निम्न रेटिंग के कारण वे सस्ती ब्याज दरों पर बाज़ारों से ऋण नहीं जुटा पा रहे हैं।
    • इस स्थिति से निपटने के लिये यूरोपीय संघ द्वारा एक ‘यूरोपीय वित्तीय स्थिरता सुविधा’ (European Financial Stability Facility- EFSF) का निर्माण किया गया जिसने निवेशकों (जिनके निवेश के लिये अधिक सुरक्षा मिली) और यूरोपीय संघ के बड़े देशों (जिन्हें कम दरों पर ऋण मिला था) के बीच मध्यस्थ के रूप में काम किया।
    • ‘यूरोपीय वित्तीय स्थिरता सुविधा’ तथा यूरोपीय स्थिरता तंत्र, द्वारा वर्ष 2013 तक मिलकर सफलतापूर्वक 255 बिलियन यूरो ऋण का वितरण किया गया।
  • वर्तमान ऋण वितरण संरचना काफी भिन्न है क्योंकि इसके द्वारा 360 बिलियन यूरो के अलावा लगभग 400 बिलियन यूरो का अनुदान भी आवंटित किया जाना है। 
    • इसके अलावा, ऋण वितरण को कठोर राजकोषीय बाध्यताओं के साथ नहीं जोड़ा गया है बल्कि इसके लिये कुछ बुनियादी क़ानूनी नियम का पालन करने के लिये पूछा जा सकता है।

भारत के COVID-19 राहत पैकेज से तुलना:

  • भारत के COVID-19 राहत पैकेज की मुख्य कमी अपर्याप्त सरकारी राजकोषीय वितरण है जो भारत के सकल घरलू उत्पाद (10%) का केवल 1% ही है।
    • भारत सरकार को अधिक खर्च करने के लिये, अधिक उधार लेना होगा हालांकि अधिक खर्च के बिना, अर्थव्यवस्था को संभवतः लंबे समय तक संघर्ष करना होगा।
  • यूरोपीय संघ के राहत पैकेज में प्रमुख घटक 390 बिलियन यूरो की अनुदान राशि है।
  • सस्ते ऋण और ऋण गारंटी अर्थव्यवस्था के लिये उपयोगी होते हैं लेकिन गिरती अर्थव्यवस्था तथा  MSME क्षेत्र में तीव्र आर्थिक तनाव के साथ, अनुदान और मजदूरी पर मिलने वाली सब्सिडी अधिक कारगर साबित हो सकती है।

निष्कर्ष: 

यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था को बचाने से अधिक, यह समझौता यूरोपीय संघ की राजनीतिक विचार को सुरक्षित करता है ऐसा इसलिये है क्योंकि विभिन्न देशों के बीच महत्वपूर्ण अंतर एवं मतभेदों  के बावजूद यह समझौता संपन्न हुआ है।

यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्था में यह स्थिति वैश्विक महामारी के कारण उत्पन्न हुई है फिर भी इन समझौते में उन सभी बातों एवं उपायों का भी ध्यान रखा गया है जो  यूरोपीय संघ द्वारा वर्ष 2008 के वैश्विक आर्थिक संकट से निपटने के लिये अपनायए गए थे। समझौते में पर्यावरणीय विकास को महत्त्व दिया गया है जो  सतत् विकास को प्राप्त करने में सहायक है।

हाँलाकि यह कह पाना अभी जल्दबाज़ी होगी कि यह समझौता अपने उद्देश्यों में कितना सफल होगा लेकिन यह कहा जा सकता है कि यह यूरोपीय संघ के देशों की पटरी से उतरी अर्थव्यवस्था को एक गति प्रदान करने में सहायक ज़रूर साबित होगा।

स्रोत: द इंडियन एक्सप्रेस

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