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डेली न्यूज़

भारतीय राजव्यवस्था

निष्क्रिय राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद्द करने की मांग

  • 28 Sep 2021
  • 8 min read

प्रिलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग, प्रवासी भारतीय 

मेन्स के लिये:

जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951,भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष चुनौतियाँ  

चर्चा में क्यों?   

हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India- ECI) ने पंजीकृत राजनीतिक दलों की अद्यतन सूची को अधिसूचित किया है, पंजीकृत राजनीतिक दल चुनाव नहीं लड़ने वाले दलों के पंजीकरण को रद्द करने की मांग कर रहे हैं। चुनाव आयोग द्वारा आयकर छूट कानून के दुरुपयोग पर भी चिंता जताई गई है।

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प्रमुख बिंदु 

  • देश में दो हज़ार से अधिक पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टियांँ हैं। चुनाव आयोग ने आयकर छूट कानून का दुरुपयोग करने वाली ऐसी निष्क्रिय पार्टियों का रजिस्ट्रेशन रद्द करने की शक्ति की मांग की है।
  • चुनाव आयोग डिजिटलीकरण, जाली मतदान को रोकने, प्रवासी भारतीयों (Non-Resident Indians- NRIs), यहांँ तक ​​कि देश के प्रवासी श्रमिकों के लिये भी दूरस्थ मतदान को सक्षम करने हेतु चुनावी सुधारों की एक विस्तृत शृंखला पर ज़ोर देता रहा है।
  • पंजीकरण रद्द करने की शक्ति:
    • चुनाव आयोग को संविधान का उल्लंघन करने या पंजीकरण के समय पार्टियों द्वारा नियमों का उल्लंघन करने के आधार पर पार्टियों के पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार नहीं है।
    • ECI के पास जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, (RPA) 1951 के तहत पार्टियों को पंजीकृत करने की शक्ति है, लेकिन निष्क्रिय पार्टियों का पंजीकरण रद्द करने की शक्ति नहीं है।
    • किसी पार्टी का पंजीकरण केवल तब रद्द किया जा सकता है जब उसने धोखाधड़ी से पंजीकरण किया हो, अगर इसे केंद्र सरकार द्वारा अवैध घोषित किया जाता है या कोई पार्टी अपने आंतरिक संविधान में संशोधन करती है और चुनाव आयोग को सूचित करती है कि वह अब भारतीय संविधान का पालन नहीं कर सकती है।
  • संबंधित चिंता:
    • यदि कोई गैर-मान्यता प्राप्त पार्टी मनी लॉन्ड्रिंग में शामिल हो जाती है तो वह आयकर से छूट प्राप्त कर सकती है। 
      • चुनावी मुद्दों पर निगरानी रखने वाले गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों की संख्या में दो गुना वृद्धि हुई है।
    • आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 13A में राजनीतिक दलों को उनकी गृह संपत्ति से प्राप्त आय, अन्य स्रोतों से आय, पूंजीगत लाभ और किसी भी व्यक्ति से प्राप्त स्वैच्छिक योगदान पर कुछ शर्तों के अधीन 100% छूट दी गई है।
  • ECI के लिये अन्य चुनौतियाँ:
    • शक्तियों का अपरिभाषित दायरा:  
      • आदर्श आचार संहिता (MCC) और चुनावों से संबंधित अन्य निर्णयों को लागू करने में ईसीआई को उपलब्ध शक्तियों की सीमा और प्रकृति के बारे में काफी हद तक भ्रम की स्थिति है।
      • संहिता यह स्पष्ट नहीं करती है कि चुनाव आयोग क्या कर सकता है; इसमें केवल उम्मीदवारों, राजनीतिक दलों और सरकारों के लिये दिशा-निर्देश हैं।
    •  MCC का कोई कानूनी समर्थन नहीं:
      • MCC को राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति के आधार पर तैयार किया गया है, इसे कोई कानूनी समर्थन नहीं दिया गया है।
      • हालाँकि इसका कोई वैधानिक मूल्य नहीं है तथा इसे केवल चुनाव आयोग के नैतिक और संवैधानिक अधिकार द्वारा लागू किया जाता है।
    • अधिकारियों का स्थानांतरण:
      • प्रमुख चिंताओं में से एक आयोग के आदेश द्वारा राज्य सरकारों के तहत काम कर रहे वरिष्ठ अधिकारियों का अचानक स्थानांतरण करना है।
      • अधिकारियों का स्थानांतरण संविधान के अनुच्छेद 309 के तहत बनाए गए नियमों द्वारा शासित होता है जिसे अनुच्छेद 324 द्वारा प्रदत्त शक्ति के कथित अभ्यास के तहत ECI  द्वारा पृथक नहीं किया जा सकता है।
    • कानूनी विवाद:
      • MCC के अनुसार, मंत्री किसी भी रूप में किसी भी वित्तीय अनुदान की घोषणा नहीं कर सकते हैं, सड़कों के निर्माण, पेयजल सुविधाओं का प्रावधान आदि का कोई वादा नहीं कर सकते हैं या सरकार में कोई तदर्थ नियुक्तियाँ नहीं कर सकते हैं।
      • हालाँकि आरपीए अधिनियम,1951 की धारा 123(2)(b) में प्रावधान है कि सार्वजनिक नीति की घोषणा या कानूनी अधिकार के प्रयोग को चुनावी अधिकार के स्वतंत्र प्रयोग में हस्तक्षेप नहीं माना जाएगा।
    • प्रवर्तनीयता का अभाव:
      • चुनाव आयोग के पास चुनावी कदाचार करने वाले उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करने की शक्ति नहीं है। आयोग केवल मामला पंजीकृत करने का निर्देश दे सकता है।
        • 2019 के आम चुनाव में ECI ने सर्वोच्च न्यायालय में स्वीकार किया कि वह "टूथलेस"(Toothless) था और चुनाव अभियान में भड़काऊ या विभाजनकारी भाषणों से निपटने के लिये उसके पास पर्याप्त शक्तियाँ नहीं थीं।

आगे की राह

  • देश में निर्वाचित विधायी निकायों की प्रामाणिकता सुनिश्चित करने में ECI द्वारा निभाई गई भूमिका ने भारतीय नागरिकों के मन में उसके प्रति उच्च स्तर का विश्वास बनाया है।
  • हालाँकि कानूनी रूप से दुर्गम क्षेत्रों को परिभाषित किया जाना चाहिये, ताकि चुनाव आयोग स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के माध्यम से लोकतंत्र के उचित कामकाज को सुनिश्चित कर सके।
  • अब समय आ गया है कि चुनाव आयोग की स्वतंत्रता पर केवल बयानबाज़ी के बजाय संवैधानिक निकाय की सुरक्षा के लिये कुछ महत्त्वपूर्ण परिवर्तन किये जाएँ।
  • इसके अतिरिक्त आयोग को अपने दृष्टिकोण को फिर से स्थापित करना होगा ताकि लोकतंत्र के मूल सिद्धांत उसकी नींव से डगमगाएँ नहीं।

स्रोत: द हिंदू

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