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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

ब्याज माफी की मांग

  • 10 Dec 2020
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने ऋण स्थगन अवधि के दौरान ब्याज माफी की मांग करने वाली याचिकाओं की सुनवाई की है।

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने मार्च माह में कोरोना वायरस महामारी की चुनौती के मद्देनज़र बैंकों द्वारा दिये गए ऋण के भुगतान पर 90 दिनों (1 मार्च से 31 मई तक) के ऋण स्थगन की घोषणा की थी, इस अवधि को बाद में 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया था। 
  • इस निर्णय का प्राथमिक उद्देश्य कोविड-19 महामारी की अवधि के दौरान उधारकर्त्ताओं को ऋण और मासिक किस्त (EMI) के भुगतान में राहत प्रदान करना था।

प्रमुख बिंदु

केंद्र सरकार का पक्ष

  • अत्यधिक लागत: अनुमान के मुताबिक, ऋण स्थगन अवधि के दौरान उधारकर्त्ताओं के ऋणों पर ब्याज को पूरी तरह से माफ किये जाने से भारतीय बैंकों को तकरीबन 6 लाख करोड़ रुपए के नुकसान का सामना करना पड़ेगा।
  • बैंकों पर संभावित प्रभाव: यदि बैंकों को ऋण माफी का यह बोझ उठाना पड़ता है, तो इससे बैंकों के नेट वर्थ पर भारी प्रभाव पड़ेगा और उन्हें नुकसान का सामना करना पड़ सकता है, जिससे आने वाले समय में उनके अस्तित्त्व पर भी खतरा उत्पन्न हो सकता है।
  • बैंकों की जमा v/s ऋण: यद्यपि जमाकर्त्ताओं को ब्याज का भुगतान करना बैंकों की प्राथमिक गतिविधि नहीं है, किंतु यह बैंकों की बड़ी ज़िम्मेदारी है और इससे समझौता नहीं किया जा सकता है, क्योंकि भारत में ऐसे कई छोटे जमाकर्त्ता हैं, जिनके लिये बैंकों द्वारा दिया जाने वाला ब्याज काफी महत्त्वपूर्ण होता है।
  • वित्तीय संसाधनों का उपयोग: कोरोना वायरस (COVID-19) महामारी के कारण उत्पन्न हुई अनिश्चितता और उसके आर्थिक प्रभावों से निपटने के लिये उपलब्ध वित्तीय संसाधनों का तर्कसंगत उपयोग किया जाना आवश्यक है।
    • केंद्र सरकार द्वारा लघु और मध्यम आकार के व्यवसायों के लिये कई सेक्टर-विशिष्ट राहत उपायों को भी अपनाया गया है और भविष्य में अर्थव्यवस्था को मंदी की चपेट से बचाने के लिये ऐसे ही उपायों की आवश्यकता है, जिसके लिये वित्तीय संसाधन काफी महत्त्वपूर्ण होंगे।

सरकार द्वारा किये गए राहत उपाय

  • ऊर्जा क्षेत्र: सरकार ने बिजली वितरण कंपनियों (डिस्कॉम) को तरलता प्रदान करने के लिये 90 हज़ार करोड़ रुपए के राहत पैकेज की घोषणा की थी। इससे बिजली वितरण कंपनियाँ (डिस्कॉम) बिजली उत्पादक कंपनियाँ अपने बकाए का भुगतान करने में सक्षम हो जाएंगी।
  • रियल एस्टेट सेक्टर: कोरोना वायरस महामारी को एक अप्रत्याशित घटना मानते हुए रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरणों (RERAs) के तहत परियोजनाओं के पंजीकरण और समापन की तारीखों के विस्तार की अनुमति देते हुए एक एडवाइज़री जारी की गई थी।
    • किसी समझौते के दृष्टिकोण से देखें तो समझौता का अप्रत्याशित घटना वाला खंड ऐसी किसी घटना की स्थिति में एक पक्ष को समझौते के तहत अपने दायित्त्वों को पूरा न करने की छूट प्रदान करता है।
  • सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम (MSME): कोरोना वायरस महामारी तथा देशव्यापी लॉकडाउन के कारण उत्पन्न संकट को कम करने के लिये सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को क्रेडिट प्रदान करने हेतु ‘आत्मनिर्भर भारत अभियान’ पैकेज के एक हिस्से के रूप में आपातकालीन क्रेडिट लाइन गारंटी योजना (ECLGS) शुरू की गई है।
  • छोटे उधारकर्त्ता: केंद्र सरकार के निर्णय के मुताबिक, छह माह की ऋण अधिस्थगन अवधि के दौरान चक्रवृद्धि ब्याज पर राहत केवल उन उधारकर्त्ताओं को मिलेगी, जिन्होंने 2 करोड़ रुपए तक का ऋण लिया था।
    • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा 1500 करोड़ रुपए और उससे अधिक का ऋण लेने वाले लोगों को ‘बड़े उधारकर्त्ताओं’ के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
  • बड़े उधारकर्त्ता: रिज़र्व बैंक द्वारा गठित के.वी. कामथ समिति ने अपनी रिपोर्ट में कोरोना वायरस महामारी से प्रभावित कुल 26 क्षेत्रों के ऋण पुनर्गठन के लिये वित्तीय मापदंडों की सिफारिश की है।
  • अन्य उपाय

स्रोत: द हिंदू

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