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शासन व्यवस्था

भारत में अधिक नौकरियों का सृजन

  • 18 Jun 2018
  • 10 min read

संदर्भ

नई प्रौद्योगिकियाँ विनिर्माण प्रक्रियाओं के आकार को बदल सकती हैं और प्रतिस्पर्द्धी लाभ के ऐतिहासिक स्रोतों को बाधित कर सकती हैं। ग्राहकों की प्राथमिकताओं को भी बदल सकती हैं| व्यापार बाधाएँ बढ़ा सकती हैं| हालाँकि, जब सभी देशों में सरकारों पर अपने नागरिकों के लिये नौकरियाँ सुनिश्चित करने के लिये दबाव बनाया जा रहा है तो ऐसे में उन्हें कुछ क्षेत्रों की रक्षा करनी होगी, जैसा कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कर रहे हैं और भविष्य में नौकरियाँ सृजित करने वाले क्षेत्रों को बढ़ावा दे रहे हैं| चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा भी देश में रोज़गार सृजन पर ध्यान दिया जा रहा है।

भारत में रोज़गार सृजन की आवश्यकता 

  • भारत सरकार हेतु  'जनसांख्यिकीय आपदा' को रोकने के लिये अधिक रोज़गार सृजन  एक अस्तित्ववादी आवश्यकता है। 'श्रम गहन' रोज़गार क्षेत्रों को बढ़ावा देना भारत सरकार के लिये अनिवार्य हो गया है।
  • ऐसी चेतावनी दी जा रही है कि डिजिटल प्रौद्योगिकियों और स्वचालन के तेज़ी से विकास से कम श्रम लागत वाले देशों के प्रतिस्पर्द्धी लाभों के समाप्त होने का खतरा है।
  • हालाँकि, औद्योगिक परिवर्तन रेखीय (linear) नहीं होगा, यह गतिशील होगा। श्रम गहन उद्योग गायब नहीं होंगे, वास्तव में  वे बढ़ सकते हैं।
  • इसके लिये जूता उद्योग का उदाहरण लिया जा सकता है| चीन में नाइक, एडिडास और समृद्ध देशों के अन्य ब्राण्डों के जूतों की आपूर्ति के लिये लाखों नौकरियाँ सृजित की गई हैं|
  • जर्मनी में 3-डी प्रिंटर की रिपोर्ट व एडिडास की स्वचालित कारखानों की रिपोर्ट से जानकारी मिलती है कि अमेरिकी बाज़ार में जूता निर्माण पुनर्जीवित हो रहा है, जिससे भारत और अन्य विकासशील देशों में जूता निर्माण क्षेत्र में भविष्य के लिये चिंता की स्थिति उत्पन्न हो रही है।
  • हालाँकि, द इकोनॉमिस्ट में प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट से पता चलता है कि जूता उद्योग को कैसे बदला जा रहा है।
  • 3-डी प्रिंटिंग का लाभ यह है कि इससे स्थानीय रूप से भी उत्पादों को व्यवहार्य बनाया जा सकता है। हालाँकि यह सस्ता नहीं है।
  • ईसीसीओ, डेनिश कंपनी, जूते के लिये विशिष्ट रूप से निर्मित इंसोल का उत्पादन करने के लिये अपने स्टोर में 3-डी तकनीक का प्रयोग कर रही है। इससे ग्राहकों को $ 140 का अतिरिक्त भुगतान करना होगा।
  • जूते, कपड़े, कालीन आदि उत्पादों का विशिष्ट रूप से निर्माण उच्च आय को  बढ़ाता है।
  • लंदन जूता स्टोर लॉब, $ 5,500 मूल्य के विशिष्ट रूप से निर्मित जूते बेचता है।
  • नई प्रौद्योगिकियाँ अमीर देशों के उपभोक्ताओं की ज़रूरतों को अपने देशों के भीतर किये गए उत्पादन से पूरा करने में सक्षम बनाती हैं।
  • कम आय स्तर वाले भारतीय किस प्रकार के जूते चाहते हैं? और क्या विनिर्माण प्रौद्योगिकियाँ  और उद्यमों के आकार (बड़े पैमाने पर कारखानों, या छोटे उद्यमों के क्लस्टर) इस बढ़ती मांग को पूरा करने के लिये बेहतर रूप से सुसज्जित होंगे?
  • जब भविष्य के उद्योगों का अनुमान लगाना कठिन हो रहा हो  और जब विनिर्माण एवं सेवा क्षेत्रों के बीच सीमाएँ धुँधली हो गई हों, तो ऐसे में यह चयन नहीं किया जा सकता है  कि किस औद्योगिक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र को बढ़ावा दिया जाए।
  • फिर भी सरकारों को आर्थिक गतिविधियों वाले क्षेत्रों का समर्थन करने के लिये आर्थिक नीतियों पर ध्यान केंद्रित करने को मजबूर किया जाता है जो उनके देशों में सबसे अधिक रोज़गार पैदा करने की संभावना रखते हैं।

डोमेस्टिक ड्राइव

  • एक अरब से अधिक जनसंख्या वाले एक विकासशील देश में  बढ़ती घरेलू मांग वाले बाज़ारों को बढ़ावा दिया जाना चाहिये। हालाँकि, यह एक चिकन और अंडे की जैसी स्थिति है। यदि नौकरियाँ और आय तेज़ी से नहीं बढ़ती है, तो मांग में वृद्धि नहीं हो सकती है।
  • उत्पादन की प्रक्रिया में अधिक से अधिक भारतीयों को शामिल करना भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण इंजन साबित होगा।
  • इसलिये उन क्षेत्रों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की ज़रुरत है जिनमें घरेलू मांग अधिक हो।
  • यह ध्यान देने योग्य है कि ग्रामीण भारत की मांग ने उन कंपनियों के राजस्व को बढ़ावा दिया है जिन्होंने इस पर ध्यान केंद्रित किया है, भले ही समग्र आर्थिक विकास धीमा ही क्यों न हो गया हो।
  • चूँकि निर्यात की मांग भारत के आर्थिक विकास के लिये एक टर्बो-चार्जर हो सकती है, अतः विकास का मुख्य इंजन घरेलू मांग होनी चाहिये।
  • स्थानीय मांगों को पूरा करने के लिये उत्पादन प्रणाली, व्यावसायिक मॉडल तथा  नई प्रौद्योगिकियों का लाभ लिया जाना चाहिये।
  • सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि उन्हें नियोजित करने के लिये बड़ी संख्या में लोगों की उपलब्धता का भी लाभ उठाना चाहिये।
  • अधिक लोगों को रोज़गार नहीं देने से आर्थिक विकास धीमा होगा और यहाँ तक कि ‘जनसांख्यिकीय आपदा’ की स्थिति भी उत्पन्न हो सकती है।
  • उपलब्ध लोगों का बड़ा पूल घरेलू मांग और निर्यात दोनों के लिये भारत में उत्पादित वस्तुएँ उद्यमों के लिये टिकाऊ प्रतिस्पर्द्धी लाभ का स्रोत हो सकती हैं, बशर्ते उनकी उत्पादन प्रणालियों का लाभ उठाने के लिये उन्हें नवीन रूप से डिज़ाइन किया गया हो।
  • इटली, जर्मनी, ताइवान, चीन, अमेरिका और अन्य देशों में भी सफल औद्योगिक विकास के अध्ययन से पता चलता है कि यहाँ उद्यमों के समूह के साथ  कई छोटे समूह  भी एक-दूसरे का समर्थन करते हैं, एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्द्धा करते हैं तथा  स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करते हैं|
  • क्लस्टर प्रबंधन संघ औपचारिक अर्थव्यवस्था के साथ छोटे और अनौपचारिक  उद्यमों के लिये एक औपचारिक इंटरफेस प्रदान कर सकते हैं।

श्रम गहन समूह 

  • बड़े, पूंजी गहन कारखानों के आधार पर औद्योगिक विकास का एक मॉडल अब व्यवहार्य नहीं है।
  • निर्यात संबंधी मांगों को पूरा करने के लिये तट (और कुछ अंतर्देशीय) के साथ उद्यमों के बड़े समूहों का खाका तैयार करने की रणनीति, जो चीन की वृद्धि को प्रेरित करती है, केवल भारत के विकास के लिये एक पूरक रणनीति हो सकती है। तकनीक बदल रही है। व्यापार बाधाएँ बढ़ रही हैं।
  • भारत के विकास का मुख्य इंजन उद्यमों का समूह होना चाहिये जिसे देश भर में विस्तृत होना चाहिये, साथ ही उनमें अधिक से अधिक नौकरियाँ सृजित कर बढ़ती घरेलू मांग को प्रोत्साहित करने की क्षमता होनी चाहिये।
  • श्रम-केंद्रित समूह निर्यात बाज़ारों में भी नई प्रौद्योगिकियों के साथ अनुकूलित उत्पादों की मांग की आपूर्ति करके प्रतिस्पर्द्धा कर सकता है, जैसे-इतालवी जूता क्लस्टर और कुछ भारतीय क्लस्टर भी हैं जैसे कि राजस्थान में कालीन निर्माता।

निष्कर्ष 

  • संक्षेप में  भारत की औद्योगिक नीति का ध्यान रोज़गार सृजन पर अधिक होना चाहिये| इसे उन क्षेत्रों पर ध्यान देना चाहिये जिनमें घरेलू मांग बढ़ रही हो और वह उद्यमों के अच्छी तरह से प्रबंधित समूहों के विकास का समर्थन करता हो।
  • उद्यमियों को भारत में बढ़ते बाज़ार,  साथ ही संभावित श्रमिकों के बड़े पूल का लाभ उठाने के लिये अभिनव उत्पादन विधियों और व्यावसायिक मॉडल को विकसित करना चाहिये।
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