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शासन व्यवस्था

नागरिकता संशोधन विधेयक पर विवाद

  • 07 Oct 2019
  • 7 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्रीय गृह मंत्री द्वारा नागरिकता (संशोधन) विधेयक को एक बार पुन: सदन में पेश करने की बात कही गई है। इससे नागरिकता के मुद्दे पर बहस फिर से तेज़ हो गई है।

पृष्ठभूमि

  • जनवरी 2019 में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2016 लोकसभा द्वारा पारित किया गया था, लेकिन राज्यसभा में इसे पेश नहीं किया गया था।
  • लोकसभा भंग होने के कारण यह विधेयक व्यपगत हो गया था। नई लोकसभा के गठन के बाद सरकार ने इसे पुन: सदन में प्रस्तुत करने का निर्णय लिया है।
  • इस विधेयक में नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन प्रस्तावित है।

क्या है विधेयक के प्रावधान?

  • विधेयक में कहा गया है कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से बिना वैध दस्तावेज़ो के भारत में प्रवेश करने के बावजूद अल्पसंख्यक समुदायों के लोगों को अवैध नहीं माना जाएगा और इन्हें भारत की नागरिकता दी जाएगी।
  • इन अल्पसंख्यक समुदायों में छह गैर-मुस्लिम धर्मों अर्थात् हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई पंथ के अनुयायियों को शामिल किया गया है।
  • इन धर्मों के अवैध प्रवासियों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने से उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत निर्वासन का सामना नहीं करना पड़ेगा।
  • 1955 का अधिनियम कुछ शर्तों (Qualification) को पूरा करने वाले किसी भी व्यक्ति को देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है।
  • इसके लिये अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ती है।
  • विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 6 वर्ष करने का प्रावधान करता है।
  • विधेयक नागरिकता अधिनियम या किसी भी अन्य कानूनों के उल्लंघन के मामले में सरकार को भारत के विदेशी नागरिकता (Overseas Citizenship of India-OCI) कार्डधारकों के पंजीकरण को रद्द करने का भी प्रावधान करता है।

विधेयक के पक्ष में तर्क

  • सरकार का कहना है कि इन प्रवासियों ने ‘भेदभाव और धार्मिक उत्पीड़न’ का सामना किया है।
  • प्रस्तावित संशोधन देश की पश्चिमी सीमाओं से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में आए उत्पीड़ित प्रवासियों को राहत प्रदान करेगा।
  • इन छह अल्पसंख्यक समुदायों सहित भारतीय मूल के कई लोग नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता पाने में असफल तो रहते ही हैं और भारतीय मूल के समर्थन में साक्ष्य देने में भी असमर्थ रहते हैं।
  • इसलिये उन्हें देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिये आवेदन करना पड़ता है।
  • देशीयकरण की लंबी प्रक्रिया से इन तीन देशों के छह अल्पसंख्यक समुदायों को अवैध प्रवासी माना जाता है और भारतीय नागरिकों को मिलने वाले लाभों से इन्हें वंचित रहना पड़ता है।

विधेयक के विपक्ष में तर्क

  • आलोचकों का कहना है कि विधेयक संविधान की मूल संरचना का उल्लंघन करता है।
  • विधेयक नागरिकता देने के लिये अवैध प्रवासियों के बीच धार्मिक आधार पर विभेद करता है। धर्म के आधार पर भेदभाव संविधान के अनुच्छेद-14 के तहत समानता के मौलिक अधिकार की संवैधानिक गारंटी के विरुद्ध है।
  • अनुच्छेद-14 के तहत सुरक्षा नागरिकों और विदेशियों दोनों पर समान रूप से लागू होती है।
  • प्रस्तावित विधेयक असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) को बाधित करेगा, जो किसी भी धर्म के अवैध प्रवासी को एक पूर्व-निर्धारित समय-सीमा के आधार पर परिभाषित करता है।
  • इस नागरिकता विधेयक को 1985 के असम समझौते से पीछे हटने के एक कदम के रूप में भी देखा जा रहा है।
  • समझौते में 24 मार्च, 1971 के बाद बिना वैध दस्तावेज़ो के असम में आने वाले प्रत्येक व्यक्ति को विदशी नागरिक माना गया है। इस मामले में यह धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
  • अकेले असम में हाल ही में संपन्न NRC अभ्यास ने अंतिम सूची से 3.29 करोड़ आवेदकों में से 19 लाख लोगों को बाहर कर दिया है।
  • OCI कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने का प्रावधान केंद्र सरकार के विवेकाधिकार का दायरा विस्तृत करता है। क्योंकि कानून के उल्लंघन में ह्त्या जैसे गंभीर अपराध के साथ यातायात नियमों का मामूली उल्लंघन भी शामिल है।

उच्चतम न्यायालय की क्या राय है?

  • उच्चतम न्यायालय में दायर एक याचिका में न्यायालय से पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) संशोधन नियम, 2015, विदेशी (संशोधन) आदेश, 2015 और नागरिकता अधिनियम के तहत 26 दिसंबर, 2016 को गृह मंत्रालय द्वारा जारी आदेश के माध्यम से धार्मिक उत्पीड़न के आधार पर बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से पलायन कर रहे हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई धर्मं के अवैध प्रवासियों के देशीयकरण की अनुमति देने वाले संशोधनों को अवैध और अमान्य घोषित करने का आग्रह किया गया था।
  • क्योंकि इन अधीनस्थ कानूनों द्वारा प्रदत्त छूट से बांग्लादेश से असम में अवैध प्रवासियों की अनियंत्रित आमद में कई गुना बढ़ोतरी हो जाएगी।
  • याचिका में कहा गया है कि पूर्वोत्तर राज्यों में अवैध आव्रजन के कारण वृहद् स्तर पर जनसांख्यिकीय परिवर्तन हुए हैं।
  • 5 मार्च, 2019 को उच्चतम न्यायालय ने इस याचिका पर केंद्र सरकार से जवाब मांगा था।

स्रोत : द हिंदू

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