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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

निजीकरण की ओर अग्रसर कोयला उद्योग

  • 21 Apr 2017
  • 4 min read

समाचारों में क्यों?
विदित हो कि वर्ष 1971 में कोकिंग और 1973 में नन कोकिंग कोयला की खदानों के राष्ट्रीयकरण के बाद कोयला उद्योग फिर निजीकरण की ओर अग्रसर हो रहा है। केंद्र सरकार ने ऐतिहासिक कदम उठाते हुए कोयले के व्यवसायिक खनन की दिशा में प्रयास शुरू किया है और विशेषज्ञ इसे कोयला उद्योग के निजीकरण का प्रयास बता रहे हैं। इसके तहत पहले चरण में 30 मिलियन टन कोयले के व्यवसायीकरण का टेंडर निकालने की योजना है। इसके लिये कोयला मंत्रालय ने एक चर्चा पत्र पब्लिक डोमेन में डालकर हितधारकों से इस पर 26 अप्रैल तक विचार आमंत्रित किया है।

महत्त्वपूर्ण बिंदु
चर्चा पत्र के अनुसार वाणिज्यिक खनन का एक साझा राजस्व मॉडल होगा जो उत्पादन या कुल राजस्व पर आधारित होगा। नीलामी में सफल होने वाली कंपनी अपने कोयले की मार्केटिंग और दाम तय करने के लिये स्वतंत्र होगी और वह बाज़ार के मांग के अनुरूप कोयले का उत्पादन कर सकेगी। इसकी नीलामी में वही कंपनी भाग ले सकती है, जिसका डेढ़ हजार करोड़ का मालिकाना हक हो, साथ ही 25 लाख घन मीटर कोयला, लौह, अयस्क, चूना, पत्थर, बक्साइट और मैगजीन की खुदाई करने का लगातार तीन वर्ष का अनुभव हो।

ज्ञात हो कि वर्ष 1971 में कोकिंग कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण शुरू हुआ था। वर्तमान झारखंड राज्य के झरिया कोयलांचल और पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयलांचल की 214 कोकिंग कोयला खदानों का राष्ट्रीयकरण कर भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की स्थापना की गई थी। वर्ष 1973 में नन कोकिंग कोयला खदानों का भी राष्ट्रीयकरण हुआ था। इससे भारत कोकिंग कोल लिमिटेड के खाते में 182 नन कोकिंग कोयला की खदानें शामिल हो गई थीं। वर्ष 1975 में कोल इंडिया लिमिटेड की सहायक कंपनी भारत कोकिंग कोल लिमिटेड की स्थापना की गई थी।

सम्भावित प्रभाव
केंद्र सरकार के इस फैसले से भारत में कोयला खनन का सार्वजनिक प्रतिष्ठान और विश्व की सबसे बड़ी कोयला खनन कंपनी ‘कोल इंडिया लिमिटेड’ का अस्तित्व संकट में पड़ने की आशंका व्यक्त की जा रही है। अभी तक देश में कोयले के सबसे बड़े ‘खिलाड़ी’ के रूप में कोल इंडिया की पहचान है। निजी कंपनियों द्वारा वाणिज्यिक खनन शुरू किये जाने के बाद कोयला न बिकने के संकट से जूझ रही कोल इंडिया का संकट और बढ़ सकता है।

साथ ही एक डर यह भी है कि इस क्षेत्र के बाज़ार नियमन के दायरे में होने और सरकारी कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड से कड़ी प्रतिस्पर्द्धा को लेकर उद्योग जगत चिंतित हो सकता है। उद्योग जगत उम्मीद कर रहा है कि सरकार सिर्फ छोटी खदानों की पेशकश करेगी, ऐसे में यह संभव है कि बड़े कारोबारी इससे दूरी बना लें।

निष्कर्ष
कोयला मंत्रालय ने अभी हाल ही में घोषणा की थी कि वह जल्द ही निजी वाणिज्यिक खनन और कोयले की बिक्री के लिये 4 कोयला खदानों की पेशकश करेगा। कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम 2015 में संशोधन के बाद कोयला क्षेत्र में 42 साल के बाद वाणिज्यिक खनन को अनुमति मिली है। कोयला क्षेत्र में अब तक कोल इंडिया, सरकारी खदान या निजी खदान मालिक ही सक्रिय रहे हैं। अतः अब जब सरकार कोयला खनन में पारदर्शिता बहाल करना और प्रतिस्पर्द्धा बढ़ाना चाहती है तो उसे उद्योग जगत की चिंताओं का संज्ञान लेना चाहिये।

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