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जैव विविधता और पर्यावरण

जलवायु परिवर्तन का विकासशील छोटे द्वीपीय राष्ट्रों पर प्रभाव

  • 21 Jun 2019
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विश्व जनसंख्या संभावना 2019 (World Population Prospects 2019) के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र (United Nation) की एक रिपोर्ट अनुसार, कई छोटे विकासशील द्वीपीय देश (Small Island Developing States-SIDS) बढ़ती जनसंख्या और जलवायु परिवर्तन संबंधी जोखिमों के कारण वर्ष 2030 तक अपने सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल हो सकते हैं।

प्रमुख बिंदु

  • ऐसा पाया गया है कि जनसंख्या वृद्धि सभी अल्प-विकासशील देशों को लक्ष्यों को पूरा करने में बाधक बन रही है, लेकिन यह समस्या SIDS में जलवायु परिवर्तन के साथ और जटिल हो जाती है।
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, कोमोरोस (Comoros), गिनी-बिसाऊ (Guinea-Bissau), साओ टोम (Sao Tome) और प्रिंसिप (Principe ), सोलोमन द्वीप समूह (Solomon Islands) और वानुअतु (Vanuatu) सहित कई SIDS देश तीव्र जनसंख्या वृद्धि का सामना कर रहे हैं।
  • इन छोटे देशों के लिये जलवायु परिवर्तन, समुद्र के जल स्तर में वृद्धि के कारण उनकी चुनौती बड़ी हो जाती है। वैश्विक स्तर पर इन देशों की जनसंख्या वृद्धि दर औसत से अधिक है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, कोमोरोस की जनसंख्या में 2.3 प्रतिशत प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि हो रही है, जो कुल वैश्विक विकास दर का 1.07 प्रतिशत है। ऐसे ही सोलोमन द्वीप समूह की जनसंख्या वृद्धि दर 2 प्रतिशत है, साओ टोम एवं प्रिंसिप की जनसंख्या वृद्धि दर 2.2 प्रतिशत है तथा गिनी-बिसाऊ की आबादी 2.5 प्रतिशत की दर से प्रतिवर्ष बढ़ रही है।
  • वर्तमान में इन देशों की कुल जनसंख्या लगभग 71 मिलियन है, लेकिन जनसंख्या में तीव्र वृद्धि होने से वर्ष 2030 तक यह आँकड़ा 78 मिलियन और वर्ष 2050 तक 87 मिलियन तक पहुँचने की संभावना है।
  • SIDS देश समान रूप से सतत विकास की चुनौतियों को साझा करते हैं, जिनमें सापेक्षिक रूप से बढ़ती आबादी, सीमित संसाधन, दूरस्थता, प्राकृतिक आपदाओं के प्रति संवेदनशीलता, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर अत्यधिक निर्भरता और संवेदनशील वातावरण शामिल हैं।
  • संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार, जलवायु परिवर्तन अर्थव्यवस्था के आकार अथवा स्थान की परवाह किये बिना सभी देशों के विकास को प्रभावित करता है। लेकिन गैर-द्वीपीय देशों में द्वीपीय देशों की तुलना में विनाशकारी घटनाओं की संभावना कम होती है।
  • SIDS देशों की कुल आबादी का एक-तिहाई हिस्सा समुद्र की सतह से पाँच मीटर से कम ऊँची भूमि पर रहता है और उन पर समुद्र के जल स्तर में वृद्धि, चक्रवात और तटीय विनाश का खतरा बराबर बना रहता है।

SIDS पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

(Impact of Climate Change on SIDS)

  • SIDS देश वैश्विक स्तर पर होने वाले ग्रीन हाउस उत्सर्जन का 1% ही उत्सर्जित करते हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों के कारण होने वाले सर्वाधिक विनाश का खामियाज़ा सबसे पहले इन्हीं को भुगतना पड़ता है।
  • कृषि, मत्स्य पालन से जुड़े क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादन में गिरावट आ रही है, जिससे आजीविका और आर्थिक विकास पर खतरा मंडरा रहा है। इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन के कारण चरम मौसम की मार से SIDS की भूमि, अचल संपत्ति और बुनियादी ढाँचे भी प्रभावित होते हैं और इससे इन देशों के आर्थिक विकास पर बेहद विपरीत प्रभाव पड़ता है।
  • कई SIDS देशों की अर्थव्यवस्थाएँ की पर्यटन पर टिकी हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण इनके पर्यटन केंद्र भी इस संकट से अछूते नहीं हैं। पर्यटक चक्रवातों की आशंका में इन देशों की यात्रा नहीं कर रहे हैं जिसका इनकी अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है।

SIDS क्या है?

  • ये कैरेबियन सागर और अटलांटिक महासागर, हिंद और प्रशांत महासागरों के द्वीपों पर स्थित देश हैं।
  • पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में जून, 1992 में विकासशील देशों के एक अलग समूह के रूप में SIDS को मान्यता दी गई थी। SIDS देशों की कुल संख्या 38 है।
  • सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन के दौरान संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में सतत् विकास पर अपनाई गई ‘द फ्यूचर वी वांट’ (The Future We Want) में SIDS की समस्याओं को उजागर किया गया है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा का गठन जून 2012 में किया गया था। ध्यातव्य है कि सतत् विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन को RIO+20 या RIO 2012 भी कहा जाता है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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