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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

जलवायु परिवर्तन से भारत को हर साल $ 9-10 अरब का नुकसान

  • 19 Aug 2017
  • 6 min read

चर्चा में क्यों ? 

भारत को जलवायु परिवर्तन के कारण हर साल लगभग 9-10 अरब डॉलर की हानि हो रही है। इसके साथ ही 2020 के अंत तक जलवायु में भारी परिवर्तन के अनुमान है जो गंभीर रूप से कृषि उत्पादकता को प्रभावित करेंगे। 

हाल ही में संसदीय समिति में एक रिपोर्ट प्रस्तुत करते हुए कृषि मंत्रालय ने कहा कि प्रमुख फसलों की उत्पादकता अगले कुछ सालों में सीमित हो जाएगी, लेकिन अगर विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन न हो तो 2100 तक बढ़कर 10-40 फीसद हो सकती है।

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव 

  • मौसम परिवर्तन की घटनाओं के कारण भारत में गेहूँ, चावल, तिलहन, दालों, फलों और सब्ज़ियों की पैदावार में कमी दिखाई देगी, ऐसे में किसानों को उनकी भरपाई के लिये  मौसम के अनूकूल अलग-अलग फसलों के पैटर्न को अपनाने की आवश्यकता होगी। 
  • जलवायु परिवर्तन में बदलाव भारत को दूध और दालों का प्रमुख आयातक बना देगा और 2030 तक, 2016-17 में अनुमानित उत्पादन से 65 लाख टन अधिक अनाज की आवश्यकता हो सकती है।

आलू के उत्पादन पर प्रभाव 

  • मंत्रालय ने अपने रिपोर्ट में कहा कि हालाँकि अधिकतर फसलों के उत्पादन में कमी देखी जा सकती है लेकिन जलवायु में परिवर्तन सोयाबीन, चना, मूंगफली, नारियल (पश्चिमी तट में) और आलू (पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में) की पैदावार को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है। 
  • आलू का उत्पादन शेष भारत में, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और दक्षिणी पठार क्षेत्र में घट सकता है।

खाद्य सुरक्षा पर असर

  • बढ़ती आबादी के कारण खाद्य मांग में बढ़ोतरी, शहरीकरण और बढ़ती आय का विस्तार करने के लिये भारत को आयात पर निर्भर होने की आवश्यकता हो सकती है। 
  • जलवायु परिवर्तन से जुड़ी अनियमितताओं के कारण भारतीय कृषि की कमज़ोरी और अधिकांश भारतीय किसानों की कम अनुकूलन क्षमता देश की खाद्य सुरक्षा के लिये  जोखिम पैदा करती है।
  • नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एग्रीकल्चर इकॉनमिक्स एंड पॉलिसी रिसर्च ने 2030 तक 345 मिलियन टन (मीट्रिक टन) खाद्यान्न की मांग का अनुमान लगाया है। 2030 तक फलों, सब्ज़ियों, दूध, पशु उत्पादों (माँस, अंडे और मछली), चीनी और खाद्य तेल की मांग 2-3 प्रतिशत से अधिक होने का अनुमान है।

आगे क्या हो ?

  • यद्यपि वर्ष 2011-12 में 259.29 मीट्रिक टन से खाद्यान्न उत्पादन बढ़कर वर्तमान में 275.68 मीट्रिक टन (अनुमानित) हो गया है, परन्तु देश को अभी भी 2030 तक खाद्यान्न की अनुमानित मांग से निपटने के लिये कई उपायों की ज़रूरत है।

 जलवायु परिवर्तन 

  • वर्तमान में विश्व जलवायु की समस्या से ग्रसित है। विश्व के कई देशों में इसके बारे में सार्थक बहस और चिंतन भी दिखाई देता है, लेकिन उसकी परिणति ढाक के तीन पात के रूप में ही सामने आती है।
  • जलवायु परिवर्तन के चलते जहाँ वायुमंडलीय दुष्प्रभाव दिखाई दे रहा है, वहीं मानव जीवन के स्वास्थ्य पर भी इसका नकारात्मक असर हो रहा है। 
  • वर्तमान में सबसे बड़ी समस्या धरती के बढ़ते तापमान को लेकर है। ग्लोबल वार्मिंग के चलते प्रकृति का संतुलन बिगडऩे लगा है। 
  • अनेक पर्यावरणविदों व वैज्ञानिकों ने आशंका जताई है कि ग्लोबल वार्मिंग के चलते हो रहा जलवायु परिवर्तन निकट भविष्य में कई प्रजातियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण हो सकता है। 
  • ग्लोबल वार्मिंग का सबसे अधिक दुष्प्रभाव स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र पर पड़ता है, जो बहुत ही नाजुक होते हैं। 

  • प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन ग्लोबल वार्मिंग को तेज़ कर रहा है। प्रकृति की हर प्रजाति कहीं-न-कहीं एक-दूसरे से जुड़ी होती है, अतः एक प्रजाति का नाश दूसरी प्रजाति पर आसन्न खतरे को अधिक विकट बनाता है। 
  • जलवायु परिवर्तन के चलते जो विनाशकारी स्थितियाँ पैदा हुई हैं, उसके पीछे मनुष्य ही उत्तरदायी है। प्रकृति की मौजूदा दुश्वारियां हमारी स्वयं की देन हैं। 
  • पर्यावरण के संतुलन के लिये जब तक मानव समाज जागरूक नहीं होगा, तब तक अच्छे परिणामों की कल्पना कैसे की जा सकती है।
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