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डेली न्यूज़

भारतीय अर्थव्यवस्था

दूरसंचार क्षेत्र में चुनौतियाँ

  • 04 Nov 2019
  • 6 min read

प्रीलिम्स के लिये:

यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड, स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क, समायोजित सकल राजस्व

मेन्स के लिये:

दूरसंचार क्षेत्र से संबंधित मुद्दे

संदर्भ

हाल ही में कैबिनेट सचिव राजीव गौबा की अध्यक्षता में एक पैनल का गठन किया गया, ताकि संकटग्रस्त दूरसंचार क्षेत्र के लिये राहत पैकेज की घोषणा की जा सके।

प्रमुख बिंदु:

  • पैनल में वित्त, कानून और दूरसंचार मंत्रालय के सचिव शामिल होंगे। जो समयबद्ध तरीके से सिफारिशों का निपटारा किया सके।
  • यह कदम सर्वोच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद उठाया गया है और इस प्रकार के प्रयासों के माध्यम से यह उम्मीद की जा रही है कि दूरसंचार कंपनियों की 1.4 लाख करोड़ रुपए की भुगतान राशि हेतु कुछ समाधान निकल सकेगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने दूरसंचार कंपनियों के वार्षिक समायोजित सकल राजस्व (Adjusted Gross Revenue- AGR) की गणना में गैर-दूरसंचार व्यवसायों से प्राप्त राजस्व को शामिल किया है जिसका कंपनियों द्वारा विरोध किया जा रहा है।
  • दूरसंचार कंपनियाँ कई अन्य चुनौतियों जैसे- उपभोक्ताओं की बड़ी संख्या और उन तक बेहतर दूरसंचार सेवाओं की पहुँच का सामना कर रही हैं।

आधारभूत मुद्दे:

  • वर्तमान में इस क्षेत्र के ऊपर भुगतान राशि को मिलाकर कुल लगभग 4 लाख करोड़ रुपए का ऋण विद्यमान है।
  • फ्री वॉयस और सस्ते डेटा से तीव्र प्रतिस्पर्द्धा के कारण, दूरसंचार क्षेत्र का सकल राजस्व वर्ष 2017-18 और 2018-19 के मध्य और गिर गया।
  • भारत में ग्राहकों को 8 रुपए/जीबी डेटा उपलब्ध करवाया जा रहा है जो विश्व में सबसे सस्ती दर है।
  • प्रति उपयोगकर्त्ता प्रतिमाह औसत राजस्व की प्राप्ति वर्ष 2014-15 के 174 रुपए के स्तर से घटकर वर्ष 2018-19 में 113 रुपए हो गई।
  • इस क्षेत्र की अन्य चुनौतियों में 5जी का क्रियान्वयन जैसे मुद्दे शामिल हैं।

क्षेत्र की मांग:

  • स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क (Spectrum Usage Charges) और यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड लेवी (Universal Service Obligation Fund Levy) में कमी की जाए।
  • वॉयस और डेटा के लिये व्यवहार्य मूल्य निर्धारण (Viable Pricing) किया जाए, यह भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) के कार्यक्षेत्र में आता है।
  • दूरसंचार क्षेत्र की मांग है कि TRAI द्वारा वॉयस और डेटा सेवाओं के लिये न्यूनतम शुल्क निर्धारित किया जाना चाहिये, जिससे क्षेत्र की दीर्घकालिक व्यवहार्यता और मज़बूत वित्तीय स्थिति सुनिश्चित हो सके।
  • इस क्षेत्र की कंपनियों की मांग है कि उनके क्रेडिट पर मिले इनपुट टैक्स क्रेडिट, जो कि सरकार के पास जमा है, का समायोजन सरकारी शुल्कों में किया जाए।

समायोजित सकल राजस्व

(Adjusted Gross Revenue- AGR)

  • यह उपयोग और लाइसेंस शुल्क है जो दूरसंचार विभाग (Department of Telecommunications- DoT) द्वारा दूरसंचार ऑपरेटरों पर लगाया जाता है। विभाग द्वारा इसकी दर 3.5%-8% के मध्य निर्धारित की गई है।

स्पेक्ट्रम उपयोग शुल्क

(Spectrum Usage Charge- SUC)

  • यह वह शुल्क है जो मोबाइल एक्सेस सेवा प्रदान करने वाले लाइसेंसधारियों द्वारा अपने AGR के प्रतिशत के रूप में भुगतान किया जाना आवश्यक होता है। इसी के लिये सरकार द्वारा समय-समय पर दरें अधिसूचित की जाती हैं।

यूनिवर्सल सर्विस ऑब्लिगेशन फंड

Universal Service Obligation Fund (USOF)

  • यह ग्रामीण और दूरदराज़ के क्षेत्रों में लोगों तक वहन योग्य कीमतों पर गैर-भेदभावपूर्ण गुणवत्तापूर्ण सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (Information and Communication Technology- ICT) सेवाओं की पहुँच सुनिश्चित करता है।
  • वर्तमान में इसकी दर 5% है जिसे इस क्षेत्र की कंपनियों द्वारा घटाकर 3% करने की मांग की जा रही है।
  • इसका गठन वर्ष 2002 में दूरसंचार विभाग के तहत किया गया था।
  • इस फंड के लिये संसदीय अनुमोदन की आवश्यकता होती है और इसे भारतीय टेलीग्राफ (संशोधन) अधिनियम, 2003 के तहत वैधानिक समर्थन प्राप्त है।

आगे की राह:

  • दूरसंचार क्षेत्र की समस्याओं का समाधान करके सेवा की गुणवत्ता में सुधार करना चाहिये।
  • एक बेहतर व्यावसायिक वातावरण के लिये दीर्घकालिक दृष्टि योजना (long-term vision plan) का निर्माण करना चाहिये।
  • ब्रॉडबैंड सेवाओं तक बढ़ती पहुँच भारत को डिजिटली रूप से अधिक सशक्त बनाएगा, इसलिये समग्र दूरसंचार क्षेत्र को मज़बूती प्रदान करने के लिये सरकार द्वारा पर्याप्त कदम उठाए जाने चाहिये।

स्रोत- द हिंदू

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