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अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पवन क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिये केंद्र द्वारा संचालित परियोजनाएँ

  • 24 Jul 2017
  • 7 min read

संदर्भ
गौरतलब है कि अभी तक भारत में पवन ऊर्जा फीड-इन-टैरिफ (feed-in-tariff) मॉडल पर संचालित की जाती रही है जिसमें प्रत्येक राज्य के ऊर्जा नियामक आयोग (Energy Regulatory Commission - ERC) द्वारा निर्धारित प्रशुल्कों (tariffs) का पूर्वनिर्धारण किया जाता था| परंतु, फरवरी 2017 में आयोजित हुई पहली सफल पवन ऊर्जा नीलामी प्रक्रिया ने इस व्यवस्था में परिवर्तन कर दिया है|

प्रमुख बिंदु

  • अंतर्राज्यीय ट्रांसमिशन प्रणाली (Inter State Transmission System-ISTS) की नीलामी बोली के अंतर्गत पवन ऊर्जा की क्षमता की अत्यधिक आपूर्ति उन प्रोजेक्टों के स्थानों पर की जाती है जिनमें पवन ऊर्जा की सबसे अधिक खपत होती है|
  • इसके विपरीत उत्तर प्रदेश, बिहार, असम और झारखंड जैसे राज्यों में जो कि पवन ऊर्जा संसाधनों के संबंध में अधिक धनी नहीं हैं, बिजली का उपभोग किया जाता है|
  • ऐसी स्थिति में स्पष्ट है कि नए परिवर्तनों के लागू होने के पश्चात् अब अंतर्राज्यीय ट्रांसमिशन प्रणाली ऐसे सभी राज्यों के लिये भी मददगार साबित होगी जिनके पास अपने नवीकरणीय खरीद दायित्वों (renewable purchase obligation – RPOs) को पूरा करने के लिये अच्छे पवन संसाधनों का अभाव है|
  • उल्लेखनीय है कि हाल ही में इस क्षेत्र में प्रौद्योगिकी में हुए सुधारों के कारण भारत के निश्चित पवन ऊर्जा संयंत्रों से प्राप्त होने वाली पवन ऊर्जा में 35-40% की बढ़ोतरी दर्ज़ की गई है| 

वर्तमान स्थिति

  • पवन टरबाइन जनरेटरों की क्षमता में बढ़ोतरी होने के कारण प्रति मेगावाट आवश्यक भूमि में कमी आई है जिससे भूमि अधिग्रहण संबंधी विवादों में भी कमी आई है| संभवतः स्पष्ट तौर पर यह कहा जा सकता है कि वाणिज्यिक व्यवहार्यता में सुधार करने के साथ-साथ यह क्षेत्र अब स्व-धारणीय स्थिति में पहुँच गया है|

पवन ऊर्जा के क्षेत्र में वृद्धि करने के संदर्भ में आवश्यक सुझाव

  • ध्यातव्य है कि हाल ही में हुए एक अध्ययन के अंतर्गत यह पाया गया है कि पवन ऊर्जा संबंधी संसाधनों की पहुँच देश के केवल कुछ राज्यों तक ही सीमित हैं, ऐसी स्थिति में यह आवश्यक है कि पवन ऊर्जा के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिये मज़बूत ट्रांसमिशन अवसंरचना को स्थापित करने पर बल दिया जाना चाहिये|
  • विगत कुछ वर्षों में पश्चिम-दक्षिण और पूर्व-दक्षिण क्षेत्रों में स्थापित किये गए ट्रांसमिशन गलियारे अब सघन हो गए हैं| परन्तु पिछले कुछ समय से दक्षिणी क्षेत्र में पवन ऊर्जा की क्षमता में वृद्धि होने से यह क्षेत्र ऊर्जा अधिकता वाला क्षेत्र बन गया है| अतः इस क्षेत्र की सघनता को कम करने का प्रयास किया जाना चाहिये ताकि इस क्षेत्र को और अधिक उन्नत करने में सहायता प्राप्त हो सकें| 
  • वस्तुतः सघन ट्रांसमिशन में कमी और एक मज़बूत ट्रांसमिशन अवसंरचना का निर्माण इस प्रकार की  अंतर्राज्यीय नीलामी और विद्युत बिक्री की सफलता के निर्धारण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते है|
  • यही कारण है कि भारत सरकार द्वारा पहले ही ट्रांसमिशन संबंधी मुद्दों का समाधान करने के लिये एक हरित ऊर्जा गलियारे को प्रस्तावित किया जा चुका है| इस हरित ऊर्जा गलियारे के पूर्ण हो जाने पर यह गलियारा ग्रिड संतुलन से संबंधित मुद्दों का समाधान करने में मददगार साबित होगा और एक कुशल तरीके से ट्रांसमिशन क्षमता में होने वाली वृद्धि को प्रबंधित भी कर सकेगा|

‘मेक इन इंडिया’ को प्रोत्साहन प्रदान करने का विकल्प 

  • विदित हो कि सौर ऊर्जा के विपरीत पवन ऊर्जा के क्षेत्र में उपयोग में आने वाले संयंत्र और उपकरण पूर्णतः भारत में निर्मित होते हैं| वहीं दूसरी ओर सौर ऊर्जा प्रोजेक्टों की लागत का 60% से अधिक आयातों में ही व्यय होता है|
  • इसके विपरीत सभी प्रमुख पवन टरबाइन विनिर्माणकर्ताओं जैसे- जीई, सुज़लोन, गमेसा और वेस्टास की भारत में पवन टर्बाइन जनरेटर इकाइयाँ मौजूद हैं| स्पष्ट रूप से यह क्षेत्र भारतीय युवाओं के लिये रोजगारों के अवसरों का सृजन करने के लिये भारत सरकार द्वारा चलाए गए ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम के दृष्टिकोण को प्रभावी बनाने का एक उचित माध्यम साबित हो रहा है|
  • ध्यातव्य है कि पवन ऊर्जा क्षेत्र के संबंध में भारत में अकेले ही वर्ष 2022 तक 1.8 मिलियन रोज़गार के अवसर सृजित करने की क्षमता विद्यमान है|

वर्तमान स्थिति 
राष्ट्रीय विद्युत योजना प्रारूप के अनुसार, अगले पाँच वर्षों में भारत में विद्युत उपभोग में वार्षिक रूप से 7.44% की वृद्धि होने की संभावना व्यक्त की गई है| इस वृद्धि की संभावना को ध्यान में रखते हुए यह अनुमान व्यक्त किया गया है कि भारत को ऊर्जा की अपनी भावी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये वर्ष 2022 तक 150 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा की आवश्यकता होगी| उल्लेखनीय है कि भारत के पास इस समय 32 गीगावाट का पवन इंस्टालेशन (Wind Installation) आधार मौजूद है जो कि कुल पवन इंस्टालेशन (Wind Installation) में विश्व में चौथे स्थान पर है|

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