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भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के विघटन की घोषणा

  • 28 Sep 2018
  • 5 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद के कामकाज की निगरानी करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नियुक्त पर्यवेक्षण समिति के अचानक इस्तीफा देने के बाद सरकार ने हाल ही में  चिकित्सा शिक्षा के शीर्ष नियामक इस 100 सदस्यीय परिषद के वर्तमान स्वरूप को भंग कर दिया।

प्रमुख बिंदु

  • परिषद के सदस्यों के गैर-सहयोगी और गैर-अनुपालनशील रवैये के संबंध में पर्यवेक्षण समिति द्वारा स्वास्थ्य मंत्रालय को बार-बार शिकायतें और लिखित निवेदन भेजे जा रहे थे।
  • नीति आयोग के सदस्य वी.के. पॉल की अध्यक्षता वाली समिति ने जुलाई माह में परिषद पर आरोप लगाते हुए मंत्रालय को पत्र लिखा था कि, “एमसीआई अधिकारियों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या की जा रही है। मंत्रालय को या तो इस संबंध में कार्रवाई करनी चाहिये या सर्वोच्च न्यायालय को इससे अवगत कराया जाना चाहिये।”
  • बाद में, पॉल ने एमसीआई के खिलाफ जाँच आयोग की मांग करते हुए मंत्रालय को फिर से पत्र लिखा। इसके बाद पाँच सदस्यीय समिति ने इस्तीफा दे दिया। इस समिति में वी.के. पॉल के अतिरिक्त दिल्ली में एम्स के निदेशक रणदीप गुलेरिया; एम्स में प्रोफेसर और एंडोक्राइनोलॉजी के प्रमुख निखिल टंडन; चंडीगढ़ में PGIMER के निदेशक जगत राम तथा बंगलूरू में NIMHANS के निदेशक बीएन गंगाधरन शामिल थे।
  • स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, पूरी समिति द्वारा विरोधस्वरूप इस्तीफा दिये जाने के बाद मंत्रालय को आगे की कार्रवाई के बारे में फैसला करने के लिये सर्वोच्च न्यायालय जाना पड़ता। जिससे मंत्रालय को सर्वोच्च न्यायालय की और अधिक आलोचना झेलनी पड़ती।
  • इसलिये एमसीआई को भंग करने का निर्णय लिया गया और पर्यवेक्षण समिति के पाँच सदस्यों को नए बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के रूप में नियुक्त किया गया।
  • शीर्ष चिकित्सा निकाय संबंधी सुधार के लिये सरकार वर्ष 2010 से अत्यंत सुस्त गति से प्रयास कर रही है। इस संबंध में संसदीय स्थायी समिति की एक रिपोर्ट के अनुसार, सरकार पिछले आठ वर्षों से बार-बार पूर्ववर्ती बोर्ड का स्थान लेने के लिये गवर्नरों के एक बोर्ड का गठन कर रही है।
  • अभी तक राष्ट्रीय मेडिकल कमीशन विधेयक पारित नहीं किया गया है जो भारतीय मेडिकल काउंसिल एक्ट, 1956 का स्थान लेगा। इससे पहले राष्ट्रीय स्वास्थ्य मानव संसाधन आयोग विधेयक, 2011 को विपक्ष के विरोध के कारण वापस ले लिया गया था।

भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद (Medical Council of India- MCI)

  • भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद की स्थापना वर्ष 1934 में हुई थी। भारतीय आयुर्विज्ञान परिषद अधिनियम, 1933 के तहत स्थापित इस परिषद का कार्य एक मेडिकल पंजीकरण और नैतिक निरीक्षण करना था।
  • दरअसल, तब चिकित्सा शिक्षा में इसकी कोई विशेष भूमिका नहीं थी, किंतु वर्ष 1956 के संशोधन द्वारा स्नातक और स्नातकोत्तर दोनों ही स्तरों पर चिकित्सा शिक्षा की देख-रेख हेतु इसे अधिकृत कर दिया गया।
  • वर्ष 1992 शिक्षा के निजीकरण का दौर था और इसी दौरान एक अन्य संशोधन के ज़रिये एमसीआई को एक सलाहकारी निकाय की भूमिका दे दी गई। जिसके तीन महत्त्वपूर्ण कार्य थे-
  1. मेडिकल कॉलेजों को मंज़ूरी देना
  2. छात्रों की संख्या तय करना
  3. छात्रों के दाखिला संबंधी किसी भी विस्तार को मंज़ूरी देना
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