लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

7 फरवरी से आरंभ होगी कावेरी जल-विवाद पर दैनिक सुनवाई

  • 05 Jan 2017
  • 8 min read

पृष्ठभूमि

4 जनवरी, 2017 को सर्वोच्च न्यायालय ने कर्नाटक सरकार से पड़ोसी राज्य तमिलनाडु के लिये कावेरी नदी का 2000 क्यूसेक पानी छोड़ने के लिये कहा है| ध्यातव्य है कि सर्वोच्च न्यायालय ने तमिलनाडु, कर्नाटक एवं केरल की राज्य सरकारों द्वारा कावेरी जल विवाद न्यायाधिकरण द्वारा दिये गए जल-बँटवारे संबंधी निर्णय के विरुद्ध दायर याचिका को मद्देनज़र रखते हुए 7 फरवरी से दैनिक सुनवाई शुरू करने का फैसला किया गया है| लंबे अर्से से विवाद का कारण बने कावेरी नदी के जल-बँटवारे के विषय में तात्कालिक निर्णय पर बल देते हुए न्यायाधीश दीपक मिश्रा, अमिताव रॉय तथा ए.एम. खानविलकर की पीठ ने 7 फरवरी से आगामी तीन सप्ताह तक एक के बाद एक सुनाई करने का निर्णय लिया है|  

  • ध्यातव्य है कि कर्नाटक राज्य सरकार के वकील मोहन कतार्की ने जल-विवाद के संबंध में तमिलनाडु सरकार को प्रत्युत्तर देते हुए कहा कि वर्तमान में कर्नाटक में  4.8 टीएमसी फुट पानी की कमी दर्ज की गई है, जबकि आने वाले समय में इसमें एक टीएमसी फुट पानी की अतिरिक्त कमी आने की प्रबल संभावना भी व्यक्त की जा रही है| ऐसे में, कर्नाटक सरकार किसी भी हालत में 31 जनवरी से पहले तमिलनाडु को पानी देने की स्थिति में नहीं है|
  • वहीं दूसरी ओर, तमिलनाडु सरकार द्वारा अपना पक्ष रखते हुए कहा गया है कि इस वर्ष उत्तर-पूर्वी मानसून के पूर्णतया विफल रहने के कारण राज्य 67 फीसदी जल की कमी से जूझ रहा है| 
  • गौरतलब है कि गत वर्ष 9 दिसम्बर को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार के इस रुख को पूर्णतया खारिज कर दिया था कि कावेरी जल-विवाद के विषय में सुनवाई करने का क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास नहीं है| न्यायालय ने इस विषय में तीनों राज्यों द्वारा न्यायाधिकरण के विरुद्ध दायर याचिका के विषय में सुनवाई करने के अधिकार को अपनी संवैधानिक शक्ति (constitutioal power) करार दिया |
  • हालाँकि, इस संदर्भ में केंद्र सरकार द्वारा यह तर्क दिया गया है कि संसदीय कानून अंतर्राज्यीय जल-विवाद अधिनियम, 1956 (parliamentary law of Inter-State Water Disputes Act of 1956) के साथ संविधान के अनुच्छेद 262(2)  को युग्मित करने पर यह स्पष्ट होता है कि जल-विवाद न्यायाधिकरण के विरुद्ध दायर किसी भी याचिका की सुनवाई करने के अधिकार क्षेत्र से सर्वोच्च न्यायालय को बाहर रखा गया है| साथ ही, केंद्र सरकार द्वारा यह भी तर्क प्रस्तुत किया गया कि उक्त विषय में न्यायाधिकरण का निर्णय अंतिम निर्णय होता है|  
  • हालाँकि, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अपनी बात स्पष्ट करते हुए कहा गया है कि संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत इस विषय में सुनवाई करना सर्वोच्च न्यायालय का संवैधानिक आधिकार है तथा कार्यपालिका द्वारा कोई नया सिद्धांत लागू करके अथवा चुनाव के माध्यम से इस अधिकार को वापस नहीं लिया जा सकता है|
  • अनुच्छेद 136 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रदत्त कोई भी निर्णय न्यायालय का असाधारण अधिकार क्षेत्र (extraordinary jurisdiction) है, जो न्यायालय को किसी भी प्रकार का निर्णय अथवा, डिक्री सुनिश्चित करने का पूर्ण अधिकार प्रदान करता है|
  • ध्यातव्य है कि संविधान के अनुच्छेद 262 की मूल मंशा यह है कि सर्वोच्च न्यायालय किसी मूल-अन्तर्राज्यीय जल-विवाद का संज्ञान न ले| न्यायालय द्वारा स्पष्ट किया गया है कि संविधान के अनुच्छेद 262 (1) के तहत वर्णित किसी जल-विवाद को यदि अंतर्राज्यीय जल विवाद अधिनियम, 1956 के प्रावधानों के अंतर्गत पढ़ा जाता है और न्यायाधिकरण उस पर अपना निर्णय दे देता है तो वह जल-विवाद, मूल-विवाद की अपनी प्रकृति खो देता है|

कवेरी नदी जल-विवाद

  • ध्यातव्य है कि कावेरी नदी का कुल जल क्षेत्र 87,900 वर्ग किलोमीटर है, जोकि समूचे भारतीय भू-भाग का तकरीबन 2.7 प्रतिशत क्षेत्र है|
  • कावेरी नदी में मिलने वाली प्रमुख नदियाँ- हेमवती, हरांगी, काबिनी, स्वर्णवटी तथा भवानी हैं|
  • भौगोलिक रूप से कावेरी नदी को तीन प्रमुख भागों में बाँटा गया है- पश्चिमी घाट, मैसूर का पठार तथा डेल्टा क्षेत्र |
  • कावेरी नदी का उद्गम स्थल कर्नाटक राज्य होने के कारण कावेरी के जल पर सम्पूर्ण अधिकार भी इसी का होता है|
  • सर्वप्रथम, इस विवाद का उद्भव वर्ष 1837 में मैसूर तथा मद्रास प्रेसिडेंसी के बीच वन तथा सिंचाई के मुद्दों को लेकर हुआ था| वर्ष 1892 एवं 1950 में ब्रिटिश सरकार की मध्यस्थता में इस पर समझौता किया गया, परन्तु 70 के दशक में इस नदी के संबंध में पुन: विवाद की स्थिति बन गई|
  • तत्पश्चात वर्ष 1986 में तमिलनाडु सरकार द्वारा केंद्र सरकार से वर्ष 1956 में पारित अन्तर्राज्यीय जल विवाद कानून के अंतर्गत एक न्यायाधिकरण के गठन की मांग की गई, जिसके परिणामस्वरूप 2 जून,1990 को कवेरी जल विवाद न्यायाधिकरण का गठन किया गया|

अन्तर्राज्यीय नदी जल विवाद अधिनियम, 1956

  • 6 अगस्त, 2002 को इस अधिनियम का संशोधित प्रारूप लागू किया गया|
  • ध्यातव्य है कि जब दो या दो से अधिक राज्य सरकारों के मध्य जल विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है अथवा जल विवाद होता है, तो इस अधिनियम के तहत किसी भी नदी घाटी वाले राज्य द्वारा केंद्र सरकार को इस संबंध में अनुरोध भेजा जा सकता है|
  • उक्त अधिनियम के तहत, जब ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि अब विवाद को बातचीत के ज़रिये नहीं सुलझाया जा सकता है, केवल तभी केंद्र सरकार उस विवाद को पंचाट के पास भेज सकती है अथवा पंचाट को सौंप सकती है|
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2