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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

पूंजीगत व्यय में कमी और अप्रत्यक्ष करों पर बढ़ती निर्भरता

  • 24 Jan 2017
  • 4 min read

सन्दर्भ

वित्त मंत्री अरुण जेटली अगले सप्ताह अपना चौथा आम बजट पेश करेंगे। आगामी बजट में वह क्या कर सकते हैं! यह समझने के लिये वित्त मंत्री के अब तक के प्रदर्शन का आकलन करने पर जो तस्वीर सामने आती है वह काफी रोचक और जानकारीपरक है|

एनडीए सरकार की उपलब्धियाँ

  • राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के मोर्चे पर वित्त मंत्री का प्रदर्शन सराहनीय रहा है| राजकोषीय जिम्मेदारियों से संबंधित दबाव होने के बावजूद उन्होंने लगातार तीन बजट में सरकार के राजकोषीय घाटे को कम किया| वर्ष 2014-15 में जहाँ यह सकल घरेलू उत्पाद के 4.1 फीसदी के बराबर था, वहीं वर्ष 2015-16 में 3.9 फीसदी रहा और चालू वर्ष में इसके 3.5 फीसदी तक पहुँच जाने की पूरी उम्मीद जताई जा रही है|
  • उल्लेखनीय है कि 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद के दौर में कभी केंद्रीय बजट में राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में यूँ लगातार पाँच साल तक सिलसिलेवार सुधार देखने को नहीं मिला था| कराधान के मोर्चे पर सरकार ने जीडीपी में इसकी हिस्सेदारी को वर्ष 2014-15 के 10 फीसदी के स्तर से बढ़ाकर 11 फीसदी करके उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है|

प्रमुख चिंताएँ

  • कराधान के प्रयासों पर करीबी नज़र डाली जाए तो एक रोचक रुझान नज़र आता है कि एनडीए सरकार के कार्यकाल में तीन सालों के दौरान निगमित कर संग्रह में कमी आई है जबकि व्यक्तिगत आय कर में इजाफा हुआ है| 
  • एनडीए सरकार ने अपने तीन बजटों में कंपनियों के साथ-साथ लोगों को भी करों में रियायत दी लेकिन कर संग्रह में कमी शायद इसलिये आई क्योंकि कारोबारी घरानों का मुनाफा कमज़ोर रहा|
  • यदि सीमा शुल्क को छोड़ दिया जाए तो बीते तीन सालों में उत्पाद कर और सेवा कर में लगातार इजाफा हुआ है| हालाँकि यह अवश्यम्भावी था क्योंकि एनडीए सरकार ने सेवा कर में इजाफा किया और पेट्रोलियम पदार्थों पर उत्पाद शुल्क में भी बढ़ोतरी की गई|
  • गौरतलब है कि बीते ढाई दशक में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर में असंतुलन काफी हद तक दूर हुआ क्योंकि दोनों क्षेत्रों की हिस्सेदारी कमोबेश एक समान रही, लेकिन जीडीपी के प्रतिशत के रूप में अप्रत्यक्ष कर में इज़ाफे का रुझान प्रत्यक्ष कर की तुलना में तेजी से हुआ है और इस पर ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है|
  • सार्वजनिक निवेश में लगातार बढ़ोतरी के बावजूद सरकार का पूंजीगत व्यय जीडीपी के अनुपात में धीमी गति से बढ़ा है और इस प्रवृत्ति में वांछनीय सुधार की आवश्यकता है|

निष्कर्ष

  • रक्षा क्षेत्र में होने वाले व्यय में ऐसे वक्त में कमी आई है जब सरकार को सशस्त्र बलों को और अधिक मजबूत बनाने की आवश्यकता है| जीडीपी के प्रतिशत के रूप में रक्षा क्षेत्र का व्यय वर्ष 2010-11 से ही लगातार घट रहा है और एनडीए सरकार के पिछले तीन बजट में भी यह नकारात्मक रुझान लगातार जारी रहा है| अतः आगामी बज़ट में सरकार को पूंजीगत सरकारी व्यय के मौजूदा रुझानों  को बदलने का प्रयास करना चाहिये|
  • सरकार को राजकोषीय सुदृढ़ीकरण से बिना कोई समझौता किये पूंजीगत व्यय को बढ़ाने पर बल देना होगा| बजटीय प्रोत्साहन तथा संरचनात्मक सुधारों के माध्यम से भारतीय अर्थव्यवस्था को इस वर्ष ऊँची वृद्धि दर हासिल करने का प्रयास करना होगा|
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