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डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

एच-1 बी वीज़ा से जुड़े मिथक

  • 22 Apr 2017
  • 5 min read

संदर्भ
पिछले वर्ष अगस्त माह में देश की एक सबसे बड़ी आईटी सेवा कंपनी को टेक्सास में अपने कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रोजेक्ट पर कार्य करने के लिये 10 सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की शीघ्र आवश्यकता हुई परन्तु इसके लिये दो बार विज्ञापन देने के बाद भी कंपनी को उनकी आवश्यकतानुरूप एक भी कुशल अमेरिकी इंजीनियर नहीं मिला| तब कंपनी पर उसके प्रोजेक्ट के लिये भारत से संसाधन(कुशल इंजीनियर) प्राप्त करने का दबाव बनाया गया| 

प्रमुख बिंदु

  • अमेरिका ऐसा देश है जहाँ एच -1 बी वीज़ा धारकों के कारण रोज़गार के नुकसान की घटनाओं के विपरीत वहाँ इन रोज़गारों के लिये कुशल स्थानीय कामगार नहीं हैं|
  • अमेरिका में स्थित द कांफ्रेंस बोर्ड द्वारा संकलित ऑनलाइन रोज़गार पोस्टिंग आँकड़ों के अनुसार, इस वर्ष मार्च में कंप्यूटर और गणित में रोज़गारों के विज्ञापनों की संख्या 16,900 से बढ़कर 524,800 हो गई थी| इसी समय मांग के सापेक्ष आपूर्ति की दर 0.26 थी जिसका तात्पर्य है कि वहाँ प्रत्येक रोज़गार चाहने वाले के लिये चार विज्ञापन दिये गए थे|
  • दुसरे शब्दों में कहें तो यदि कम्पनियाँ स्थानीय कामगारों को किराए पर लेना  चाहे तो भी उन्हें अमेरिका में पर्याप्त आईटी पेशेवर नहीं मिलते हैं|
  • टैक महिंद्रा के अनुसार, स्थानीय लोगों को किराए पर लेने के लिये जो कौशल है वह केवल प्रारंभिक स्तर के सॉफ्टवेर परीक्षण वाले रोज़गारों के लिये ही है| ऐसे रोज़गारों के लिये एक व्यक्ति को मशीन के समक्ष 8 से 10 घंटे व्यतीत करने पड़ते हैं जबकि अमेरिका वाले ऐसा करने की इच्छा नहीं रखते हैं| आईटी रोज़गारों के लिये मांग और आपूर्ति के मध्य के अंतराल को कम करने के लिये पर्याप्त क्षमता विकसित करने में अमेरिका को 5 से 10 वर्ष लगेंगे|

सस्ते श्रम का मुद्दा

  • ट्रम्प प्रशासन द्वारा उठाया गया दूसरा बड़ा मुद्दा यह है कि कम्पनियाँ एच-1 बी वीज़ा के माध्यम से अमेरिकी कामगारों को प्रतिस्थापित करने के लिये सस्ते श्रमिक ला रहीं हैं| हालाँकि अमेरिका स्थित ब्रुकिंग संस्थान के अनुसंधानों से पता चला है कि एच-1 बी वीज़ा कामगारों(76,356 डॉलर) को केवल अमेरिका में जन्मे अविवाहित कामगारों(67,301 डॉलर) की तुलना में ही अधिक भुगतान किया जाता है|
  • इसके अलावा नासकॉम का अनुमान है कि वीज़ा पेपरवर्क के लिये प्रत्येक एच-1 बी आवेदक पर भारतीय कम्पनियाँ लगभग 10,000 डॉलर व्यय करती हैं| वर्ष 2018 तक विज्ञान, तकनीकी ,इंजीनियरिंग और गणित जैसे क्षेत्रों में 2.4 मिलियन रोज़गारों की कमी हो जाएगी परन्तु 50% से अधिक कमी सूचना प्रौद्योगिकी और कंप्यूटर से संबंधित क्षेत्रों में होगी| 
  • नासकॉम के अनुसार, हाल के वर्षों में भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी कम्पनियाँ अमेरिका में कौशल विकास में अरबों डॉलर का निवेश कर चुकी हैं तथा 5 लाख रोज़गार दे चुकी हैं | ये कम्पनियाँ अमेरिका में मुख्य रोज़गार प्रदाता हैं|
  • अन्य गलत धारणा यह है कि भारतीय आईटी कम्पनियाँ एच-1 बी वीज़ा का सबसे अधिक क्रय करती हैं| वर्ष 2016 में प्रमुख 20 एच-1 बी वीज़ा प्राप्तकर्ता कम्पनियों में से 6 भारतीय कम्पनियाँ,13 अमेरिकी कम्पनियाँ और एक फ्रांस की कंपनी थी|
  • जब छोटी आईटी सेवा फर्म एच-1 बी वीज़ा की खरीदारी करती हैं तो उसके के दुरूपयोग की कई घटनाएँ देखने को मिलती हैं|
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