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भारतीय विरासत और संस्कृति

बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता-बौद्ध स्थल

  • 13 Jan 2020
  • 5 min read

प्रीलिम्स के लिये:

बोज्जनकोंडा बौद्ध स्थल

मेन्स के लिये:

बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता बौद्ध स्थल से संबंधित प्रथा

चर्चा में क्यों?

आंध्र प्रदेश के शंकरम में स्थित बोज्जनकोंडा (Bojjannakonda) नामक बौद्ध स्थल पर पत्थर फेंकने की एक पुरानी प्रथा को रोकने में प्रशासन ने सफलता हासिल की है।

मुख्य बिंदु:

  • यहाँ के ग्रामीण एक प्राचीन प्रथा के भाग के रूप में बोज्जनकोंडा स्थित एक पेट के आकार की आकृति को राक्षस का रूप मानते हुए इस पर पत्थर फेंकते थे।
  • हालाँकि ‘इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज’ (Indian National Trust for Art and Cultural Heritage-INTACH) के हस्तक्षेप के बाद मकर संक्राति के बाद 16 जनवरी को कनुमा दिवस (Kanuma day) पर आयोजित होने वाली यह प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है।

प्रशासन और INTACH का साझा प्रयास:

  • बोज्जनकोंडा नामक बौद्ध स्थल पर पत्थर फेंकने की इस परंपरा पर INTACH ने स्थानीय पुलिस तथा ज़िला प्रशासन के साथ मिलकर कुछ वर्षों से इस पर रोक लगाई है।
  • INTACH ने इस बार भी इस पुरातात्त्विक रूप से महत्त्वपूर्ण इस स्थल को नुकसान से बचाने के लिये कनुमा दिवस के अवसर पर इस प्रथा को रोकने के लिये जिला प्रशासन से पर्याप्त सहायता की माँग की है।

बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता:

(Bojjannakonda and Lingalametta):

  • बोज्जनकोंडा तथा लिंगलामेत्ता ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में स्थापित जुड़वां बौद्ध मठ हैं।
  • ये बौद्ध स्थल बौद्ध धर्म की तीन शाखाओं (थेरवाद, महायान, वज्रयान) से संबंधित हैं-
    • थेरवाद- बुद्ध को एक शिक्षक के रूप में मान्यता।
    • महायान- बौद्धधर्म अधिक भक्तिपूर्ण था।
    • वज्रयान- जहाँ बौद्ध परंपरा में तंत्र एवं गूढ़ रूप में अधिक विश्वास।
  • शंकरम (Sankaram) शब्द की व्युत्पत्ति ‘संघरम’ (Sangharama) शब्द से हुई है।
  • यह स्थल अत्यधिक स्तूपों, पत्थरों को काटकर निर्मित गुफाओं, ईंट-निर्मित संरचनात्मक आकृतियों, प्रारंभिक ऐतिहासिक मृदभांडों और पहली शताब्दी ईस्वी पूर्व के सातवाहन काल के सिक्कों के लिये प्रसिद्ध है।
  • यहाँ स्थित मुख्य स्तूप को पत्थर की चट्टान को तराशकर बनाया गया है और फिर ईंटों से ढका गया है। यहाँ स्थित पहाड़ियों में पत्थरों पर बुद्ध की छवियों को उकेरा गया है।
  • यहाँ स्थित लिंगलामेत्ता में एकाश्म पत्थर से निर्मित स्तूपों को देखा जा सकता है।

पर्यटन के लिये आकर्षण का बिंदु:

  • यहाँ स्थित अवशेष मंजूषा (Relic Casket), तीन चैत्यगृह, स्तूप और वज्रयान मूर्तिकला को देखने के लिये बड़ी संख्या में पर्यटक इन बौद्ध स्थलों पर आते हैं।
  • विशाखापत्तनम थोटलाकोंडा (Thotlakonda), एप्पिकोंडा (Appikonda) और बाविकोंडा (Bavikonda) जैसे बौद्ध स्थलों के लिये भी प्रसिद्ध है।

इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज

(Indian National Trust for Art and Cultural Heritage):

  • INTACH की स्थापना भारत में संस्कृतिक विरासत के बारे में जानकारी के प्रसार और संरक्षण के उद्देश्य से वर्ष 1984 में नई दिल्ली में की गई थी।
  • वर्तमान में INTACH को विश्व के सबसे बड़े विरासत संगठनों में से एक के रूप में मान्यता प्राप्त है।
  • इसका मुख्यालय नई दिल्ली में है।
  • INTACH की भारत में में 190 से अधिक शाखाएँ हैं।
  • INTACH ने न केवल अमूर्त विरासत बल्कि प्राकृतिक विरासत के संरक्षण में अभूतपूर्व कार्य किया है।

स्रोत-द हिंदू

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