लखनऊ शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 23 दिसंबर से शुरू :   अभी कॉल करें
ध्यान दें:



डेली न्यूज़

अंतर्राष्ट्रीय संबंध

बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक

  • 11 Aug 2017
  • 3 min read

चर्चा में क्यों 
राज्यसभा ने गुरुवार को बैंकिंग विनियमन (संशोधन) विधेयक पारित किया, जो प्रमुख बैंकों के ऋण डिफॉल्टरों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक को अन्य बैंकों को निर्देश देने में सक्षम बनाता है। 

लोकसभा द्वारा यह विधेयक पहले ही पारित किया जा चुका था।  अब यह विधेयक, बैंकिंग विनियमन (संशोधन) अध्यादेश, 2017 का स्थान लेगा।

इसकी आवश्यकता क्यों पड़ी ?

  • गौरतलब है कि भारतीय रिज़र्व बैंक सिर्फ एक नियामक संस्था भर नहीं है बल्कि यह सार्वजनिक ऋण प्रबंधन जैसे अन्य कार्य भी करता है।
  • भारत के कुछ बैंक बड़े डिफॉल्टरों एवं गैर-निष्पादित संपत्तियों की समस्या से जूझ रहे हैं। अतः सरकार बैंकों को उनके प्रमुख डिफॉल्टरों के खिलाफ ऋण वसूली के लिये उचित कार्रवाई करने की क्षमता प्रदान करना चाहती है।  
  • ऋण वसूली के लिये पहले से मौजूद नियमों में समय अधिक लगता था। नई समानांतर व्यवस्था अब अधिक प्रभावी होगी।  

गैर-निष्पादित संपत्तियाँ   

  • गैर-निष्पादित संपत्तियाँ इस वर्ष मार्च तक 6.41 लाख करोड़ रुपए तक पहुँच गई थीं।  उन पर ब्याज के भी संचित होने के कारण वे बढ़ रही हैं। एनपीए की समस्या इस्पात, इंफ्रास्ट्रक्चर, ऊर्जा और वस्त्र उद्योग में सबसे अधिक है।  
  • सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों ने बड़ी- बड़ी औद्योगिक और बुनियादी सुविधाओं के कार्यक्रमों को यह सोचकर ऋण दिया था कि इनसे इनका विस्तार होगा, परंतु ऐसा न हो सका।  चीन से इस्पात के आयात के कारण तथा कई अन्य कारणों से घरेलू व्यवसायों को घाटे का सामना करना पड़ा, जिससे एनपीए की समस्या और भी बढ़ गई।  
  • हालाँकि, सरकार द्वारा अब सीमा शुल्क और न्यूनतम आयात मूल्य पेश करने के साथ हालात सुधर रही हैं। सड़क क्षेत्र ने भी अच्छे परिणाम दिखाना शुरू कर दिया है। 

निष्कर्ष 
बैंकों द्वारा ऋण प्रदान करने में कोई बुराई नहीं है। यह बैंकिंग वित्त की बदौलत ही है कि देश में कारोबार का विस्तार हुआ है, रोज़गार के अनेक अवसर पैदा हुए हैं और अर्थव्यवस्था आगे बढ़ी है। अतः इस दृष्टि से बैंकों द्वारा ऋण दिया जाना आवश्यक है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2