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डेली न्यूज़

कृषि

फसलों पर तपेदिक रोधी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रयोग पर रोक

  • 12 May 2020
  • 8 min read

प्रीलिम्स के लिये:

केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति, एकीकृत कीट प्रबंधन

मेन्स के लिये:

कृषि क्षेत्र में आवश्यक सुधार 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ‘केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति’ (Central Insecticides Board and Registration Committee- CIBRC) के तहत कार्यरत पंजीकरण समिति (Registration Committee- RC) ने फसलों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन (Streptomycin) और टेट्रासाइक्लिन (Tetracycline) एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को प्रतिबंधित किये जाने का सुझाव दिया है।

मुख्य बिंदु: 

  • पंजीकरण समिति के सुझावों के अनुसार, जिन क्षेत्रों में जीवाणु रोग नियंत्रण के अन्य विकल्प उपलब्ध हैं वहाँ फसलों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को तात्कालिक रूप से प्रतिबंधित किया जाना चाहिये। 
  • जबकि जिन क्षेत्रों में जीवाणु रोग नियंत्रण के अन्य विकल्प उपलब्ध नहीं हैं वहाँ वर्ष 2022 के अंत तक चरणबद्ध तरीके से फसलों पर स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन के प्रयोग को कम किया जाना चाहिये।
    • परंतु तब तक (वर्ष 2022 के अंत तक) निर्धारित मानकों का कड़ाई से पालन करते हुए इन एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया जा सकता है।
    • समिति की अंतिम रिपोर्ट में स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट (9%) और टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड (1%) के उत्पादन, बिक्री और प्रयोग के सुझाव को स्वीकृति दी गई है।

केंद्रीय कीटनाशक बोर्ड और पंजीकरण समिति

(Central Insecticides Board and Registration Committee- CIBRC):

  • CIBRC की स्थापना ‘कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय’ (Ministry of Agriculture and Farmers Welfare) द्वारा वर्ष 1970 में की गई थी।
  • CIBRC की स्थापना का उद्देश्य मनुष्यों,पशुओं और कीटनाशकों से जुड़े अन्य खतरों को देखते हुए देश में कीटनाशकों के आयात, निर्माण, बिक्री, परिवहन, वितरण और उपयोग को विनियमित करना था।
  • देश में कीटनाशकों का विनियमन ‘कीटनाशक अधिनियम, 1968’ और ‘कीटनाशक नियम, 1971’ के तहत विनियमित किया जाता है। 

चुनौतियाँ: 

  • कृषि में एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग:
    • यद्यपि CIBRC द्वारा मात्र 8 फसलों में स्ट्रेप्टोमाइसिन के उपयोग की अनुमति दी गई है परंतु नियमों की अनदेखी करते हुए इसका प्रयोग अन्य फसलों में भी किया जाता है। 
    • विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (Centre for Science and Environment- CSE) द्वारा पिछले कुछ वर्षों से फसलों पर महत्त्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया जाता रहा है।
    • नवंबर, 2019 में विश्व एंटीबायोटिक जागरूकता सप्ताह (World Antibiotic Awareness Week- WAAW) के समय CSE ने महत्त्वपूर्ण एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग के संदर्भ में विस्तृत आँकड़े उपलब्ध कराए थे। 
    • इस अध्ययन में देखा गया कि दिल्ली, हरियाणा और पंजाब के कृषि फार्मों पर नियमित रूप से स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन (90:10 के अनुपात में) के मिश्रण का भारी मात्रा में उपयोग किया जाता है।

प्रतिजैविक प्रतिरोध: 

  • विशेषज्ञों का मानना है कि कृषि में बड़ी मात्रा में स्ट्रेप्टोमाइसिन और टेट्रासाइक्लिन एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग से प्रतिजैविक प्रतिरोध (Antibiotic Resistance) का संकट उत्पन्न हो सकता है।
  • इस मत के अनुसार, एंटीबायोटिक दवाओं के ज़्यादा संपर्क में आने से व्यक्ति में एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधी क्षमता का विकास हो सकता है, जिससे किसी बीमारी के उपचार हेतु व्यक्ति को सामान्य एंटीबायोटिक देने से बीमारी पर इसका कोई लाभ नहीं होगा।  

मनुष्यों में स्ट्रेप्टोमाइसिन का प्रयोग:

  • CSE के अनुसार, पहले से तपेदिक (Tuberculosis -TB) का इलाज करा चुके मरीज़ों के मामले में स्ट्रेप्टोमाइसिन एक महत्त्वपूर्ण दवा का कम करती है। भारत में TB से ग्रस्त लोगों में ऐसे मरीज़ों की संख्या 10% है।  
  • साथ ही इसका प्रयोग मल्टी ड्रग–रेसिस्टेंट ट्यूबरकुलोसिस (MDR-TB) के मरीज़ों और ट्यूबरकुलस मेनिनजाइटिस (TB Meningitis or Brain TB) के मामलों में भी किया जाता है।  

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) ने स्ट्रेप्टोमाइसिन को मनुष्यों के लिये एक महत्त्वपूर्ण दवा के रूप में माना है।   

समाधान:

  • पंजीकरण समिति के अनुसार, फसलों में लगने वाले रोगों को ‘एकीकृत कीट प्रबंधन’ (Integrated Pest Management) या ऐसी ही अन्य प्रक्रियाओं को अपना कर नियंत्रित किया जा सकता है।

एकीकृत कीट प्रबंधन’

(Integrated Pest Management- IPM):

  • IPM एक पारिस्थितिकी तंत्र आधारित (Ecosystem-Based) रणनीति है, जिसमें लंबे समय के लिये कीटों की रोकथाम और उनके हनिकारक प्रभावों पर नियंत्रण पर ध्यान रखते हुए कुछ तकनीकों का समायोजन किया जाता है।
    • इनमें जैविक नियंत्रण, पारिस्थितिकी बदलाव, अलग-अलग प्रजातियों के प्रतिरोधकों का प्रयोग आदि शामिल है।
  • इस प्रक्रिया में पौधों, हानिकारक कीटों, जैविक परिस्थिति आदि का विस्तृत अध्ययन कर कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है।
  • इसके तहत कीटनाशकों के प्रयोग में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि इस प्रक्रिया में मनुष्यों, पशुओं और प्रकृति को कम-से-कम क्षति हो।    
  • पंजीकरण समिति ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (Indian Council of Agricultural Research- ICAR) से CSE के सुझावों के अनुरूप बेहतर और सुरक्षित विकल्पों पर शोध की शुरुआत करने का आग्रह किया है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ

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